Explainer: गगनयान को देखने और उससे बात करने में ISRO की मदद करेगी यूरोपीय स्पेस एजेंसी, क्या है TIP करार?
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Explainer: गगनयान को देखने और उससे बात करने में ISRO की मदद करेगी यूरोपीय स्पेस एजेंसी, क्या है TIP करार?

ISRO And ESA Technical Implementing Plan: यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) भारत को गगनयान को देखने और उससे बात करने में मदद करेगी. इसरो और ईएसए ने गगनयान मिशन के दौरान ग्राउंड ट्रैकिंग सहायता के लिए एक तकनीकी कार्यान्वयन योजना (टीआईपी) दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.

 

Explainer: गगनयान को देखने और उससे बात करने में ISRO की मदद करेगी यूरोपीय स्पेस एजेंसी, क्या है TIP करार?

Gaganyaan Mission Update: आने वाले वर्षों में जब भारत का गगनयान अंतरिक्ष यात्री ले जाने वाला कैप्सूल पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, तो यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के एंटीना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को गगनयान मिशन को 'देखने और उससे बात करने' में मदद करेंगे. इसरो और ईएसए ने गगनयान मिशन के दौरान ग्राउंड ट्रैकिंग सहायता के लिए एक तकनीकी कार्यान्वयन योजना (TIP) दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं.

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) में हुए TIP पर हस्ताक्षर

इसरो की ओर से इसट्रैक के निदेशक डॉ. अनिलकुमार ए. के. और ईएसए की ओर से प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गुणवत्ता निदेशक तथा ईएसटीईसी, नीदरलैंड के निदेशक डाइटमार पिल्ज़ ने टीआईपी पर हस्ताक्षर किए. इसरो के अध्यक्ष डॉ. एस सोमनाथ और भारत में बेल्जियम के राजदूत श्री डिडिएर वैन डेर हैसेल्ट की मौजूदगी में भारतीय अंतरिक्ष केंद्र, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) में टीआईपी पर हस्ताक्षर किए गए. आइए, इस टीआईपी करार के मुद्दों के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं.

सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशन क्या है और यह कैसे काम करता है?

सैटेलाइट ग्राउंड स्टेशन एक पृथ्वी-केंद्रित सुविधा है जो एंटीना, विशेष हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से सुसज्जित है और अंतरिक्ष में उपग्रहों के साथ संचार करने में मदद करता है. ये स्टेशन अंतरिक्ष परिसंपत्तियों और पृथ्वी के बीच पुल का काम करते हैं, जिससे डेटा, कमांड और सिग्नल का आदान-प्रदान संभव होता है. सैटेलाइट और ग्राउंड स्टेशन रेडियो तरंगों के माध्यम से संचार करते हैं, जिसके लिए स्पष्ट दृष्टि रेखा की जरूरत होती है.

पृथ्वी की वक्रता के कारण, एक ग्राउंड स्टेशन (एंटीना) केवल तब तक उपग्रह के साथ संपर्क बनाए रख सकता है जब तक कि उपग्रह स्टेशन के दृश्य क्षेत्र से ऊपर हो. चूंकि पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रह एंटीना की सीमा के भीतर केवल कुछ मिनट ही बिताते हैं, इसलिए उपग्रह के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखने के लिए दुनिया भर में ग्राउंड स्टेशनों के एक नेटवर्क की आवश्यकता होती है.

इसलिए, जब भारत का गगनयान अंतरिक्ष यात्री ले जाने वाला कैप्सूल पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा होगा, तो दुनिया भर में कई ग्राउंड स्टेशन भारतीय ग्राउंड कंट्रोलर्स को क्रू के संपर्क में रहने, अंतरिक्ष यान और उसके तकनीकी मापदंडों की निगरानी करने और कई महत्वपूर्ण कार्य करने में मदद करेंगे. दुनिया भर में कई ग्राउंड स्टेशन स्थापित करना बहुत महंगा और समय लेने वाला प्रयास है. यही वजह है कि अंतरिक्ष एजेंसियां ​​आपस में सहयोग करती हैं और अपने ट्रैकिंग संसाधनों को साझा करती हैं.

टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड (TT&C) क्या होता है?

ग्राउंड स्टेशनों का उपयोग उपग्रह के दुरुस्त होने की निगरानी के लिए किया जाता है, जैसे कि पावर लेवल, ओरिएंटेशन (यह किस दिशा में है), और सिस्टम की स्थिति वगैरह की हालत कैसी है. इस प्रक्रिया को टेलीमेट्री के रूप में जाना जाता है. वहीं, उपग्रहों को अपने कार्यों को करने के लिए एक विशिष्ट पूर्व-निर्धारित कक्षा में रहना पड़ता है. ग्राउंड स्टेशन उपग्रह की कक्षा पर नज़र रखने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं. इस खास काम को ट्रैकिंग के रूप में जाना जाता है. 

उपग्रहों में विभिन्न पेलोड (वैज्ञानिक उपकरण) होते हैं और उनमें से प्रत्येक का एक अनूठा मकसद और काम होता है. ग्राउंड स्टेशन नियमित रूप से उपग्रहों को विशिष्ट कार्य जैसे किसी निश्चित क्षेत्र की तस्वीरें क्लिक करना, किसी विशेष उपकरण का संचालन करना, उपग्रह को किसी निश्चित दिशा में ले जाना वगैरह के लिए आदेश जारी करते हैं. इसे ही कमांड कहते हैं. तीनों को मिलाकर टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड (TT&C) कहा जाता है. आसान शब्दों में कहें तो यह जमीन से जारी निर्देशों के आधार पर उपग्रह को दूर से नियंत्रित करने की एक प्रक्रिया है.

भारत के चंद्रयान-3 पर नज़र रखने के लिए वैश्विक समर्थन

बेंगलुरू शहर में ISRO टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (ISTRAC) ISRO के सभी उपग्रह और लॉन्च वाहन मिशनों के लिए ट्रैकिंग सहायता प्रदान करने की प्रमुख ज़िम्मेदारी संभालता है. वहीं, ISTRAC के पास भारत के भीतर बेंगलुरु, लखनऊ, श्रीहरिकोटा, पोर्ट ब्लेयर और तिरुवनंतपुरम में ग्राउंड स्टेशनों का एक नेटवर्क है. भारत से बाहर ब्रुनेई, बियाक (इंडोनेशिया) और मॉरीशस मित्र देश हैं जहां ISTRAC अपनी विदेशी सुविधाएं संचालित करता है. 

हालांकि, जब चंद्रयान-3 जैसा अंतरिक्ष यान पृथ्वी का चक्कर लगाता है और अधिक दूर तक यात्रा करता है (चंद्रमा 3.84 लाख किमी दूर है), तो ऐसे स्टेशनों का वैश्विक नेटवर्क होना अनिवार्य है जो ट्रैकिंग सहायता प्रदान कर सकें. प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ इसरो के अंतरराष्ट्रीय सहयोग के हिस्से के रूप में, नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और स्वीडिश स्पेस कॉरपोरेशन (SSC) के कई ट्रैकिंग स्टेशनों ने दुनिया भर से चंद्रयान-3 को ट्रैक किया था.

इनमें हवाई में साउथ पॉइंट सैटेलाइट स्टेशन, कैलिफोर्निया में गोल्डस्टोन, दक्षिण अमेरिका (फ्रेंच गुयाना) में कोरू, स्पेन में मैड्रिड, यूनाइटेड किंगडम में गुनहिली और ऑस्ट्रेलिया में कैनबरा भी शामिल हैं. भारतीय और विदेशी स्टेशनों से लगातार ट्रैकिंग ने सुनिश्चित किया कि भारत का चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान एक समय में एक या अधिक स्टेशनों को दिखाई दे और उस पर नज़र रखी जा सके ताकि उसे सुरक्षित रूप से चंद्रमा की ओर ले जाया जा सके.

शिप-बेस्ड ट्रैकिंग क्या है और कैसे काम करता है?

ऐसे समय होते हैं जब रॉकेट ट्रैकिंग एंटीना को 'विजिबल' नहीं होता है, खासकर, जब रॉकेट या उपग्रह समुद्र के ऊपर उड़ता है, जहां ट्रैकिंग स्टेशन उपलब्ध नहीं होते हैं. ट्रैकिंग प्रक्रिया में इस तरह के अंतराल को विशेष ट्रैकिंग शिप (जहाजों) द्वारा भरा जाता है, जो लंबी दूरी के रडार और संचार एंटीना से सुसज्जित होते हैं. ऐसे जहाजों को रॉकेट/उपग्रह के उड़ान पथ द्वारा उच्च समुद्र पर एक पूर्व-निर्धारित स्थान पर तैनात किया जाता है. जैसे ही वाहन उस बड़े क्षेत्र से आगे बढ़ता है, जहाज पर लगे सेंसर और ट्रैकिंग उपकरण मिशन की प्रगति के बारे में वास्तविक समय की ट्रैकिंग और टेलीमेट्री प्रदान कर सकते हैं.

इससे पहले, अक्टूबर 2022 में जब इसरो ने यूरोपीय फर्म वनवेब के 36 उपग्रहों को लॉन्च किया, तो भारत ने दक्षिणी ध्रुव की ओर उड़ रहे LVM3 रॉकेट की उड़ान को ट्रैक करने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र (भारत के दक्षिणी सिरे से हजारों किलोमीटर दक्षिण में) में महासागर अनुसंधान पोत सागर निधि को तैनात किया था.

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गगनयान ट्रैकिंग के लिए भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग

ऑस्ट्रेलियाई सरकार और अंतरिक्ष एजेंसी के साथ घनिष्ठ समन्वय में, इसरो ऑस्ट्रेलियाई बाहरी क्षेत्र कोकोस कीलिंग द्वीप समूह में एक ट्रैकिंग एंटीना स्थापित करेगा, ताकि गगनयान यान को ट्रैक किया जा सके, क्योंकि यह क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरता है. इसी तरह, भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने आकस्मिक योजना के हिस्से के रूप में चालक दल की खोज और बचाव तथा अगर गगनयान चालक दल के मॉड्यूल को उड़ान के बीच में ही बाहर निकलना पड़ता है तो चालक दल के मॉड्यूल की रिकवरी में सहायता सुनिश्चित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. यह व्यवस्था लागू है, क्योंकि बाहर निकाला गया कैप्सूल ऑस्ट्रेलियाई समुद्र में उतर सकता है.

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इसरो और ईएसए ने बीच हुआ टीआईपी करार क्या है?

दूसरी ओर, इसरो और ईएसए ने तकनीकी कार्यान्वयन योजना (टीआईपी) पर हस्ताक्षर किए हैं, ताकि इसरो ईएसए के ट्रैकिंग स्टेशन नेटवर्क एस्ट्रैक का समर्थन प्राप्त कर सके. एस्ट्रैक ग्राउंड स्टेशनों की एक वैश्विक प्रणाली है, जो कक्षा में उपग्रहों और यूरोपीय अंतरिक्ष संचालन केंद्र (ईएसओसी), डार्मस्टाट, जर्मनी के बीच संपर्क प्रदान करती है. कोर एस्ट्रैक नेटवर्क में सात देशों के सात स्टेशन शामिल हैं. सभी ईएसए ग्राउंड ट्रैकिंग स्टेशनों का आवश्यक कार्य अंतरिक्ष यान के साथ संचार करना, कमांड संचारित करना और वैज्ञानिक डेटा और अंतरिक्ष यान की स्थिति की जानकारी प्राप्त करना है.

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