Shani Jayanti 2022: मनोकामना पूर्ति के लिए शनि जयंती पर कर लें ये 2 चमत्कारी उपाय, रंक से राजा बनने में नहीं लगेगी देर
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Shani Jayanti 2022: मनोकामना पूर्ति के लिए शनि जयंती पर कर लें ये 2 चमत्कारी उपाय, रंक से राजा बनने में नहीं लगेगी देर

Shani Jayanti Upay: शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह  की अमावस्या तिथि को हुआ था. इस बार शनि जयंती 30 मई को मनाई जाएगी. इस दिन कुछ खास उपाय करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

 

फाइल फोटो

Shanidev Ke Upay: हिंदू धर्म में शनिदेव को कर्मफल दाता और न्याय के देवता के नाम से जाना जाता है. शनिदेव की कृपा पाने और उनकी कुदृष्टि से बचने के लिए शनिदेव की पूजा-उपासना और उपाय किए जाते हैं. कहते हैं कि शनि देव अगर किसी व्यक्ति से प्रसन्न होते हैं, तो वे उसे राजा बना देते हैं. लेकिन किसी से रुष्ट होने पर उसे बर्बाद कर देते हैं. शनिदेव के प्रकोप से लोग ही नहीं बल्कि देवता भी घबराते हैं.

शनिदेव व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए वैसे तो शनिवार का दिन खास है. लेकिन शनि जयंती के दिन किए गए उपाय विशेष फलदायी साबित होते हैं.  शनि जयंती हर ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन मनाई जाती है. इस बार शनि जंयती 30 मई के दिन पड़ रही है. इस दिन सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत का भी संयोग बन रहा है. इस लिए इस बार शनि जयंती का दिन बेहद खास है. आज के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इन दो उपायों को अवश्य करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. 

 

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शनि चालीसा और शनि आरती अवश्य करें

शनि जयंती के दिन स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद शनि देव को प्रणाम करें और मन ही मन उनका ध्यान करें. इस दिन शनि देव का चालीसा पाठ करें. तिल के तेल और सरसों के तेल के दीपक से शनि देव की आरती करें. मान्यता है कि इस दिन शनि देव की महिमा का गुणगान करने से प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को मुंह मांगा फल देते हैं. 

 

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श्री शनि चालीसा

दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

चौपाई
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति-मति बौराई। रामचंद्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयो। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पांडव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जंबुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥

समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

 

शनि देव जी की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय जय श्री शनि…

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय जय श्री शनि…

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय जय श्री शनि…

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय जय श्री शनि…

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥ जय जय श्री शनि देव…

शनि देव की जय, कर्मफलदाता शनि देव की जय, शनि देव की जय!

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

 

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