Shri Nirmal Panchayati Akhara: रोजाना करते गुरबाणी का पाठ, कुंभ में आता है सिख संतों का जखीरा; श्री निर्मल पंचायती अखाड़े का अनूठा इतिहास
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Shri Nirmal Panchayati Akhara: रोजाना करते गुरबाणी का पाठ, कुंभ में आता है सिख संतों का जखीरा; श्री निर्मल पंचायती अखाड़े का अनूठा इतिहास

Shri Nirmal Panchayati Akhara History: उदासीन अखाड़े से जुड़े श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा गुरू नानक जी की निर्मल विचारधारा से जुड़ा हुआ है. इसे जुड़े सिख संत जब कुंभ में प्रवेश करते हैं तो उसे नगर प्रवेश नहीं बल्कि जखीरा आगमन कहा जाता है.  

Shri Nirmal Panchayati Akhara: रोजाना करते गुरबाणी का पाठ, कुंभ में आता है सिख संतों का जखीरा; श्री निर्मल पंचायती अखाड़े का अनूठा इतिहास

Shri Nirmal Panchayati Akhara Tradition: यूपी के प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से महाकुंभ शुरू हो रहा है. 12 साल बाद होने जा रहे इस महाकुंभ में शामिल होने के लिए देश-विदेश के करोड़ों सनातनियों में बहुत उत्साह है. करीब डेढ़ महीने तक चलने वाले दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक मेले का सबसे बड़ा आकर्षण इस बार भी साधु-संतों के 13 अखाड़े रहने वाले हैं. अपने इन्हीं अखाड़ों की सीरीज में आज हम श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) की बात करें. साथ ही इस अखाड़े के इतिहास, प्रमुख संत और परंपराओं से भी आपको परिचित करवाएंगे. 

वर्ष 1862 में की गई अखाड़े की स्थापना

श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा (हरिद्वार) का संबंध गुरु नानक देव जी महाराज से माना जाता है. उनकी कृपा और प्रेरणा से वर्ष 1564 में निर्मल संप्रदाय की स्थापना हुई. यह संप्रदाय एक ओमकार यानी ईश्वर एक है और वह निराकार के सिद्धांत पर विश्वास करता है. कई वर्षों तक इन रीतियों का पालन करते हुए वर्ष 1862 में इसे संस्थागत रूप प्रदान किया गया और अखाड़े की स्थापना की गई. 

इस अखाड़े के संस्थापक बाबा मेहताब सिंह महाराज हैं, जिन्होंने 1862 में इसकी नींव रखी. उसके बाद से आज तक इस अखाड़े के 10 महंत हो चुके हैं. इनमें पहले महंत बाबा महताब सिंह जी महाराज, महंत रामसिंह जी, महंत उधव सिंह, महंत साधु सिंह, महंत रामसिंह, महंत दया सिंह, महंत जीवन सिंह, महंत सुच्चा सिंह जी महाराज, महंत बलवीर सिंह और स्वामी ज्ञानदेव सिंह जी महाराज शामिल हैं. 

साक्षी महाराज भी जुड़े हैं अखाड़े से

बीजेपी सांसद साक्षी महाराज भी इसी अखाड़े के साधु हैं. उनका श्री निर्मल अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक हुआ था. उनके अलावा स्वामी ज्ञानेश्वर जी महाराज,जयराम हरिजी महाराज, भक्तानंद हरि जी महाराज, जनार्दन हरिजी महाराज और दिव्यानंद गिरी भी इसी अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं. वे सब अखाड़े की ओर से समाज में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

इस अखाड़े की स्थापना पटियाला में हुई. जबकि इसका मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में बनाया गया. इसकी अखाड़े की शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं. इस अखाड़े में पंगत-संगत की एक समान भावना से काम किए जाते हैं. इस अखाड़े में स्थापना से लेकर अब तक प्रतिदिन गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है. जब भी कुंभ लगता है तो अखाड़े से जुड़े साधुओं और अनुयायियों के ठहरने की व्यवस्था अखाड़े की ओर से ही की जाती है. 

गुरू नानक की शिक्षाओं का करते हैं पालन

श्री निर्मल पंचायती अखाड़े के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री बताते हैं कि यह अखाड़ा उदासी परंपरा से जुड़ा हुआ है. सेवा भाव लिए, निर्मल आचरण वाले और परोपकार को पहला उपदेश मानने वाला यह उखाड़ा उदासीन अखाड़ा कहलाता है. उदासीन अखाड़ा कहने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उदासी या ऐसे किसी अर्थ से इसका संबंध हो. 

उदासीन का अर्थ ऊंचाई पर बैठा हुआ यानी ब्रह्न या समाधि की अवस्था है. वर्तमान में उदासीन संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं. जिनके नाम श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा प्रयागराज, श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, हरिद्वार और श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा हरिद्वार हैं. गुरू नानक की शिक्षाओं पर चलने वाले तीनों अखाड़े सेवा भाव, निर्मल आचरणऔर परोपकार की भावना के साथ काम करते हैं. 

ब्रह्म मुहूर्त में होता है गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ 

श्री निर्मल पंचायती निर्मल अखाड़े में ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह बजे साधु संत उठ जाते हैं. नित्य क्रिया और स्नान के पश्चात गुरू भगवान का पूजा पाठ किया जाता है. इसके साथ ही गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू कर दिया जाता है. अखाड़े से जुड़े सभी संतों को सिखाया जाता है कि सभी के साथ समान व्यवहार, हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार रहने वाला व्यक्ति ही असली योगी कहलाता है. र्मल पंचायती अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड

नगर प्रवेश नहीं करते, आता है जखीरा 

वे बताते हैं कि कुंभ मेला लगने पर 13 में से 12 अखाड़े वहां पर छावनी प्रवेश करते हैं लेकिन निर्मल अखाड़े के साधु-संत ऐसा नहीं करते बल्कि उनकी ओर से जखीरा आता है. वे अपने सामानों को ट्रैक्टर-ट्रॉलियों, ट्रकों के साथ कुंभ मेले में प्रवेश करते हैं, जिसे अखाड़े का जखीरा आना कहा जाता है. वे कहते हैं इस अखाड़े से कोई भी ऐसा व्यक्ति जुड़ सकता है, जिसके अंदर तप, सेवा और त्याग की भावना उत्पन्न हो चुकी हो. अखाड़े से जोड़ने से पहले उसे सेवा करने के लिए कहा जाता है. उस अवधि के दौरान अखाड़े के संत देखते हैं कि क्या वह वाकई संत-महात्मा बनने लायक है या नहीं. अगर वे सकारात्मक जवाब देते हैं तो उसे अखाड़े से जोड़ लिया जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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