Pushkar Sarovar: रेगिस्तान में बना वो सरोवर, जो 5 हजार साल में कभी सूखा नहीं; भगवान राम ने पिता दशरथ का किया था पिंडदान
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Pushkar Sarovar: रेगिस्तान में बना वो सरोवर, जो 5 हजार साल में कभी सूखा नहीं; भगवान राम ने पिता दशरथ का किया था पिंडदान

Mystery of Pushkar Sarovar: क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत के एक रेगिस्तान में 5 हजार साल से ऐसा सरोवर बना हुआ है, जिसमें हमेशा 25 फुट गहराई तक पानी जमा रहता है. इस सरोवर का ब्रह्मा जी और भगवान राम से संबंध माना जाता है. 

 

Pushkar Sarovar: रेगिस्तान में बना वो सरोवर, जो 5 हजार साल में कभी सूखा नहीं; भगवान राम ने पिता दशरथ का किया था पिंडदान

Pushkar Sarovar's relation with Lord Ram: सनातन धर्म की परंपरा में त्रिदेव, यानी ब्रह्मा विष्णु और महेश की मान्यता है. उसमें ब्रह्मा पहले देव माने जाते हैं. ये पूरी सृष्टि, यानी ब्रह्मांड के रचयिता माने जाते हैं. पूरे जंबूद्वीप, यानी भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रह्मा का एक ही मंदिर है, जिसकी वजह से नगर को ब्रह्म की नगरी भी कहा जाता है. वो नगर है पुष्कर. आज की स्पेशल रिपोर्ट इसी ब्रह्मनगरी से, जहां भगवान राम से जुड़ा हुआ एक रहस्य बड़ा ही दिलचस्प है. इसका जिक्र पद्मपुराण जैसे कई ग्रथों मिलता है, जब वनवासी राम ने अपने पिता को मोक्ष दिलाने के लिए यहां एक खास अनुष्ठान किया. तो क्या वो वही सरोवर है, जहां राम ने अपने पिता का 5वां पिंडदान किया था? 

पितरों को मोक्ष के लिए किया जाता है पिंडदान

हमारी परंपरा में पितरों को मोक्ष का इकलौता विधान है पिंडदान. इसे अपने मानव अवतार में भगवान ने भी पूरा किया. एक बार नहीं, बल्कि नगर, नगर किया पिता के लिए भ्रमण. पिता को मोक्ष के लिए पुत्र राम का पहला पिंडदान- गया का फल्गु तट! पिता को मोक्ष के लिए पुत्र राम का दूसरा पिंडदान- कर्णावती संगम घाट! पिता को मोक्ष के लिए पुत्र राम का
तीसरा पिंडदान- उज्जैन, शिप्रा घाट!

पिता को मोक्ष के लिए पुत्र राम का चौथा पिंडदान- गोदावरी नदी तट! पिता को मोक्ष के लिए पुत्र राम का पांचवां पिंडदान- पुष्कर का सरोवर! पुष्कर के इस सरोवर को गया कुंड कहा जाता है, जहां आज भी पिंडदान के लिए पावन माने जाने वाले पितृपक्ष के बाद भी पितरों का तर्पण किया जाता है. 

इसी गयाकुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम अपने वनवास के दौरान आए थे और इस यज्ञकुंड नुमा सरोवर के किनारे पिता का अंतिम श्राद्ध और पिंडदान किया था. 

रेगिस्तान में कैसे बना पुष्कर का सरोवर?

पुष्कर के इस सरोवर की पड़ताल के वक्त पता चला, ये सरोवर शहस्त्राब्दियों से यहां ऐसे ही है. घाटों की मरम्मत भले ही समय समय पर होता रहा, लेकिन रेगिस्तान के बीच होने के बावजूद ना तो इसका पानी कभी सूखा और ना ही इसमें कोई भराव हुआ. 

इसका रहस्य छिपा है इस सरोवर के आकार में, जो ऊपर जितना चौड़ा है, उतना नीचे जाते ही संकरा और गहरा होता जाता है. इसमें 25 फीट तक पानी हमेशा भरा रहता है...

पंडित राजाराम पुष्कर के इस गया कुंड के पुरोहित हैं. ये बताते हैं, इनका नाम भी इस नगर से जुड़ी राम कथा की वजह से राजाराम रखा गया है. इसके पौराणिक दस्तावेज भी दिखाते हैं. जैसे पद्मपुराण का ये पेज, जिसमें भगवान राम के पुष्कर आने का सचित्र विवरण है.

पद्मपुराण के हवाले से राजा राम बताते हैं, कि वनवास के दौरान पिता की मौत की खबर सुनकर श्रीराम बहुत दुखी हुई, लेकिन पिता को दिए वचन की वजह से उनके अंतिम संस्कार में नहीं जा सकते थे. इसलिए उन्होंने तमाम ऋषि मुनियों से संपर्क किया. 

भाई लक्षमण और पत्नी सीता के साथ दशरथ का पिंडदान

पौराणिक कथाओं के मुताबिक पुष्कर आने से पहले भगवान राम अपने पिता का पिंडदान कर चुके थे, तो फिर अत्रि जैसे मुनियों ने पुष्कर के बारे में ऐसा क्या बताया कि श्रीराम को भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ पांचवी बार पिंडदान करना पड़ा. ये कहानी पुष्कर से जुड़े रहस्य का नया अध्याय खोलती है.

स्पेशल रिपोर्ट के इस हिस्से में हमने उसी रहस्य के अध्याय को समझने की कोशिश की. आखिर भगवान राम के सामने ये पिता के सामूहिक अंतिम संस्कार से अलग रहने की नौबत क्यों आई? इसका एक जवाब तो ये है कि जब राजा दशरथ की मौत हुई, तब राम वनवास में थे. वो बंधे हुए थे- प्राण जाई, पर वचन न जाई, की रघुकुल रीत से. 

तड़प-तड़प कर क्यों देनी पड़ी दशरथ को जान?

इसके मुताबिक चाहे कुछ भी जाए, वो वनवास से वापस नहीं आ सकते. लेकिन पितृ ऋण? हमारी परंपरा में इसका अलग विधान है. पुत्र के हाथों अंतिम संस्कार, पितृ ऋण का आखिरी कर्म माना जाता है. लेकिन राजा दशरथ की मौत के पीछे एक ऐसी शाप कथा जुड़ी है, जिसकी वजह से भगवान श्रीराम के लिए अपना पितृ ऋण चुकाना मुश्किल हो गया...

पूरे रामायण की पौराणिक गाथा में श्रीराम का वनवास सबसे मार्मिक कथा मानी जाती है. अपनी ही माता कैकई की जिद से 14 साल का वनवास और जिंदगी भर का पितृशोक झेलना बड़ा श्रीराम को. पौराणिक गाथाएं बताती हैं, कैकई के ऊपर शनि का कोप था, क्योंकि वो मंथरा जैसी कुबुद्धि की संगत की वजह से न्याय प्रिय नहीं रह गई थीं. जबकि दशरथ को पुत्र वियोग एक शाप की वजह से अवश्यंभावी था.
 
वो शाप था श्रवण के बुजुर्ग माता पिता का. शिकार के दौरान चले राजा दशरथ के शब्दभेदी वाण से जब श्रवण की मौत हो गई, तब वो खुद श्रवण के माता पिता के पास गए थे. अपने पुत्र की मौत के वियोग में दोनों ने दशरथ को शाप दिया था कि 'हे राजन्! जिस प्रकार पुत्र वियोग में हमारी मृत्यु हो रही है, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग में घोर कष्ट उठा कर होगी.

पिता के देहांत से व्याकुल हो गए थे प्रभु राम

रामायण की पौराणिक गाथा में राम का वनवास और दशरथ को पुत्र वियोग की पीड़ा उसी शाप का असर मानी जाती है. कैकई को दिए गए पिता का वचन निभाने राम तो वन चले गए, लेकिन दशरथ पुत्र वियोग की अभूतपूर्व पीड़ा में घिरते चले गए. 

राम के वनगमन के छठे दिन राजा दशरथ का निधन हो गया. मौत से पहले पत्नी कौशल्या से उन्होंने कहा, ‘मेरे पाप कर्म का दंड आज मिल रहा!’ राजा दशरथ की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार राजगद्दी संभाल रहे तीसरे बेटे भरत के हाथों पूरा हुआ, लेकिन जब राम को वन में इसकी खबर मिली, तो वो व्याकुल हो गए. 

इसकी वजह थी मोक्ष की प्राप्ति. ऋषि मुनियों ने उन्हें कहा कि श्रवण हत्या के अपराध की वजह से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई. तब राम ने खुद अपने हाथों से पिंडदान करने का संकल्प लिया. गया समेत 4 जगहों पर पिंडदान के बाद भी जब राजा दशरथ को मोक्ष नहीं मिला, तो अत्रि मुनि ने राम को पुष्कर जाने की सलाह दी.

आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व वाला पुष्कर

पुष्कर में अपने पिता का पिंडदान करने राम जब इस सरोवर के किनारे आए, तो इसमें अपने पिता की उल्टी छवियां दिखाई दीं. उस छवि को भगवान राम ने दाहिने हाथ से पहचाना, जिसमें उन्होंने रत्न जड़ित अंगुठियां पहन रखी थी. सरोवर में तैरते उस हाथ को देखकर राम भी अचंभित हुए. 

पौराणिक गाथाओं के हवाले से पंडित राजाराम बताते हैं, राम ने इस सरोवर में पिता के साथ दादा अज और पड़दादा रघु के नाम से भी पिंडदान किया था. स्थानीय पुरोहित मानते हैं, इसी सरोवर में पिंडदान के बाद राजा दशरथ को मोक्ष मिला.

हिंदू धर्म में पुष्कर को तीर्थ रहा कहा जाता है. इसकी धार्मिक गाथाओं के साथ कई आध्यात्मिक महत्व  भी जिक्र पौराणिक ग्रंथों में मिलता है. माना जाता है, पुष्कर का सरोवर भगवान व्रह्मा के यज्ञ के दौरान कमल पुष्प से बना था. इसी घटना के बाद इस जगह का नाम पुष्कर यानी सरोवर पड़ा. 52 घाट वाले सरोवर के पानी को आज भी लोग चमत्कारी शक्तियों से भरा मानते हैं.

ब्रह्मा ने कार्तिक कार्तिक एकादशी को किया था यज्ञ 

‘यथा महोदधे स्तुल्यो चान्योऽस्ति जलाशय: 
तथा वै पुष्करस्यापि समं तीर्थं विद्यते..

पद्म पुराण का ये श्लोक बताता है, जैसे समुद्र के समान कोई दूसरा जलाशय नहीं, वैसे ही पुष्कर राज से ड़ा कोई तीर्थ नहीं. देवी पुराण में पुष्कर को ब्रह्मतीर्थ और तीर्थ गुरु कहा गया है. इसे जम्बोद्वीप के 9 पवित्र अरण्यों मे से एक माना जाता है. इसीलिए भगवान ब्रह्मा जब धरती पर उतरे, तो यज्ञ के लिए इसी पुष्कर को चुना.

पुष्कर के बीचो बीच जो सरोवर है, उसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा जाता है. इसी सरोवर के तट पर ब्रह्मा ने कार्तिक कार्तिक एकादशी से ही यज्ञ शुरु किया था. इसमें जिसमें सभी देवी-देवता भी सम्मिलित हुए. यज्ञ की पूर्णाहुति पूर्णिमा के दिन हुई. इसीलिए हर साल कार्तिक एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर सरोवर में स्नान का महत्व मानते हुए मेला लगता है.

लाखों श्रद्धालु हर साल पहुंचते हैं पुष्कर

पुष्कर का मेला पूरी दुनिया भर में मशहूर है, जहां हजारों की तादाद में सैलानी और श्रद्धालु आते हैं. यहां के पुरोहित बताते हैं, पुष्कर के सरोवर का पानी आज भी इतना चमत्कारी है, कि लोग यहां पूरे साल आते हैं. 

ब्रह्मा को ब्रह्मांड पिता भी कहा गया है, इसलिए पितृ और गुरु दोष का निवारण की बात पुष्कर के बारे में मशहूर होती गई. कारण क्या है, ये किसी को नहीं पता, लेकिन कुछ मान्यताएं ऐसी होती हैं, जिन्हें जिंदा रहने के लिए किसी तर्क की जरूरत नहीं होती.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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