Meera Bai Jayanti: मीराबाई भारतीय संस्कृति में एक प्रमुख संत-कवि थीं. वे 16वीं शताब्दी में जन्मी थीं और राजपूत राजवंश में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने अपना जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया. मीरा की भक्ति की कविताएं और भजन आज भी लोकप्रिय हैं. वे अपने प्रेम में भगवान कृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा और समर्पण दिखाती थीं.
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Meera Bai Jayanti: भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय भक्त मीराबाई, वैष्णव भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण संत थीं. उनके जन्म के सम्बंध में ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन आम मान्यता है कि उनकी जयंती शरद पूर्णिमा पर मनाई जाती है. इस साल 28 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाई जाएगी. मीराबाई राजस्थान के मेढ़ता के पास कुडकी गांव में 1498 के आसपास जन्मी थीं. वे एक राजपूत राजकुमारी थीं और उनके पिता का नाम रत्न सिंह था. बचपन में ही उनकी माता की मौत हो गई थी. मीरा बाई की भक्ति और उनकी कविताओं में व्यक्त हुई अद्वितीय भावनाओं को मान्यता दी जाती है. उन्होंने दिखाया कि आध्यात्मिकता की मार्ग में जाति, लिंग या सामाजिक स्थिति का कोई महत्व नहीं है. उनका जीवन और उनकी रचनाएं आज भी हमें यह सिखाती हैं कि अध्यात्मिक प्रेम और समर्पण के सामने सभी सामाजिक बाधाएं असमर्थ हो जाती हैं.
भक्ति की शुरुवात
उनकी भक्ति की शुरुवात एक अद्भुत घटना से हुई जब उन्होंने अपनी माता से पूछा कि उनका वर कौन है? इस पर उनकी माता ने हसते हुए, मजाक की भावना से भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा किया. इसके बाद मीराबाई ने अपने जीवन को श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया. उन्होंने अपने जीवन में कभी शादी की इच्छा नहीं की, लेकिन उन्हें राजकुमार भोजराज से शादी करनी पड़ी. शादी के कुछ समय बाद. जब उनके पति की मृत्यु हो गई तो वे पूरी तरह से कृष्ण की भक्ति में लीन हो गईं. वे अपने प्रेम में भगवान कृष्ण के प्रति अपार श्रद्धा और समर्पण दिखाती थीं.
मारने की कोशिशें
मीराबाई का जीवन आसान नहीं था. समाज और परिवार की अनेक बाधाओं का सामना करते हुए भी उन्होंने अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं आने दी. वे सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं की चुनौती देने वाली थीं, और उन्होंने अपने विचार और आस्था के लिए खड़ा होकर उन्हें प्रकट किया. उनकी अद्वितीय भक्ति की वजह से उन्हें अनेक बार मारने की कोशिशें हुईं, लेकिन हर बार वे बच गईं. और कभी भी अपनी भक्ति में रुकावट नहीं आने दी.
मीराबाई की मृत्यु
मीराबाई की मृत्यु के बारे में भी कई किस्से हैं. एक प्रमुख मान्यता के अनुसार, सबसे प्रसिद्ध कथा यह है कि एक दिन वे श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने गायन कर रही थीं और अचानक ही उन्हें उस मूर्ति में विलीन हो जाने की अनुभूति हुई. जब मंदिर के पुजारी ने मूर्ति के पास पहुंचाया, मीराबाई गायब थीं. उनका शरीर वहां पर नहीं था. लोग मानते हैं कि वे श्रीकृष्ण में ही समाहित हो गई थीं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)