India first Republic Day: देश ने 15 अगस्त 1947 को आजादी का स्वाद चखा लेकिन एक स्वतंत्र और संप्रभु गणराज्य बनने का सपना 26 जनवरी 1950 को पूरा हुआ. यह वह दिन था जब भारत का संविधान लागू हुआ और देश ने अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया. यह ऐतिहासिक क्षण हर भारतीय के लिए गर्व और उत्साह से भरा हुआ था. आइए जानते हैं कि पहला गणतंत्र दिवस कैसे मनाया गया और उस समय क्या-क्या खास हुआ. परेड कैसे और कहां हुई यह भी जानेंगे.
देश के पहले गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी 1950 को सुबह 10:18 बजे भारत को संप्रभु गणराज्य घोषित किया. इसके ठीक छह मिनट बाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. यह शपथ राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में दिलाई गई. इसके बाद राष्ट्रपति को तोपों की सलामी दी गई जो आज भी गणतंत्र दिवस समारोह का अभिन्न हिस्सा है.
दिल्ली में आयोजित पहली गणतंत्र दिवस परेड इरविन स्टेडियम आज के नेशनल स्टेडियम में हुई. उस समय स्टेडियम के चारों ओर चहारदीवारी नहीं थी, जिससे पुराने किले का नजारा साफ दिखाई देता था. यह परेड सुबह के बजाय दोपहर 2:30 बजे शुरू हुई. राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद विशेष रूप से सजी बग्घी में सवार होकर कनॉट प्लेस होते हुए 3:45 बजे इरविन स्टेडियम पहुंचे.
पहली गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय सेना के तीनों बल थलसेना, वायुसेना और नौसेना ने हिस्सा लिया. इस परेड में 3,000 जवान और 100 विमान शामिल हुए. डकोटा और स्पिटफ़ायर जैसे विमानों ने फ्लाईपास्ट किया. जनरल फील्ड मार्शल करियप्पा ने जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम भी आजाद, तुम भी आजाद और हमारा कुत्ता भी आजाद. उनकी यह बात हर भारतीय के दिल में जोश भरने के लिए काफी थी.
पहले गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो थे. इसी दिन गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि को आमंत्रित करने की परंपरा की शुरुआत हुई. इस मौके पर राष्ट्रपति ने इरविन स्टेडियम में तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली.
पहली बार गणतंत्र दिवस पर 31 तोपों की सलामी दी गई जिससे दिल्ली गूंज उठी. बाद में यह संख्या घटाकर 21 कर दी गई. फ्लाईपास्ट ने इस आयोजन को और भव्य बनाया. गणतंत्र दिवस के उत्सव में दिल्ली के चांदनी चौक के घंटेवाला हलवाई ने पूरे इलाके में मिठाइयां बांटीं. लाल मंदिर से लेकर फतेहपुरी मस्जिद तक पूरा इलाका तिरंगे और फूलों से सजाया गया. शीश गंज गुरुद्वारा और बंगला साहिब में लंगर का आयोजन हुआ. इस दिन पूरा शहर उत्साह और गर्व से झूम उठा.
1950 की परेड भले ही आज की परेड जितनी भव्य नहीं थी, लेकिन यह भारतीयों के लिए गर्व और नई शुरुआत का प्रतीक थी. इसमें झांकियां नहीं थीं, लेकिन सेना की टुकड़ियों ने उस समय के पराक्रम का प्रदर्शन किया. इसके बाद के वर्षों में परेड की भव्यता बढ़ती गई, और झांकियां, लोक नृत्य और आतिशबाजी भी समारोह का हिस्सा बने. पहला गणतंत्र दिवस सिर्फ एक आयोजन नहीं था, यह भारत के गणराज्य बनने का उत्सव था. आज भी उस ऐतिहासिक दिन की यादें हर भारतीय को गर्व से भर देती हैं.
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