मान्यता है कि इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं. जैन धर्म में मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. यह स्थान प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली के नामसे जा ना जाता है.
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नई दिल्लीः भारतीय मनीषा में वट वृक्ष को देव तुल्य माना गया है. सनातन परंपरा की सहिष्णुता परिचय इसी तथ्य से मिलता है कि जीवन उपयोगी वनों, औषधियों, पदार्थों और जीवों को देवतुल्य माना गया है. वनस्पतियों में पीपल, बरगद, तुलसी और केला का महत्व अतुलनीय है.
यह चारों ही वनस्पतियां औषधीय होने के साथ-साथ पवित्र और देवत्व धारण करने वाली भी हैं. बरगद के वृक्ष को पूजा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने के साथ यह धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. इस पेड़ के पत्ते, फल और छाल शारीरिक बिमारियों को दूर करने के काम आते हैं. आने वाले दिनों में सुहागिन स्त्रियां इसी वट वृक्ष के नीचे वट सावित्री व्रत का पूजन करेंगी.
वट वृक्ष का धार्मिक-वैज्ञानिक महत्व
मान्यता है कि इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं. जैन धर्म में मान्यता है कि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी. यह स्थान प्रयाग में ऋषभदेव तपस्थली के नामसे जा ना जाता है. माना जाता है कि पेड़ की पत्तियां एक घंटे में 5 मिली लीटर ऑक्सीजन देती हैं.
यह वृक्ष दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है. इसके पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच और सूजन पर दिन में दो से तीन बार मालिश करने से काफी आराम मिलता है. यदि कोई खुली चोट है तो बरगद के पेड़ के दूध में हल्दी मिलाकर चोट वाली जगह बांध लें, घाव जल्द भर जाएगा.
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यक्ष से उत्पन्न हुआ है वट वृक्ष
वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है. आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए. उसी समय यक्षों के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ.
यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद, वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा.
यक्ष से निकट सम्बन्ध के कारण ही वट वृक्ष को 'यक्षवास', 'यक्षतरु', 'यक्षवारूक' आदि नामों से भी पुकारा जाता है. पुराणों में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएं, प्रकृति, वनस्पति व देवताओं को लेकर मिलती हैं. जिस प्रकार अश्वत्थ यानी पीपल को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति शिव का रूप माना गया है. स्कन्दपुराण में कहा गया है. अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत: अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं.
बरगद काटना पुत्र हत्या के समान
संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा करते हैं. इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है. धार्मिक मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाली होती है. वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व के बोध को भी दर्शाता है.
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