रहस्यमय श्रीविद्या के यंत्र स्वरूप को ‘श्रीयंत्र’ या ‘श्रीचक्र’ कहते हैं. यह एकमात्र ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है. इससे मनुष्य के जीवन के सभी लक्ष्य प्राप्त होते हैं.
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'श्री' शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है. श्रीयंत्र का सीधा तात्पर्य ‘श्री विद्या’ से है. जो कि साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि की ‘श्री’ देने वाली विद्या है. इसे ही दुनिया में ‘श्रीविद्या’ के नाम से जाना जाता है.
कलियुग में सभी ऐश्वर्य प्रदान करता है श्रीयंत्र
श्रीयंत्र को यंत्रों का राजा माना जाता है. इसका स्थान सभी यंत्रों में सर्वोच्च है. इसका प्रभाव कलियुग में कामधेनु की तरह होता है. जो कि अपनी साधना करने वाले साधक को धन-ऐश्वर्य, संतति के साथ मान-सम्मान और प्रतिष्ठा भी प्रदान करने में सक्षम है.
श्री यंत्र वो कल्पवृक्ष है, जिसके पास में होने मात्र से साधक की सारी कामनाएं परिपूर्ण हो जाती हैं. शास्त्र और पुराण इस बात के साक्षी हैं कि श्रीयंत्र अपने दर्शन मात्र से ही श्रद्धा रखने वालों को अद्भुत लाभ देना शुरु कर देता है.
जन्मजात दोषों का निवारण करने में भी सक्षम
दुनिया में मौजूद कूछ जातक अपने जन्म के साथ ही दुर्भाग्य लेकर आते हैं. उनकी जन्मकुंडली में केमद्रुम, दारिद्र्य, शकट, ऋण, निर्भाग्य, काक आदि अलग अलग तरह के दुर्योग मौजूद होते हैं. लेकिन श्रीयंत्र की उपासना से ये जन्मजात दोष भी नष्ट हो जाते हैं. श्री यंत्र की श्रद्धापूर्वक नियमित रूप से पूजा करने से दुःख दारिद्र्य का तुरंत नाश हो जाता है.
श्रीयंत्र की उपासना मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष सब कुछ प्रदान करती है. इसके बाद मनुष्य के जीवन में कोई और सुख बचा नहीं रहता है. श्रीयंत्र की साधना से मनुष्य को अष्ट सिद्धि व नौ निधियों की प्राप्ति होती है. श्री यंत्र की साधना से आर्थिक उन्नति होती है और व्यापार में सफलता मिलती है.
श्री यंत्र की पूजा शरीर के सभी रोगों का नष्ट करके शरीर की कांति को देवताओं और गंधर्वों के समान उज्जवल कर देता है. इसकी उपासना से शक्ति स्तंभन होता है व पंचतत्वों पर जीत मिलती है.
श्रीयंत्र की कृपा से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य सहज रुप में मिल जाते हैं. रुके हुए सभी कार्य अनायास होने लगते हैं. श्री यंत्र की साधना-उपासना से साधक की शारीरिक और मानसिक शक्ति पुष्ट होती है.
श्रीयंत्र में समाहित हैं सभी महाशक्तियां
श्रीयंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं की कृपा भी स्वयं ही प्राप्त हो जाती है. जिनकी अलग अलग उपासना अत्यंत कठिन और दुर्लभ है. श्रीयंत्र अपने आप में रहस्यपूर्ण है. यह सात त्रिकोणों से निर्मित है. मध्य बिन्दु-त्रिकोण के चतुर्दिक् अष्ट कोण हैं. उसके बाद दस कोण तथा सबसे ऊपर चतुर्दश कोण से यह श्रीयंत्र निर्मित होता है.
यंत्र ज्ञान में इसके बारे में स्पष्ट बताया गया है-
चतुर्भिः शिवचक्रे शक्ति चक्रे पंचाभिः।
नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः॥
श्रीयंत्र के निर्माण का रहस्य
श्रीयंत्र के चारों तरफ तीन परिधियां खींची जाती हैं. ये अपने आप में तीन शक्तियों की स्थापना करते हैं. इसके नीचे षोडश(16) पद्मदल होते हैं तथा इन षोडश पद्मदल के भीतर अष्टदल का निर्माण होता है, जो कि अष्ट(8) लक्ष्मी का प्रतीक होता है.
अष्टदल के भीतर चतुर्दश(14) त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो चतुर्दश शक्तियों के परिचायक हैं तथा इसके भीतर दस त्रिकोण खींचे जाते हैं. जो दस प्रकार की सम्पदा के प्रतीक हैं.
दस त्रिकोण के भीतर अष्ट त्रिकोण निर्मित होते हैं, जो अष्ट देवियों के सूचक कहे गए हैं. इसके भीतर त्रिकोण होता है, जो लक्ष्मी का त्रिकोण माना जाता है.
इस लक्ष्मी के त्रिकोण के भीतर एक बिन्दु निर्मित होता है, जो भगवती जगदंबा पराम्बा का प्रतीक है.
साधक को इस बिन्दु पर सोने के सिंहासन पर बैठी हुई माता लक्ष्मी के स्वरुप को अपने मन में धारण करना चाहिए.
श्रीयंत्र में समाहित हैं समस्त दैवी शक्तियां
श्रीयंत्र 2816 शक्तियों अथवा देवियों का सूचक है. श्री यंत्र की पूजा इन समस्त शक्तियों की एक साथ पूजा संपन्न होती है.
श्रीयंत्र का रूप ज्यामितीय होता है. इसकी संरचना में बिंदु, त्रिकोण या त्रिभुज, वृत्त, अष्टकमल का प्रयोग होता है.
तंत्र के अनुसार श्री यंत्र का निर्माण दो प्रकार से किया जाता है-
- एक अंदर के बिंदु से शुरू कर बाहर की ओर जो सृष्टि-क्रिया निर्माण कहलाता है.
- दूसरा बाहर के वृत्त से शुरू कर अंदर की ओर जो संहार-क्रिया निर्माण कहलाता है.
श्री यंत्र में 9 त्रिकोण या त्रिभुज होते हैं जो निराकार शिव की 9 मूल प्रकृतियों के प्रतीक होते हैं.
ऐसे स्थापित करें श्रीयंत्र
यहां पर हम आपको श्रीयंत्र बनाने और उसे स्थापित करने की मूल विधि बता रहे हैं. लेकिन सिर्फ पढ़कर इसकी विधिवत स्थापना संभव नहीं है. इसलिए गुरु का मार्गदर्शन अवश्य लें.
श्रीयंत्र को बनाना अपने आप में जटिल प्रक्रिया है. इसे जब तक सही तरीके से निर्मित नहीं किया जाए तब तक इसका लाभ मिल पाना संभव नहीं है. अच्छी तरह निर्मित श्रीयंत्र मंत्र सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठित होने के बाद साधक शीघ्र लाभ देता है.
श्रीयंत्र चाहे ताम्र पत्र पर उत्कीर्ण हो या फिर सोने या पारद से निर्मित हो. जब तक उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो जाए तब तक उसका लाभ मिल पाना संभव नहीं होता.
आप जब भी घर में श्रीयंत्र स्थापित करें तो प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र ही पूर्ण विधि-विधान के साथ स्थापित करें. मूल रुप से इसकी विधि इस प्रकार है. लेकिन इसमें कोई त्रुटि नहीं हो इसलिए गुरु की महत्ता सर्वोपरि है. उनके मार्गदर्शन में गुरुपूजन करते हुए इस कार्य की शुरुआत करें
- चावलों की ढेरी बनाकर उस पर एक सुपारी गणपति स्वरूप स्थापित कर लें. गणपति का पंचोपचार पूजन कुंकुम, अक्षत, चावल, पुष्प, इत्यादि से करें.
- बाजोट पर एक ताम्रपात्र में पुष्पों का आसन देकर श्रीयंत्र स्थापित करें.
- इसके बाद एकाग्रता पूर्वक निम्नांकित मंत्र द्वारा श्री यंत्र का ध्यान करें–
दिव्या परां सुधवलारुण चक्रयातां
मूलादिबिन्दु परिपूर्ण कलात्मकायाम।
स्थित्यात्मिका शरधनुः सुणिपासहस्ता
श्री चक्रतां परिणतां सततां नमामि॥
श्री यंत्र की स्थापना के पश्चात उसकी प्रार्थना निम्नांकित मंत्र द्वारा करें.
धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिर्मायुर्यशः श्रियम्।
तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मीं प्रयच्छ मे॥
यदि नित्य इस प्रार्थना का 108 बार उच्चारण किया जाए, तो अपने आप में अत्यन्त लाभ होता है.
ध्यान-प्रार्थना के पश्चात् श्रीयंत्र पर पुष्प अर्पित करते हुए निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें–
ॐ मण्डूकाय नमः।
ॐ कालाग्निरुद्राय नमः।
ॐ मूलप्रकृत्यै नमः।
ॐ आधारशक्तयै नमः।
ॐ कूर्माय नमः।
ॐ शेषाय नमः।
ॐ वाराहाय नमः।
ॐ पृथिव्यै नमः।
ॐ सुधाम्बुधये नमः।
ॐ रत्नद्वीपाय नमः।
ॐ भैरवे नमः।
ॐ नन्दनवनाय नमः।
ॐ कल्पवृक्षाय नमः।
ॐ विचित्रानन्दभूम्यै नमः।
ॐ रत्नमन्दिराय नमः।
ॐ रत्नवेदिकायै नमः।
ॐ धर्मवारणाय नमः।
ॐ रत्न सिंहासनाय नमः।
इसके बाद कमलगट्टे की माला से लक्ष्मी बीज मंत्र की एक माला मंत्र जप करें-
"ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः॥
मंत्रसिद्ध श्रीयंत्र के सामने कमलगट्टे की माला पर प्रतिदिन लक्ष्मी बीज मंत्र की एक माला का जाप महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्रदान करता है.
मंत्र जप के पश्चात् साधक लक्ष्मी आरती सम्पन्न कर, अपनी मनोकामना प्रकट करें.
श्रीविद्या उपासनामे भगवती के चार स्वरूपों का सेवन होता है.
श्री बालात्रिपुर सुंदरी = धर्म
श्री महात्रिपुर सुंदरी = अर्थ
श्री राज राजेश्वरी = काम
श्री ललितात्रिपुर सुंदरी = मोक्ष
यही चारो मनुष्य के जीवन के आधार और लक्ष्य हैं. जो कि सभी श्रीविद्या के प्रतीक श्रीयंत्र की उपासना से मनुष्य को प्राप्त हो जाते हैं.