रामायण में एक युद्ध देवी सीता ने भी लड़ा था. एक असुर के सामने श्रीराम भी असहाय हो गए थे, तब रणभूमि में सीता को भी आना पड़ा था. क्या आपकों पता है कि कुंभकर्ण का एक बेटा भी था. आखिर क्या है यह प्रसंग, कौन था कुंभकर्ण का बेटा.
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नई दिल्लीः लॉकडाउन का दौर जारी है और अब यह 3 मई तक बढ़ा दिया गया है. इस दौरान लोग बड़े ही चाव से दूरदर्शन के दशकों पुराने सीरियल देख रहे हैं. रामायण और महाभारत के प्रति दिलचस्पी अभी भी बनी हुई है और यह दोनों ही सीरियल फिर से चर्चा में हैं.
सोशल मीडिया पर इन दोनों को सीरियल्स पर धड़ल्ले से मीम बना रहे हैं और खूब ये खूब वायरल हो रहे हैं. लेकिन इससे इतर रामायण-महाभारत का कथानक और भी उम्दा और दिलचस्प है. रामायण में कई ऐसी कहानियां और प्रसंग हैं, जिन्हें आप नहीं जानते हैं, या कम ही कहे गए हैं.
क्या है वह अनोखा प्रसंग
रामायण में आप यही जानते हैं कि सीता हरण के कारण श्रीराम-रावण का युद्ध हुआ था. भीषण संग्राम के बाद रावण सहित राक्षस समाज मारा गया और विभीषण राजा बने. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक युद्ध देवी सीता ने भी लड़ा था. एक असुर के सामने श्रीराम भी असहाय हो गए थे, तब रणभूमि में सीता को भी आना पड़ा था. क्या आपकों पता है कि कुंभकर्ण का एक बेटा भी था. आखिर क्या है यह प्रसंग, कौन था कुंभकर्ण का बेटा.
कुंभकर्ण का बेटा, मूलकासुर
राक्षसराज रावण का छोटा विशालकाय भाई था कुंभकर्ण. ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण वह 6 महीने सोता था, एक दिन जागता था और खा-पीकर फिर सो जाता था. इसका एक बेटा था मूलकासुर. गलत ग्रह-दशाओं और मूल नक्षत्रों में जन्म लेने के कारण कुंभकर्ण ने उसे जंगल में फिकवा दिया था. यहां उसका मधुमक्खियों ने पालन पोषण किया था. बड़े होकर मूलकासुर ने ब्रह्मा जी की तपस्या की और उनसे अजेय होने का वरदान ले लिया.
इधर हो चुकी थी राम राज्य की स्थापना
राज्याभिषेक के बाद एक दिन श्रीराम सीता जैसे ही राजसभा पहुंचे, तुरंत ही विभीषण वहां गुहार लगाते हुए पहुंच गए. आते ही दुहाई और त्राहिमाम की पुकार से राजभवन गूंजने लगा. श्रीराम ने उन्हें हर प्रकार से सांत्व्ना दी और ढाढ़स बंधाते हुए इस तरह भयभीत होकर आने का कारण पूछा.
श्री राम ने सारी बात पूछी तो बताया कि कुभकर्ण का बेटा लंका पर चढ़ आया है. उसने मेरे वध का प्रण लिया है और फिर अयोध्या पर भी चढ़ाई की बात कह रहा है. वह अपनी पिता की मृत्यु का बदला लेना चाहता है. ऐसा कहते हुए विभीषण ने मूलकासुर के जन्म की सारी कथा सुना दी.
राम-विभीषण सेना सहित लंका पहुंचे
विभीषण की गुहार पर श्रीराम पुष्पक विमान से जल्द ही लंका पहुंचे. मूलकासुर को श्रीराम के आने की बात मालूम हुई, वह भी सेना लेकर लड़ने के लिए लंका के बाहर आ गया. भयानक युद्ध छिड़ गया. 7 दिनों तक घोर युद्ध होता रहा. मूलकासुर भगवान श्रीराम की सेना पर अकेले ही भारी पड़ रहा था. अयोध्या से सुमंत्र आदि सभी मंत्री भी आ पहुंचे. 7 दिन बाद भी कोई परिणाम नहीं निकल रहा था इसलिए भगवान भी चिंता में थे.
फिर ब्रह्माजी ने बताया उपाय
यु्द्ध की सुबह श्रीराम चिंतित थे यह देखकर वहां ब्रह्मा जी प्रकट हुए और मूलकासुर को अजेय होने के वरदान के बारे में साथ ही यह भी बताया कि मैंने इसे स्त्री के हाथों मरने का वरदान दिया है, यही इसका श्राप भी है. इसलिए आपके प्रयास निरर्थक हैं.
राम ने श्राप के विषय में पूछा तो ब्रह्मा जी ने बताया कि जब इसके भाई-बंधु लंका युद्ध में मारे जा चुके तो एक दिन इसने मुनियों के बीच दुख और क्रोध के आवेश में सीता माता को चंडिका कह दिया और कहा कि चंडी सीता के कारण मेरा समूचा कुल नष्ट हुआ.
इस पर एक मुनि ने नाराज होकर उसे शाप दे दिया- 'दुष्ट! तूने जिसे 'चंडी' कहा है, सीता का वही स्वरूप तेरी मृत्यु बनेगा. इस पर मूलकासुर ने मुनि को खा लिया. इस तरह युद्ध में देवी सीता को बुलाने पर राय बनी.
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देवी सीता के चंडिका स्वरूप ने किया घोर युद्ध
भगवान श्रीराम ने हनुमानजी और गरूड़ को तुरंत पुष्पक विमान से सीताजी को लाने भेजा. पति के संदेश को सुनकर सीताजी तुरंत चल दीं. भगवान श्रीराम ने युद्ध के बीच देवी सीता को सारा रहस्य बता ही रहे थे कि मूलकासुर ने शाश्वत युगल पर प्रहार कर दिया. फिर तो भगवती सीता को गुस्सा आ गया.
उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था. यह छाया सीता चंडी के वेश में लंका की ओर बढ़ चलीं.
असुर का किया वध
इधर मूलकासुर छद्म वेश में तांत्रिक क्रिया भी कर रहा था. श्रीराम ने वानरों से उसका यज्ञ खंडित करा दिया. मूलकासुर अपने असुर रूप में आकर देवी सीता के सामने आ गया और फिर उन्हें स्त्री समझकर हटने को कहा. देवी सीता अडिग रहीं.
जब मूलकासुर ने स्त्रियों पर हाथ न उठाने की बात कही तो क्रोधित देवी ने कहा-मू्र्ख मैं मृत्यु हूं. इतना सुनकर असुर ने उन पर प्रहार कर दिया. दोनों शक्तियों में कुछ देर घोर युद्ध चला, इसके बाद देवी ने अपने चंडिकास्त्र से असुर का सिर, धड़ से अलग कर दिया.
इसके बाद देवी सीता की चंडिका छाया उनमें समा गईं और फिर श्रीराम विभीषण को अभय देकर अयोध्या लौट आए. यह कथा रामचरित मानस से इतर, आनंद रामायण में मिलती है. यह रचना बंगाली में रामकथा का आख्यान करती है. बंगाल में देवी व काली पूजा की परंपरा है, जिसके आधार पर देवी सीता के चंडिका स्वरूप का वर्णन किया गया है.
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