मां दुर्गा की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. जब देवी का स्वरूप युद्ध में रत होता है तो इनका वाहन सिंह है. लेकिन भक्तों और साधकों दर्शन देते हुए देवी सुखासन में अष्टकमल पर विराजित होती हैं. उनका यह स्वरूप परम शांति देने वाला और मोक्षकारी है. इसलिए माता को सुखदायिनी भी कहा गया है.
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नई दिल्लीः चैत्र नवरात्र का पर्व देवी सिद्धिदात्री की पूजा के साथ समाप्त हो गया. सभी 9 देवियों में श्रेष्ठ और देवी भुवनेश्वरी का निकटस्थ स्वरूप यह देवी अष्ट सिद्धियों और नव निधियों की स्वामिनी हैं. महालक्ष्मी इन्हीं देवी का भौतिक स्वरूप हैं तो महाकाली सारी सिद्धियों के साथ पारलौकिक शक्ति हैं. अन्य आठ देवियों की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना करते हैं.
ऐसा है देवी का स्वरूप
मां दुर्गा की नवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है. मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं. जब देवी का स्वरूप युद्ध में रत होता है तो इनका वाहन सिंह है. लेकिन भक्तों और साधकों दर्शन देते हुए देवी सुखासन में अष्टकमल पर विराजित होती हैं. उनका यह स्वरूप परम शांति देने वाला और मोक्षकारी है. इसलिए माता को सुखदायिनी भी कहा गया है.
अष्टकमल के आठों दल आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं.
अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा,
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः।
अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं, देवी के दाहिनी ओर के ऊपर वाले हाथ में गदा और नीचे वाले हाथ में चक्र शोभिक है. बांई ओर के ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प और नीचे वाले हाथ में शंख विद्यमान है.
भक्त हनुमान को मिली थीं निधियां व सिद्धियां
हुनुमान चालीसा में चौपाई है, अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, असवर दीन जानकी माता. दरअसल माता सीता खुद महालक्ष्मी स्वरूप हैं. देवी भागवत के अनुसार आदिशक्ति ही की प्रेरणा श्रीहरि पालनकर्ता का कर्तव्य निभाते हैं. इसलिए अवतार भी लेते हैं. उनकी सहायता के लिए हर अवतार में देवी सिद्धिदात्री अंशावतार में शामिल होती हैं.
देवी ने जानकी स्वरूप में भक्त हनुमान को इन सिद्धियों के वरदान दिए थे. हनुमान रुद्रांश हैं. रूद्र के अंशावतार. इस तरह यह कड़ी अंत में कैलाश से ही जुड़ती है.
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शिव इसलिए कहलाते हैं अर्धनारीश्वर
सृष्टि के निर्माण से पहले देवी भुवनेश्वरी ने तीनों भुवनों की रचना की और फिर त्रिदेवों की उत्पत्ति का संकल्प किया. देवी पुराण के अनुसार केवल महादेव ने देवी के स्वरूप को सहचरी स्वीकार किया. तब देवी ने उन्हें सबसे पहले नश्वरता के ज्ञान का बोध कराया और महादेव का वैरागी स्वरूप अस्तित्व में आया.
जब उनके भीतर का मोह बिल्कुल समाप्त हो गया तो उन्हें सहज ज्ञान की ही तरह सिद्धियां प्राप्त हुईं. तब देवी ने कहा अब मेरे और आपके स्वरूप में कोई अंतर नहीं. इस तरह देवी के प्राकट्य स्वरूप में शिवांश दिखने लगा और महादेव के अर्धांग में देवी स्वरूप. तभी से वह अर्धनारीश्वर भी कहलाए.
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