ज्ञान की राह में जाति या कर्म नहीं हैं बाधा
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ज्ञान की राह में जाति या कर्म नहीं हैं बाधा

भारतीय शास्त्रों में यह स्पष्ट रुप से बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके सद्गति हासिल करने की राह में वंश या कर्म बाधा नहीं हैं. इसके लिए पुराणों में कई दृष्टांत दिए गए हैं. देवताओं के गुरु बृहस्पति का ज्ञान जरा पढ़िए-

ज्ञान की राह में जाति या कर्म नहीं हैं बाधा

ब्रह्माजी के कुल में एक बड़े ही धर्मात्मा और दानी राजा का जन्म हुआ. उनका नाम वसु था. वसु जहां से भी सम्भव हो ज्ञान इकट्ठा करते रहते थे. एक बार वह रैभ्य मुनि के साथ बृहस्पति से मिलने गए.

रैभ्य ने बृहस्पति से पूछा- मेरी एक शंका का समाधान करें. क्या अज्ञानी को भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है या बिना ज्ञान प्राप्त किए मोक्ष हो ही नहीं सकता? क्या मनुष्य की सद्गति उसके जन्म और कर्मों से प्रभावित होती है.  

बृहस्पति हंसने लगे. फिर बोले इस संदर्भ में ब्राह्मण और शिकारी की एक कथा सुनाता हूं. अत्रि कुल में जन्मे ब्राह्मण संयमन तथा नीच कर्म करने वाले बहेलिए निष्ठुरक की कथा आपका संदेह दूर करने में सहायता करेगी.

तीनों पहर पूजा पाठ करने वाले संयमन गंगा नहाने गए. वहां एक शिकारी दिखा. संयमन बोले- शिकारी यह जीवहत्या का काम ठीक नहीं इसे छोड़ दो. यह सुनकर शिकारी मुस्कराने लगा.

वह बोल पड़ा- सभी प्राणियों में आत्मा के रूप में भगवान बसते हैं. सच्चे पुरुष को चाहिए कि वह इस अहंकार को त्याग दे कि मैं कर्ता हूं. कोई कुछ नहीं करता. जो करता है सब ईश्वर करता है. सब प्रभु की लीला है तो ऐसे में क्या शिकार और क्या शिकारी. मारने वाला भी वही मरने वाला भी वही. आप किसी को हीन न समझें.

शिकारी होकर ऐसी ज्ञान की बाते कर रहा है यह सुनकर ब्राह्मण संयमन आश्चर्य में बोला- तुम कौन हो जो इतने तर्क के साथ अपनी बात रख रहे हो. शिकारी ने कोई ज़वाब नहीं दिया.

वह लोहे का एक जाल लेकर आया. जाल को सूखी लकड़ियों के ऊपर डाल दिया. फिर संयमन के हाथ एक लुकाठी देकर कहा- विप्रवर इन लकड़ियों में आग लगा दें.

संयमन के आग लगाने की देर थी. देखते ही देखते सूखी लकड़ियां धधककर जलने लगीं. जाल के विभिन्न छेदों से अग्नि की ज्वाला लहराने लगी.

शिकारी ने आग की ओर इशारा करते हुये कहा- विप्रवर आप इन छेदों में से निकलती आग की कोई एक ज्वाला या अग्निपुंज उठा लें क्योंकि अब मैं आग बुझाउंगा.

शिकारी ने आग पर जल फेंका तो पल भर में ही धधकती आग शांत हो गयी. शिकारी बोला- ऋषिवर जो आग आपने चुनी थी वह मुझे दे दें. उसी के सहारे मैं अपना जीवन यापन करुंगा.

संयमन ने आग पर निगाह डाली पर वहां अब आग कहां ! आग की सभी ज्वालायें कब की शांत हो चुकी थीं. संयमन ज्ञान को हासिल करने के लिए आंख मूंद कर शांत बैठ गये.

शिकारी ने कहा- यही हाल संसार का है. सबके मूल में भगवान की ही जोत जल रही है. यदि व्यक्ति अपने स्वाभाविक धर्म का अनुसरण करते हुए हृदय को परमात्मा से जोड़कर कोई भी शुभ-अशुभ कार्य करता है फिर उस कार्य को प्रभु को समर्पित कर देता है तो उसे न तो कोई दुःख होता है न ही वह कर्म संबंधी पाप पुण्य के चक्कर में पड़ता है.

इतना कहना भर था कि आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. रत्नों से सजे धजे कई विमान आसपास उतर आए. शिकारी निष्ठुरक अद्वैत ब्रह्म का उपासक था सो उसने योग विद्या से कई शरीर बना लिए तथा अनेक विमानों में बैठ स्वर्ग चला गया.

वृहस्पति बोले- तो हे राजन वसु और मुनिवर रैभ्य, इससे यह सिद्ध होता है, कि अपनी वृत्ति के अनुरूप कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने के बाद मुक्ति का अधिकारी हो जाता है.

 

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