ज्योतिष की नजर में होलाष्टक को एक दोष माना जाता है, जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है. इस वर्ष होलाष्टक 02 मार्च से प्रारंभ हो रहा है, जो 9 मार्च यानी होलिका दहन तक रहेगा.
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नई दिल्लीः भारतीय जनमानस में तिथियों का बड़ा महत्व है और प्रत्येक कार्य के लिए तिथियों का निर्धारण किया गया है. इन्हीं खास तिथियों में है होलाष्टक, जिनमें शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं. होलाष्टक का प्रभाव उत्तर भारत में अधिक देखने को मिलता है, हालांकि दक्षिण भारत में इसका प्रभाव कम ही है.
भारतीय मुहूर्त विज्ञान व ज्योतिष शास्त्र प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्तों का शोधन कर उसे करने की अनुमति देता है. इस प्रकार प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है.
कब से है होलाष्टक
ज्योतिष की नजर में होलाष्टक को एक दोष माना जाता है, जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण, आदि शुभ कार्य वर्जित हैं. फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक होलाष्टक माना जाता है. इस वर्ष होलाष्टक 02 मार्च से प्रारंभ हो रहा है, जो 9 मार्च यानी होलिका दहन तक रहेगा.
9 मार्च को होलिका दहन के बाद अगले दिन 10 मार्च को धुलेंडी है. इसे धुलि वंदन कहते हैं. इस दिन भी लोग खूब रंग खेलते हैं, जबकि रंग पंचमी का त्योहार 14 मार्च चैत्र कृष्ण पंचमी को है.
क्या है होलाष्टक
होलाष्टक आरंभ होते ही दो डंडों को स्थापित किया जाता है, इसमें एक होलिका का प्रतीक है और दूसरा प्रहलाद से संबंधित है. ऐसा माना जाता है कि होलिका से पूर्व 8 दिन दाह-कर्म की तैयारी की जाती है. यह मृत्यु का सूचक है. इस दु:ख के कारण होली के पूर्व 8 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य नहीं होता. जब प्रहलाद बच जाता है, उसी खुशी में होली का त्योहार मनाते हैं.
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यह है होलाष्टक की पौराणिक कथा
होलाष्टक की पौराणिक कथा भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है. प्रहलाद के पिता असुर हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी से अजेय वरदान प्राप्त किया था. उसने देवताओं को पराजित कर दिया और तीनों लोकों पर अत्याचार शुरू कर दिया था. घमंड में आकर उसने अपने राज्य में ईशपूजा बंद करा दी और खुद को भगवान कहने लगा.
उसके अहंकार को उसके पुत्र प्रह्लाद से ही धक्का पहुंचा जो कि विष्णु भक्त था. इससे हिरण्यकश्यप उसे शत्रु समझने लगा था. अपने पुत्र को मारने करने के लिए असुरराज ने फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से यातनाएं देना शुरू कर दी थीं.
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प्रह्लाद को यातना दिए जाने से राज्य में था शोक
भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद पर इन सभी यातनाओं का कोई असर नहीं हुआ. तब हिरण्यकश्यप ने फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर अपनी होलिका के साथ प्रहलाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई. होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकेगी. आग जलाने की व्यवस्था की गई और प्रहलाद को होलिका की गोद में बैठाकर आग जला दी गई.
इस यातना से भी भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका खुद इस अग्नि में जल गई. तभी से इस तिथि पर होली मनाई जाती है और इससे पहले आठ दिनों तक होलाष्टक रहता है, क्योंकि इन दिनों में प्रहलाद को यातनाएं दी गई थीं. दरअसल उस समय लोग शोक में थे, लेकिन होलिका के जल जाने से प्रसन्न हो गए थे.