साइलेंट किलर कहा जाने वाला हाइपरटेंशन (Hypertension) न केवल धीरे-धीरे लोगों की लोग जान ले रहा है बल्कि उन्हें बच्चा पैदा करने (Reproductive Health) में भी अक्षम बना रहा है. यह खुलासा मेडिकल एक्सपर्ट ने किया है.
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चेन्नई: साइलेंट किलर कहा जाने वाला हाइपरटेंशन (Hypertension) न केवल धीरे-धीरे लोगों की लोग जान ले रहा है बल्कि उन्हें बच्चा पैदा करने (Reproductive Health) में भी अक्षम बना रहा है. यह रिपोर्ट फैमिली प्लानिंग असोसिएशन ऑफ इंडिया (FPA India) ने दी है.
FPA India के 72 वर्ष पूरे होने पर संस्था की ओर से वेबिनार का आयोजन किया गया. जिसमें हेल्थ एक्सपर्ट ने कहा कि बाहरी तौर पर देखने पर हाइपरटेंशन (Hypertension) का कोई लक्षण नहीं दिखता. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति दूर से देखने पर सामान्य लगता है लेकिन अंदर ही अंदर वह घुटता रहता है. वह अपनी निराशा किसी से कह नहीं पाता और धीरे-धीरे इस बीमारी के दलदल में फंस जाता है.
फैमिली प्लानिंग से जुड़े एक्सपर्ट ने वेबिनार में कहा कि कोरोना काल ने इस बीमारी का प्रकोप और बढ़ा दिया है. नौकरी छिनने का डर, बीमारी के गिरफ्त में आने की चिंता और परिवार के पालन-पोषण में आने वाली समस्याओं ने लोगों को पहले से ज्यादा फिक्रमंद कर दिया है. जिससे वे अनचाहे तरीके से हाइपरटेंशन (Hypertension) का शिकार बन रहे हैं.
FPA की प्रेसिडेंट डॉक्टर रत्नामाला देसाई कहती हैं कि हाइपरटेंशन (Hypertension) के मामलों में कमी लाने के लिए सरकार को देश में नियमित रूप से हेल्थ चेक अप कैंप के आयोजनों को बढ़ावा देना चाहिए. इन आयोजनों में 35 से 65 साल के महिला-पुरुषों को खास तौर से बुलाया जाए. दरअसल यही उम्र बच्चे पैदा करने (Reproductive Health) की होती है. अगर इस आयु वर्ग के लोग एक बार हाइपरटेंशन का शिकार हो गए और उनका वक्त रहते इलाज नहीं हुआ तो वे बच्चे पैदा करने की क्षमता को खो सकते हैं.
चंडीगढ़ पीजीआई में डॉक्टर सोनू गोयल कहती हैं कि भारत में 15 से 49 साल की महिलाओं एक स्टडी की गई. जिसमें पता चला कि प्रत्येक 5 में से एक महिला इस बीमारी से जूझ रही है. हैरानी की बात ये है कि इन महिलाओं को यह भी पता नहीं है कि वे बीमार हो चुकी हैं. इसलिए वे इस बीमारी का कोई इलाज भी नहीं करवाती. इससे उनकी निजी जिंदगी और बच्चे पैदा करने (Reproductive Health) की क्षमता पर भी असर पड़ रहा है.
हाइपरटेंशन (Hypertension) को आमतौर पर हाई ब्लड प्रेशर या हाई बीपी की समस्या कहा जाता है. देश की करीब 10 करोड़ 13 लाख की आबादी इस समस्या से जूझ रही है. यह बीमारी आकस्मिक मौतों का बड़ा कारण होती है. आंकड़ें कहते हैं कि भारत में करीब 30 परसेंट अडल्ट इस वक्त हाइपरटेंशन का शिकार हैं और अपना इलाज करवा रहे हैं. वहीं इस संख्या से कहीं ज्यादा लोगों को अपनी हालत का पता ही नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में CVD की वजह से हर साल 17.7 एक करोड़ 70 लाख से ज्यादा लोग दम तोड़ जाते हैं. WHO का अनुमान है कि इनमें से करीब 20 पर्सेंट मौतें यानी कि 36 लाख लोग अकेले भारत में मारे जाते हैं. इसकी वजह ये है कि लोगों में हाइपरटेंशन को लेकर जागरूकता नहीं है. इसकी वजह से इस बीमारी से जूझ रहे लाखों लोग डिटेक्ट नहीं हो पाते और वक्त रहते उनका इलाज भी शुरू नहीं हो पाता. जिससे उनकी जान के लिए खतरा हर पल बढ़ता जाता है.
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भारत सरकार देश में हाइपरटेंशन (Hypertension) की दर को 30 से घटाकर 25 पर्सेंट पर लाना चाहती है. इसके लिए 2025 तक का टारगेट तय किया है. इसके लिए सरकार को अगले चार वर्षों में इस बीमारी से जूझ रहे 4.5 करोड़ लोगों के बेहतर इलाज के इंतजाम तेज करने होंगे. एक्सपर्टों के मुताबिक दुनिया में होने वाली अधिकतर मौतों में दिल से जुड़ी बीमारियों यानी Cardiovascular disease (CVD) का सबसे बड़ा योगदान है.
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