AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसले पर छिड़ी बहस, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिया बड़ा बयान
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AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसले पर छिड़ी बहस, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिया बड़ा बयान

AMU Minority Status: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के सवाल पर एक नए मोड़ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि 1981 में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इस मामले को वृहद पीठ को भेजना त्रुटिपूर्ण था.

AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने के फैसले पर छिड़ी बहस, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दिया बड़ा बयान

AMU Minority Status: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के सवाल पर एक नए मोड़ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि 1981 में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इस मामले को वृहद पीठ को भेजना त्रुटिपूर्ण था. न्यायमूर्ति सूर्यकांत का मानना है कि यह फैसला प्रधान न्यायाधीश के ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ के अधिकार को चुनौती देता है, जो तय करते हैं कि कौन-से जज कौन से मामले देखेंगे.

1981 में वृहद पीठ को मामला भेजा जाना क्यों बताया त्रुटिपूर्ण?

न्यायमूर्ति सूर्यकांत के अनुसार, दो न्यायाधीशों की पीठ ने 1967 के अजीज बाशा मामले के फैसले की समीक्षा के लिए मामला सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजा था, जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिला था. उनका मानना है कि यह निर्णय प्रधान न्यायाधीश की विशेष शक्तियों का हनन था, क्योंकि सामान्य नियम के अनुसार, दो न्यायाधीशों की पीठ को यह अधिकार नहीं होता कि वे वृहद पीठ के फैसले पर सवाल उठाकर मामला सीधे बड़ी पीठ को भेज सकें.

अल्पसंख्यक संस्थानों पर संविधान की धारा 30 का संरक्षण

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत सभी अल्पसंख्यक संस्थानों को संरक्षण प्राप्त है. इस धारा के अंतर्गत अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का अधिकार दिया गया है. उनके अनुसार, यह अधिकार संविधान लागू होने से पहले बने अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी लागू होता है.

प्रधान न्यायाधीश के अधिकारों की भूमिका

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का यह भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 145 के अनुसार, पीठों की संरचना का अधिकार केवल प्रधान न्यायाधीश को है. प्रधान न्यायाधीश, ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ के रूप में यह तय करते हैं कि कितने और कौन-से जज मामले की सुनवाई करेंगे. इस प्रकार, 1981 में एएमयू के मामले को वृहद पीठ को भेजना अनुचित था और इससे प्रधान न्यायाधीश के अधिकार कम हुए.

चार-तीन के बहुमत से आया फैसला

सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के फैसले को पलट दिया. बहुमत वाले फैसले को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने लिखा, जिसमें यह कहा गया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर एक नियमित पीठ फैसला करेगी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपने अलग विचार में बताया कि इस निर्णय को एक स्वतंत्र पीठ को सौंपा जाएगा.

सही पीठ को मामला सौंपने की जरूरत

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का मानना है कि न्यायालय की प्रक्रियाओं का पालन करते हुए प्रधान न्यायाधीश ही यह तय करें कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के इस संवेदनशील मामले को किस पीठ को सौंपना है. इससे न केवल न्यायालय की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बनी रहती है, बल्कि यह प्रधान न्यायाधीश के अधिकारों की भी रक्षा करता है.

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