Rakshabandhan 2022: एक ऐसा गांव जहां भाइयों की कलाई हमेशा रहती है सूनी, रक्षा सूत्र बन जाता है मौत का कारण, जानें क्या है श्राप
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Rakshabandhan 2022: एक ऐसा गांव जहां भाइयों की कलाई हमेशा रहती है सूनी, रक्षा सूत्र बन जाता है मौत का कारण, जानें क्या है श्राप

Raksha Bandhan 2022: गाजियाबाद के सुराना गांव को लेकर कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले रक्षाबंधन के दिन ही यहां मोहम्मद गोरी ने जो नरसंहार किया था, उसकी नकारात्मकता आज तक बसती है. तबसे लेकर वर्तमान समय तक यहां रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता. मनाने की कोशिश भी की गई तो नतीजे खौफनाक निकले. पढ़ें क्या है यह अजीब कहानी-

Rakshabandhan 2022: एक ऐसा गांव जहां भाइयों की कलाई हमेशा रहती है सूनी, रक्षा सूत्र बन जाता है मौत का कारण, जानें क्या है श्राप

Raksha Bandhan 2022: राखी का त्योहार यूं तो हिंदू धर्म के सबसे पावन पर्वों में से एक है, लेकिन यही राखी गाजियाबाद के मुरादनगर स्थित एक गांव में जहां रक्षाबंधन को 'काला दिन' माना जाता है और कोई बहन अपने भाई को राखी नहीं बांधती. यह गांव है सुराना. इस गांव में भाइयों की कलाई रक्षाबंधन पर भी सूनी रहती है और बहनों को कोई उपहार नहीं मिलता. माना जाता है कि इस काले दिवस की कहानी वीर सम्राट पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी है. 

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छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का गांव
भाई-बहन के अटूट बंधन के त्योहार को काले दिवस के रूप में मनाने के पीछे सैकड़ों साल पुरानी वजह है. सुराना गांव के लोग मानते हैं कि यह दिन अपशगुन से भरा है. दरअसल, बताया जाता है कि इस गांव में छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रिय रहते हैं. कहा जाता है कि छाबड़िया गोत्र के अहिर ने राजस्थान के अलवर से आकर यहां ठिकाना बनाया था और यह गांव बसाया था. कई सालों पहले इस गांव का नाम सोनगढ़ हुआ करता था. 

मोहम्मद गोरी ने खत्म कर दिया था पूरा गांव
गांव के लोगों के अनुसार, कई सौ साल पहले राजस्थान से पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह यहां आए और हिंडन के किनारे में रहने की जगह बनाई. मोहम्मद गोरी को इसका पता चला तो उसने कत्ल-ए-आम करने की ठानी. इसके बाद उसने कई हाथी भेजे और गांववासियों को हाथियों के पैरों तले कुचलवा दिया. कुछ ही समय की तबाही के बाद पूरा गांव ही खत्म हो गया. बताया जाता है कि वह काला दिन रक्षाबंधन का ही था. उस दिन के बाद से सुराना गांव में राखी का त्योहार नहीं मनाया जाता. 

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मनाया गया था रक्षाबंधन, हुआ था अपशकुन
गांव के बुजुर्गों ने आज तक यह त्योहार नहीं मनाया और अपने बच्चों को भी यही समझाया. लेकिन, आज की पीढ़ी कहां पुरानी बातों पर विश्वास करती है. नई पीढ़ी को समझाना भी मुश्किल है. इसलिए युवा पीढ़ी ने कई बार परंपरा तोड़ते हुए रक्षाबंधन मनाने की कोशिश की. इसके बाद एक बार परिवार में किसी की मौत हो गई. दूसरी बार, परिवार में अचानक लोगों की तबीयत खराब होने लगी. 

माना जाता है सुराना गांव को लगा है श्राप
जब ये घटनाएं बढ़ने लगीं तो बच्चों को फिर समझाया-बुझाया गया और राखी का त्योहार मनाने से मना किया गया. इसके बाद रक्षाबंधन का त्योहार मनाने वाले लोगों ने गांव के कुलदेव से माफी मांगी और दोबारा त्योहार न मनाने की बात कही. गांववासियों का कहना है कि सुराना गांव को श्राप मिला है. यही वजह है कि यहां पर बहन एक बार भी भाई को राखी बांध दे, तो गांव में समस्याएं आ जाती हैं. 

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