Chhath puja ki vidhi in hindi: लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत इस साल 28 अक्टूबर से हो रही है.
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CHHATH PUJA 2022: यूपी, बिहार और झारखड समेत जहां भी बिहार और पूर्वांचल के लोग रहते हैं, वहां पर बड़े ही धूम-धाम से झठ का महापर्व मनाते हैं. दिवाली बितने के बाद से छठ की तैयारियां तेज हो गई हैं. लोग छठ व्रत में लगने वाले समानों की खरीदारी शुरू कर दिए हैं. साथ ही छठ घाट की साफ सफाई भी शुरू हो गई है. छठ 2022 में कई ऐसे परिवार हैं जो पहली बार छठ का व्रत रखेंगे. इसलिए हम पहली बार छठ का निर्जला व्रत रखने वालों को छठ पूजा में कौन-कौन से सामानों की जरूरत पड़ती है और क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए इसके बारे में बताने जा रहे हैं.....
28 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ हो रही छठ पूजा की शुरुआत
लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत इस साल 28 अक्टूबर से हो रही है. छठ पर्व भगवान सूर्य की उपासना का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है. इस साल छठ महापर्व की शुरूआत 28 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ हो रही है.
छठ व्रत में लगने वाले सामान
अगर आप पहली छठी मईया का व्रत रख रही है तो आपको कोशी भरना जरूरी होता है. कोशी के लिए इन सामानों की जरूरत पड़ती है
नहाए खाए के साथ होती है छठ की शुरूआत
पहली बार छठ का व्रत रखने वाली छठ व्रती को नहाए खाए वाले दिन दाल-चावल और लौकी की सब्जी खाना होता है. इसी दिन से छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है. इसके अगली खरना होता है. खरना वाले दिन छठ व्रती को रसियाव (गुड़ की खीर) और रोटी खाना होता है. इसके बाद छठ व्रती को प्रसाद के लिए गेहूं धोकर सुखाना होता है. गेहूं सुखाते वक्त इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई चिड़िया उस गेहूं को जुठा ना कर दे. इसलिए जबतक गेहूं सुख ना जाए तबतक उसकी रखवाली करनी होती है. इसके बाद गेहूं का पिसवा जाता है. छठ से एक दिन पहले मिट्टी के चूल्हे पर छठी मईया का प्रसाद ठेकुआ को तैयार किया जाता है.
सूर्य देव को संध्या अर्घ्य का विधान
शाम को सूर्य देव को संध्या अर्ध्य दिया जाता है. सूर्य देव को कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को संध्या अर्ध्य दिया जाता है. डुबते सूर्य को संध्या अर्घ्य देने का रिवाज केवल छठ में ही है. सूर्य देव को अर्घ्य देकर, पांच बार परिक्रमा लगाई जाती है. मान्यता है कि सायंकाल में सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए शाम के समय सूर्य देव की अंतिम किरण प्रत्यूषा को संध्या अर्ध्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.सायंकाल को बांस की टोकरी में विभिन्न प्रकार के फलों, चावल के लड्डु और ठेकुआ से सूर्य अर्ध्य के सूप को सजाया जाता है. इसके बाद व्रती अपने परिवार संग सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण पूर्ण होता है
इसके अगले दिन यानी चौथे दिन सुबह सूर्यदेव को दूसरा अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण पूर्ण किया जाता है.महापर्व में अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा होती है. छठ पूजा के दौरान शादीशुदा महिलाएं सूरज को अर्घ्य देकर संस्कारवान और स्वस्थ संतान प्राप्ति के लिए भगवान राम और सूर्यदेव से प्रार्थना करती हैं. ऐसा माना जाता है कि संतान प्राप्ति के लिए छठ पर्व का बड़ा महत्व है. कहते हैं इस व्रत से संतान सुख प्राप्त होता है. वहीं, जब पांडव राजपाट गंवाकर वन-वन भटक रहे थे तब भी द्रोपती ने संतान प्राप्ति के लिए छठ पूजा की थी.
छठ व्रत में क्या करें और क्या ना करें