Dwadash Madhav: महाकुंभ की यात्रा में त्रिवेणी संगम में पावन डुबकी के साथ ही द्वादश मंदिरों की परिक्रमा का भी विशेष महत्व है. द्वादश माधव की परिक्रमा के महात्म्य को जानने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मेला क्षेत्र के सेक्टर-1 काली सड़क स्थित नमामि गंगे के एग्जीबिशन हॉल पहुंच रहे हैं.
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Dwadash Madhav: महाकुंभ की यात्रा में त्रिवेणी संगम में पावन डुबकी के साथ ही द्वादश मंदिरों की परिक्रमा का भी विशेष महत्व है. द्वादश माधव की परिक्रमा के महात्म्य को जानने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मेला क्षेत्र के सेक्टर-1 काली सड़क स्थित नमामि गंगे के एग्जीबिशन हॉल पहुंच रहे हैं.
इंटैक ने लगाई है गैरली
इस हॉल के दाईं ओर किनारे पर इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इंटैक) ने द्वादश माधव परिक्रमा को लेकर गैलरी स्थापित की है. इस गैलरी में चित्रों समेत द्वादश मंदिरों के महत्व और परिक्रमा के विषय में संपूर्ण जानकारी दी गई है. पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रयागराज के संगम के निकट कल्पवास और त्रिवेणी संगम में स्नान का फल द्वादश माधव मंदिरों की परिक्रमा करने के बाद ही प्राप्त होता है.
भगवान विष्णु की दुर्लभ मूर्तियों की रेप्लिका भी स्थापित
इंटैक ने नमामि गंगे एग्जीबिशन हॉल में द्वादश माधव परिक्रमा गैलरी का निर्माण किया है. यहां दसवीं और 11वीं शताब्दी की भगवान विष्णु की दुर्लभ मूर्तियों की रेप्लिका भी स्थापित की गई है. इसमें भगवान विष्णु की एक मूर्ति दुर्लभ योग मुद्रा में भी है. नमामि गंगे के एग्जीबिशन हॉल में आने वाले श्रद्धालु द्वादश माधव परिक्रमा की आकर्षक गैलरी में भी समय बिता रहे हैं और द्वादश माधव के पौराणिक महात्म्य के विषय में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं.
बुकलेट भी प्रकाशित की है
यही नहीं, इंटैक ने द्वादश माधव मंदिर के पुजारियों, समिति के सदस्यों और अन्य सक्षम लोगों की मदद से शोध कर एक बुकलेट भी प्रकाशित की है. द्वादश माधव मंदिर (श्री वेणी माधव, श्री आदि माधव, श्री मनोहर माधव, श्री बिंदु माधव, श्री गदा माधव, श्री चक्र माधव, श्री शंख माधव, श्री अक्षय वट माधव, श्री संकष्टहर माधव, श्री अनंत माधव, श्री असि माधव और श्री पद्म माधव) प्रयागराज के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित हैं.
त्रेतायुग में भी होती थी परिक्रमा
त्रेतायुग में महर्षि भारद्वाज के निर्देशन में 12 माधव की परिक्रमा की जाती थी, लेकिन मुगल और ब्रिटिश प्रशासन के दौरान, द्वादश माधव के मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था, जिससे परिक्रमा की परंपरा कई बार रुकी और कई बार पुनः शुरू हुई. 1947 में स्वतंत्रता के बाद, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1961 में माघ मास के दौरान द्वादश माधव मंदिरों की परिक्रमा का शुभारंभ किया. इस यात्रा में उनके साथ शंकराचार्य निरंजन देवतीर्थ और धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज भी शामिल हुए.
दिव्य स्वरूप प्रयागराज में है स्थित
द्वादश माधव (12) भगवान श्री विष्णु के बारह दिव्य स्वरूप तीर्थराज प्रयाग की आध्यात्मिक विरासत के केंद्र में अवस्थित हैं. गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम त्रिवेणी के निकट स्थित ये मंदिर भगवान श्री विष्णु की शाश्वत उपस्थिति के प्रतीक माने जाते हैं.
क्या है शास्त्रीय मान्यता
शास्त्रीय मान्यता है कि भगवान श्री विष्णु ने त्रिवेणी संगम की पवित्रता की रक्षा और वहां आने वाले असंख्य श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के लिए इन द्वादश स्वरूपों को धारण किया था. एक और धार्मिक मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवताओं के साथ भगवान ब्रह्मजी ने श्री विष्णु से निवेदन किया कि वो संरक्षक के रूप में प्रयाग क्षेत्र में स्थापित हों. भगवान श्री विष्णु ने प्रार्थना स्वीकार करते हुए द्वादश माधव के रूप में प्रयाग क्षेत्र की रक्षा करने का संकल्प लिया.
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