महाकुंभ मेले में कैसे करें पंडों की पहचान, सोने का नारियल-चांदी के कटोरे से लेकर डमरू-पेटारी तक ट्रेडमार्क
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महाकुंभ मेले में कैसे करें पंडों की पहचान, सोने का नारियल-चांदी के कटोरे से लेकर डमरू-पेटारी तक ट्रेडमार्क

प्रयागराज महाकुंभ में रिकॉर्ड संख्‍या में श्रद्धालु स्‍नान करने पहुंच रहे हैं. प्रशासन का अनुमान है कि महाकुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे. करोड़ा श्रद्धालु संगम किनारे तंबुओं में रहकर एक महीने तक कल्‍पवास भी कर रहे हैं.

Mahakumbh 2025

Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुंभ में रिकॉर्ड संख्‍या में श्रद्धालु स्‍नान करने पहुंच रहे हैं. प्रशासन का अनुमान है कि महाकुंभ में 40 करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे. करोड़ा श्रद्धालु संगम किनारे तंबुओं में रहकर एक महीने तक कल्‍पवास भी कर रहे हैं. तंबुओं की भूल-भुलैया में किसी शिविर तक आसानी से पहुंच पाना मुश्किल भरा होता है. ऐसे में शिविरों पर ऊंचे-ऊंचे लहराते ध्वज, पताकाएं और परंपरागत चिह्न हैं न. इन्हें देखिए और शिविर तक पहुंच जाइए.  

पंडों के शिविर तक पहुंचाने का काम करते हैं 
दरअसल, महाकुंभ में श्रद्धालु एक महीने तक कल्‍पवास करने आते हैं. ऐसे में ये श्रद्धालु किसी पंडा, पुरोहित या साधु संतों के शिविर में रहते हैं. महाकुंभ में शिविर लगाए पंडा और तीर्थपुरोहितों की पहचान इनकी नाम से ज्‍यादा इनके झंडों के निशान से होती है. पूरे माघ मेला क्षेत्र में तंबुओं के बीच तरह-तरह के ऊंचे-ऊंचे निशान लटकाए रहते हैं. साथ ही धर्म ध्‍वजा भी फहराए जाते हैं. इनकी पहचान इन्‍हीं धर्म ध्‍वजा या झंडों के निशान से होते है. 

ट्रेडमार्क बन गए पंडों के ये निशान 
सदियों से चले आ रहे झंडों के निशान अब इनके ट्रेडमार्क हो चुके हैं. इनके अजब-गजब निशान से पूरे मेले भर इनकी पहचान होती है. इतना ही नहीं मेला समाप्‍त होने के बाद भी गंगा किनारे ये पंडे अपने निशान के साथ मिल जाएंगे. हाथी वाले, डमरू वाले, पेटारी वाले, चांदी के कटोरे वाले और सोने का नारियल वाले जैसे इनके निशान महाकुंभ के बाद भी दिख जाएंगे. ये पंडे अपने निशान लंबे बांस पर लटका देते हैं. बाकी झंडों पर भी वही निशान प्रिंटेड रहता है जो हमेशा ऊपर फहरता रहता है. यह करीब एक किलोमीटर दूर से ही दिख जाता है. 

हर रंग का खास मतलब 
कहीं भगवा रंग की कोन वाली पताका, कहीं पीले, कहीं झंडों में सूर्य देव की बनावट तो किसी पताका में चमकीले गोटे की सजावट, यह ध्वज पताकाएं तीर्थ यात्रियों को शिविरों के पते बताने के साथ साथ ही एक खास संदेश भी देते हैं. तीथु पुरोहितों का कहना है कि प्राचीन काल में यह व्‍यवस्‍था इसलिए बनाई गई थी ताकि दूर से आने वाले श्रद्धालु उसी निशान को देखकर कहीं भी रहें, आ जाएं. हर झंडे के निशान का मतलब भी खास होता है. जैसे लाल रंग लक्ष्मी का, पीला रंग एश्वर्य, ज्ञान और विजय का, सफेद रंग शांति का, हरा रंग बुद्धि यानी भाग्य उदय होने का, भगवा रंग ऊर्जा, काला रंग शनि दोष समाप्त होने का है. लाल-पीले रंग के ये धर्म ध्‍वजा इनकी पहचान सदियों से बताते चले आ रहे हैं. 

 

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