Lalita Devi Dham: 51 शक्तिपीठों में से एक ललिता देवी धाम, संगम स्नान के बाद दर्शन का है विशेष महत्व
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Lalita Devi Dham: 51 शक्तिपीठों में से एक ललिता देवी धाम, संगम स्नान के बाद दर्शन का है विशेष महत्व

Lalita Devi Dham: जप, तप और आध्यात्म की नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का भव्य और दिव्य आयोजन हो रहा है. संगम तट पर रोजाना लाखों श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश लोग शक्तिपीठ मां ललिता देवी के दर्शन पूजन भी कर रहे हैं. माता के 51 शक्तिपीठ में से मीरापुर स्थित ललिता देवी धाम एक है.

Lalita Devi Dham: 51 शक्तिपीठों में से एक ललिता देवी धाम, संगम स्नान के बाद दर्शन का है विशेष महत्व

Lalita Devi Dham: जप, तप और आध्यात्म की नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का भव्य और दिव्य आयोजन हो रहा है. संगम तट पर रोजाना लाखों श्रद्धालु डुबकी लगा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश लोग शक्तिपीठ मां ललिता देवी के दर्शन पूजन भी कर रहे हैं. माता के 51 शक्तिपीठ में से मीरापुर स्थित ललिता देवी धाम एक है.

विशेष फल की होती है प्राप्ति

मान्यता है कि जो श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के बाद शक्तिपीठ मां ललिता देवी के दर्शन-पूजन करते हैं, तो उन्हें विशेष फल की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि शक्तिपीठ ललिता देवी मंदिर में सती की उंगलियां गिरी थीं. हर रोज यहां काफी संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है. 

दर्शन से पूरी होती है मनोकामनाएं

मंदिर के पुजारी पंडित शिव मूरत मिश्र ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को बताया कि "कुंभ में स्नान का बेहद महत्व है. संगम में स्नान से काफी पुण्य मिलता है. अगर आप माघ मेला में शामिल होने के लिए जा रहे हैं, तो प्रयाग में मां ललिता माता के दर्शन करने का विशेष महत्व है. माता के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं."

पांडवों से जुड़ा है इतिहास

पुजारी ने यह भी बताया कि "जब पांडव लाक्षागृह से बचकर निकले थे, तो वे प्रयागराज के इसी धाम पर रुके थे. उन्होंने यहीं पर एक रात विश्राम किया था. उन्होंने इसी जगह पर देवी ललिता की स्तुति की थी. आज भी यहां वह पांडव कुंड मौजूद है, जहां रात भर पांडव रुके थे."

माता करती हैं हृदय में वास

यहां पर दर्शन करने आए एक श्रद्धालु ने बताया कि "मां ललिता हर किसी के हृदय में वास करती हैं और सच्चे दिल से मांगी हर मनोकामना को पूरा करती हैं." पौराणिक मान्यताओं की बात की जाए तो सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा दामाद भगवान शिव का अपमान न सह सकीं, तो उन्होंने नाराज होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था.

क्या है पौराणिक मान्यता

जब यह बात भगवान शिव को पता चली, तो वह उनके शव को लेकर क्रोध में विचरण करने लगे. माता सती से भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट दिया. चक्र से कटकर अलग होने पर जिन 51 स्थानों पर सती के अंग गिरे, वे पावन स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुए. यहां माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूप में विराजित हैं.

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