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Zee News Time Machine: Zee News के स्पेशल शो टाइम मशीन में आज बात 60 साल पहले यानी 1962 की. ये जंग का साल था, जब हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे लगाने वाले हिंदुस्तान पर चीन ने हमला किया. लेकिन यहां बात सिर्फ जंग की नहीं होगी बल्कि उसमें लड़ने वाला एक बहादुर हिंदुस्तानी पर भी बात होगी जो 203 दिनों तक जंग में लापता होने के बाद भारत लौट आया था. इसी साल चीन से जंग जीत न पाने पर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को जमकर कोसा गया फिर भी जनता ने जंग लड़ने के लिए उन्हें 50 करोड़ रुपए का चंदा दिया. जंग का आलम ये था कि नेहरू ने उसे रुकवाने के लिए महायज्ञ तक करवाया. स्वर कोकिला लता मंगेश्कर को स्लो पॉयजन देने की खबर उस वक्त की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज थी. उस साल अभिनेता दिलीप कुमार नजर आए तो पहलवान दारा सिंह भी पटखनी देते दिखे. चलिए टाइम मशीन में जानते हैं 60 साल पुरानी ब्लैक एंड वाइट की दुनिया को...
फर्स्ट लेडी का भारत दौरा
अमेरिका की फर्स्ट लेडी जैकलीन कैनेडी थीं और जैकलीन की वो शख्स थीं जो अमेरिका की ओर से भारत का दौरा करने वाली पहली फर्स्ट लेडी थीं. जैकलीन ने साल 1962 में भारत का दौरा किया. 12 मार्च को पालम एयरपोर्ट पर पहुंचीं और इस दौरान वो अपनी बहन ली रेड्जविल के साथ भारत दर्शन के लिए आई थीं. जैकलीन का ये भारत दौरा पूरे 9 दिनों के लिए था. भारत के कई शहरों में वो घूमीं और इसके साथ ही वो पाकिस्तान का दौरा भी करने गईं थीं. अपने इस सफर में जैकलीन ने बच्चों के अस्पताल, गार्डन और राष्ट्रपति भवन समेत कई धार्मिक स्थलों के भी दर्शन किए थे. उस वक्त इंदिरा गांधी ने जैकलीन को होस्ट किया था.
दिलीप कुमार और राज कपूर का क्रिकेट प्रेम
दिलीप कुमार केवल सिनेमा ही नहीं, बल्कि फुटबॉल और क्रिकेट के भी दीवाने थे. उन्हें क्रिकेट के मैदान पर बल्ले के साथ चौके और छक्के लगाते हुए भी देखा गया था. साल 1962 में सिने वर्कर्स के लिए फंड इकठ्ठा करने के लिए राज कपूर और दिलीप कुमार की टीम के बीच क्रिकेट मैच खेला गया था. इस मैच में दिलीप कुमार ने राज कपूर की गेंद पर शानदार चौके जड़े थे. महमूद, प्राण, शम्मी और शशि कपूर जैसे दिग्गज कलाकार भी मैच खेलने आए थे. इस मुकाबले के दौरान मशहूर कॉमेडियन आईएस जौहर और जॉनी वॉकर ने भी अपने अंदाज से सबको खूब हंसाया था. मैच की कमेंट्री राज मेहरा कर रहे थे. हालांकि ये मैच राजकपूर की टीम जीती थी. लेकिन टीमों ने जिस तरह एक-दूसरे की हौसलाअफजाई की, उसने सबका दिल जीत लिया था.
नेहरू को 'ना' कहना पसंद था?
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को लेकर कई किस्से कहानियां हैं. लेकिन उनकी एक मनमानी ने एक वक्त पर सबको चौंका दिया था. दरअसल नेहरू ने सुरक्षा के मामले में देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल और 1957 से 1961 के बीच चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थिमैया की सलाहों को सुनने और समझने से इनकार कर दिया था. देश की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इन दोनों ने ही पंडित नेहरू को चीन को लेकर भारत के सैन्य क्षमता के बारे में समय-समय पर आगाह किया, लेकिन नेहरू ने इनकी सलाह को तवज्जो नहीं दी, जिसका परिणाम 1962 में चीन से युद्ध के रूप में देखना पड़ा. चीन जिस तरह तिब्बत में अपनी उपस्थित बढ़ा रहा है और वहां पर सैन्य कार्रवाई कर रहा है, उससे चीन की मंशा पर विश्वास नहीं किया जा सकता. इसके विपरीत चीन को भारत का मित्र मानने पर आप (नेहरू) आमादा हैं. चीन का विश्वास प्राप्त करने के लिए भारत ने उसकी संयुक्त राष्ट्रसंघ की सदस्यता का पुरजोर समर्थन किया, लेकिन चीन हम पर विश्वास नहीं करता है.
जब देश की जनता ने दिए 50 करोड़ रूपये
जब-जब भारत पर कोई विपदा आई, तब-तब देश की जनता ने तन-मन-धन से सहयोग दिया और ये सहयोग गरीबी की उस हालत में भी कम नहीं हुआ, जब देश की अधिसंख्यक जनता के पास दो वक्त का भरपेट भोजन तक नहीं हुआ करता था. 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सेना को संसाधन देने के लिए देशवासियों से आर्थिक सहयोग देने की अपील की. अपील होते ही देश की गरीब और भूख से पीड़ित जनता ने भी राष्ट्रीय कोष में चंद दिनों में 50 करोड़ रुपये का धन जमा करवा दिया. यह देशभक्ति देख तब नेहरू भी हैरान रह गए थे. बाद में इस राशि से सेना को भरपूर सहयोग दिया गया.
1962 का 'अभिनंदन'
मेजर धन सिंह थापा 1962 के ‘अभिनंदन’, जो 203 दिनों के बाद चीनी चौकसी को चीर कर जीवित लौटे थे. भारत-चीन युद्ध 1962 में सीमित जवानों और संसाधनों के बावजूद चीनी सेना के छक्के छुड़ा वाले मेजर धन सिंह थापा की कहानी सबको जाननी चाहिए. 20 अक्टूबर, 1962 को चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया, जिसका शिकार मेजर धन सिंह थापा की पैंगॉञ्ग झील के पास स्थित चौकी भी हुई, चीनी सेना ने तोप और मोर्टार से जोरदार बमबारी की. बमबारी के चलते वायरलेस पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और वहां तैनात थापा सहित सभी जवानों का सेना से सम्पर्क टूट गया. इस आक्रमण का मेजर धन सिंह थापा और उनके साथियों ने बहादुरी से सामना किया, परंतु गोला-बारूद खत्म हो जाने के बाद भारत के कई सैनिक शहीद हो गए, कई सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया और चौकी पर चीनी सेना का नियंत्रण हो गया.
जिसके बाद चीनी सेना भारत की तरफ आगे बढ़ते हुए कई और चौकियों पर कब्जा कर लिया और भारत ने ये मान लिया कि मेजर धन सिंह थापा अपने सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गए. 28 अक्टूबर, 1962 को भारतीय सेना के तत्कालीन जनरल पी. एन. थापर ने मेजर धन सिंह थापा की मौत की खबर उनके परिवार की दी. जिसके बाद परिवार ने भी उन्हें मृत मानकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया. कुछ दिन बाद सरकार ने मेजर धन सिंह थापा को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ देने की घोषणा भी कर दी. लेकिन भारत-चीन युद्ध समाप्ति के बाद जब चीन ने युद्ध में पकड़े गए सैनिकों के नाम की लिस्ट भारत को दी तो उसने मेजर धन सिंह थापा का भी नाम था.
लेकिन चीनी सैनिकों को चमका देते हुए मेजर धन सिंह थापा युद्धबंदी शिविर से भाग गए. कई दिनों तक पहाडियों में भटकते रहने के बाद भारत की सीमा में पहुंचे. मेजर घायल अवस्था में थे, पर उनके बुलंद हौसले ने अन्य भारतीय जवानो में भी नव उत्साह का संचार कर दिया. इस घटना ने ना केवल चीनी पक्ष का मनोबल गिराया, बल्कि भारतीय सैनिकों की निर्भीकता से दुनियाभर को संदेश भी दिया. जिसके बाद मेजर धन सिंह थापा को सेना मुख्यालय बुलाकर उन्हें सम्मानित किया गया.
वो सैनिक जिसने बिना हथियार किया 200 चीनी सैनिकों का सामना
बात उस योद्दा की जिसने 1962 के इंडो चाइना युद्ध में बिना हथियार के 200 चीनी सैनिकों को सामना किया ये हैं सूबेदार जोगिंदर सिंह. भारत-चीन बॉर्डर पर तैनात सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनकी बटालियन पर चीनी सैनिकों ने हमला कर दिया था. हथियार और असला-बारूद की कमी के बावजूद भी सूबेदार जोगिंदर की बटालियन ने इन चीनी सैनिकों को पीछे खदेड़ा. एक दिन बाद फिर 200 चीनी सैनिकों ने बटालियन पर हमला किया उस वक्त जोगिंदर सिंह ने अपने कमांडर लेफ्टिनेंट हरिपाल कौशिक से गोला-बारूद भेजने को कहा- मगर उस समय वहां तक गोला-बारूद पहुंचाना मुश्किल था, इसलिए कमांडर लेफ्टिनेंट ने घायल सूबेदार जोगिंदर सिंह को पीछे हटने की सलाह दी. जिसे मानने से इनकार करते हुए, घायल होने के बाद भी सूबेदार जोगिंदर सिंह ने न सिर्फ चीनी सैनिकों को पीछे खदेड़ा बल्कि 50 सैनिकों को मार भी गिराया.
बिना हथियार की लड़ाई में सूबेदार जोगिंदर सिंह आखिरकार थककर गिर गए. जिसके बाद उन्हें चीनी सेना ने पकड़ कर आत्मसमर्पण कराया. इसके बाद सूबेदार जोगिंदर सिंह की मृत्यु हो गई. सूबेदार जोगिंदर सिंह को भारत-चीन युद्ध में वीरता से लड़ने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था.
यज्ञ से रुका भारत-चीन युद्ध
भारत आदि काल से ही ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव रखने वाला देश रहा है. संकट की घड़ी हो या खुशी का अवसर हम भगवान को याद करना नहीं भूलते. अपने बड़े-बड़े कार्यों की पूर्ति के लिए पुरातन काल से राजा-महाराजाओं द्वारा यज्ञ अनुष्ठान किए जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1962 का युद्ध रोकने के लिए उस समय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने दतिया के पीताम्बरा पीठ में यज्ञ करवाया था.
भारत-चीन युद्ध के दौरान पंडित नेहरू से दतिया जिले के पीताम्बरा पीठ के महाराज ने ही उन्हें यज्ञ करवाने की बात कही थी जिसके बाद पंडित नेहरू ने पूजा-पाठ की इच्छा जाहिर की थी. नेहरू की पूजा के बाद पीताम्बरा पीठ में में 51 कुंडीय यज्ञ किया गया जो लगातार चलता रहा और अंतिम दिन जैसे ही पूर्णाहूति हुई, उसी समय नेहरूजी का संदेश आया कि चीन ने युद्ध रोक दिया है. भारत-चीन युद्ध विराम के कुछ दिन बाद नेहरू पीताम्बरा पीठ दर्शन करने भी गए थे. मध्य प्रदेश के दतिया जिले के मां पीतांबरा पीठ में आज भी वो यज्ञ शाला मौजूद हैं, जहां पूर्णाहूति दी गई थी. इसी के बाद से बड़ी-बड़ी हस्तियों ने यहां तंत्र पूजा करवाना शुरू कर दिया.
सांसद ने नेहरू से कहा- चीन को दे आओ अपना सिर
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद संसद में भारत-चीन युद्ध पर चर्चा शुरू हुई तब सभी सांसदों के मुंह से जो एक आवाज आ रही थी वो थी कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापस आना चाहिए, जिस पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा बयान दिया कि उसे सुनकर सांसद महावीर त्यागी भड़क गए. जवाहर लाल नेहरू ने कहा, 'क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई! चली गई तो चली गई! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था उस पर. क्या करेंगे हम उस जमीन का? ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना?'
नेहरू के ये जवाब महावीर त्यागी को चुभ गया और उन्होनें पलटवार करते हुए कहा, 'नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं है तो इसको भी काट कर चीन को दे दो.' महावीर त्यागी की ये बात सुनते ही प्रधानमंत्री नेहरू को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो शर्म से पानी-पानी हो गए.
200 किलो के किंग कोंग को दारा सिंह ने किया चित
अपने जमाने के प्रसिद्ध पहलवान दारा सिंह ने पूरे जीवनकाल में कुश्ती अभिनय और राजनीति के झंडे गाड़े. लेकिन उन्हें असली पहचान तब मिली जब उन्होंने विश्व चैंपियन किंग कोंग को धूल चटा दी. बचपन से ही अपने छोटे भाई सरदार सिंह के साथ गांव-गांव में पहलवानी करने वाले दारा सिंह ने 28 साल की उम्र में ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया जिसे आज तक याद किया जाता है. बात1962 की है जब 28 साल के दारा सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई चैलेंज में 200 किलो के किंग कोंग को हरा दिया था. किंग कोंग का असली नाम एमली काजमी थी. दारा सिंह ने लगभग 15 से 20 मिनट तक चले मुकाबले के बाद किंगकांग को अपने सिर के ऊपर उठाकर रिंग में फेंक दिया था.
उस वक्त लोगों को सबसे ज्यादा हैरानी इस बात की थी कि आखिर 130 किलो के दारा सिंह ने 200 किलो के किंग कोंग को कैसे उठा लिया. ऐसा कहा जाता है कि इस मुकाबले के लिए दारा सिंह के खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाता था. उनकी मां उन्हें रोज 100 बादाम के गिरी, शक्कर और मक्खन में मिलाकर दूध के साथ दिया करती थी, ताकि दारा सिंह अच्छे से पहलवानी कर सकें.
जंग कभी अच्छी नहीं होती और नेताओं से ज्यादा हमेशा नुकसान आम जनता का ही होता है. चीन के साथ जंग ने भारत को कई सबक दिए, जिसपर 1962 के बाद आने वाले कई सालों तक मंथन होता रहा. ये साल भारतीय फौजियों के जज्बे और हिम्मत की दाद देता है. साथ ही दिलीप कुमार और राज कपूर की क्रिकेट से मोहब्बत का भी साक्षी भी बना.
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