सरकारी मिन्नत से हार कर टेक कर्मचारी का बड़ा फैसला, बैंक से कर्ज लेकर गड्ढों को भरा
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सरकारी मिन्नत से हार कर टेक कर्मचारी का बड़ा फैसला, बैंक से कर्ज लेकर गड्ढों को भरा

Potholes repair in Bengaluru:  बेंगलुरु के टेक फर्म में काम करने वाला शख्स सड़क में गड्ढों को देख इस हद तक परेशान हुआ कि उसने मरम्मत कराने के लिए बैंक से कर्ज ले लिया.

सरकारी मिन्नत से हार कर टेक कर्मचारी का बड़ा फैसला, बैंक से कर्ज लेकर गड्ढों को भरा

Bank Loan For Potholes Repair: कर्ज लेकर सरकारी सड़क की मरम्मत इसे सुन आप हैरान रह जाएंगे लेकिन यह सच है. बेंगलुरु में एक टेक फर्म में काम करने वाला शख्स इस बात से परेशान था कि आखिर सरकार सड़कों में गड्ढों के क्यों सही नहीं करा रही. उसने कई बार अर्जी भी लगाई, ध्यान देने के की अपील भी की लेकिन जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उसने खुद गड्ढों को पाटने का फैसला किया. खास बात यह कि उस काम के लिए उसने बैंक से 2 लाख 70 हजार का लोन भी लिया.

गड्ढों की वजह से हादसा

बेंगलुरु में खराब सड़कों को दुरुस्त करने के लिए सिटिजन ग्रुप, ईस्ट बेंगलुरु से जुड़े लोग मुहिम चला रहे हैं. वो नो डेवलपेंट, नो टैक्स के साथ साथ लोगों से प्रॉपर्टी टैक्स भी नहीं देने की अपील कर रहे हैं. इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने पिछले हफ्ते इकट्ठा हुए और हालायांकाहल्ली, मुनेश्वरा ले आउट की 6 किमी स्ट्रेच को गड्ढों से मुक्त किया.इस ग्रुप के फाउंडर मेंबर आरिफ मुद्गल ने इसके लिए 2.7 लाख का कर्ज भी लिया. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए बताया कि होसा रोड पर हादसे के बाद वो काफी परेशान हुए और कर्ज लेकर सड़क मरम्मत का फैसला लिया. वो बताते हैं कि उनके अपार्मेंट के पास एक महिला सड़क में गड्ढों की वजह से घायल हो गई थी. इसके अलावा एक डिलिवनरी एजेंट भी गड्ढों की वजह से हादसे का शिकार हो गया. बाद में पता चला कि वो मांड्या का रहने वाला है और अपने परिवार में एकलौता कमाने वाला सदस्य है.

इस वजह से राजनीतिक दल नहीं देते ध्यान

आरिफ मुद्गल बताते हैं कि पांच साल पहले उन्होंने सिटिजंस ग्रुप, ईस्ट बेंगलुरु का गठन किया था. हादसे की जानकारी के बाद उन्होंने ग्रुप के दूसरे सदस्यों को दी. उन लोगों की मदद से सड़क पर गड्डों को भरने का फैसला लिया. लेकिन जब फंड की कमी हो गई तो उन्होंने खुद बैंक से कर्ज लिया.परेशानी को बयां करते हुए ग्रुप के एक सदस्य का कहना है कि राजनीतिक दलों की इस विषय पर नजरिया एक जैसा है. वो सोचते हैं कि इसके इलाके में रहने वालों का नाता दूसरे राज्य या जगहों से है. लिहाजा वो दिक्कतों पर ध्यान नहीं देते. यह सब देखते हुए हमने नो डेवलपमेंट, नो टैक्स चलाने का फैसला किया.

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