Freebies a Big Problem: संपन्न जनता को हर चीज फ्री में बांटने के चक्कर में श्रीलंका और वेनेजुएला बर्बाद हो गए. हमारे देश के कई दल भी इसी ट्रिक पर चलकर विभिन्न राज्यों में सत्ता कब्जाए हुए हैं. क्या वे इन देशों के हाल से सबक सीखेंगे.
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Freebies a Big Problem: कल्पना कीजिए अगर आपके राज्य की सरकार आपको मुफ्त में टीवी या फिर स्कूटी या फिर उसकी जगह मुफ्त (Freebies) बिजली-पानी या फिर हर महीने एक हज़ार रुपये की आर्थिक मदद देने का ऐलान करती है तो क्या आप अपनी सरकार से ये कहेंगे कि आपको मुफ्त में कोई सुविधा नहीं चाहिए. शायद आप ऐसा ना कर पाएं. और आप ही नहीं हमारे देश में बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो मुफ्त की सुविधाओं और सेवाओं को ना नहीं कह पाते.
चीजें मुफ्त देने पर निकल जाता है दिवाला
अब तस्वीर का दूसरा पहलू सोचिए. मान लीजिए, शहर में आपकी एक छोटी सी दुकान है और वो दुकान आप एक ऐसे व्यक्ति को चलाने के लिए दे देते हैं, जो लोकप्रिय होना चाहता है. वो आपकी दुकान पर रखे सामान की मुफ्त में बिक्री शुरू कर देता है. इससे आपकी दुकान पर ग्राहकों की भीड़ तो जुट जाएगी लेकिन उस दुकान का दिवाला निकल जाएगा. अब आप इसी दुकान की जगह पर एक राज्य को रख कर देखिए और सोचिए अगर आपके राज्य में एक ऐसी सरकार आ जाती है, जो लोकप्रिय होने के लिए मुफ्तखोरी (Freebies) की राजनीति शुरू कर देती है. आपको बिजली-पानी मुफ्त मिलने लगता है. महिलाओं और युवाओं को हर महीने आर्थिक मदद मिलने लगती है. बसों और रेल में सफर मुफ्त कर दिया जाता है तो उस राज्य का क्या हाल होगा. उस राज्य का भी इस दुकान की तरह दिवाला निकल जाएगा और इस समय हमारे देश में यही हो रहा है.
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— Zee News (@ZeeNews) July 26, 2022
श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक दौर से गुज़र रहा है. आज श्रीलंका पर साढ़े 6 लाख करोड़ रुपये कर्ज है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे अपने ही देश के तमिल नाडु राज्य पर 6 लाख 59 हज़ार करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश पर 6 लाख 53 हज़ार करोड़ रुपये, महाराष्ट्र पर 6 लाख 8 हज़ार करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल पर पांच लाख 62 हज़ार करोड़ रुपये, गुजरात पर 4 लाख 2 हज़ार करोड़ रुपये और पंजाब पर 2 लाख 82 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है. आज बड़ा सवाल ये है कि क्या इन राज्यों की स्थिति भी श्रीलंका जैसी होने वाली है?
सुप्रीम कोर्ट में उठा मुफ्तखोरी का मुद्दा
ये सवाल मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में भी उठा. सुप्रीम कोर्ट में जिस याचिका पर सुनवाई हुई, उसमें ऐसी राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग की गई है, जो चुनावी फायदे के लिए मुफ्तखोरी (Freebies) की राजनीति करती हैं. इस याचिका में कहा गया है कि इस राजनीति से राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ता है इसलिए इसे रोकने के लिए ऐसी पार्टियों की मान्यता रद्द की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चुनाव आयोग और भारत सरकार से जवाब मांगा.
बड़ी बात ये है कि चुनाव आयोग ने खुद को इस मामले से ये कहते हुए अलग कर लिया कि वो ऐसे मामलों में किसी राजनीतिक पार्टी की मान्यता रद्द नहीं कर सकता. लेकिन भारत सरकार चाहे तो वो कानून बना कर इस तरह की मुफ्तखोरी पर रोक लगा सकती है. हालांकि भारत सरकार की तरफ़ से ये कहा गया कि ये मामला चुनाव आयोग के दायरे में आता है इसलिए कदम भी उसे ही उठाना चाहिए.
सरकार और चुनाव आयोग ने खड़े किए हाथ
संक्षेप में कहें तो चुनाव आयोग और भारत सरकार दोनों ने ही इस मामले से खुद को दूर रखने की कोशिश की. जिस पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंतोष जताया गया और कहा गया कि भारत सरकार इस पूरे मुद्दे पर एक विस्तृत हलफनामा दायर करके अपना पक्ष रखे. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील और नेता कपिल सिब्बल से भी सुझाव मांगा, जिस पर उन्होंने ये कहा कि वित्त आयोग हर राज्य को बजट आवंटित करता है. इसलिए वित्त आयोग चाहे तो वो इस आवंटन में इस बात का भी ध्यान रख सकता है कि किस राज्य पर कितना कर्ज है. कहीं वो राज्य ज्यादा फंड लेकर मुफ्त की योजनाओं पर तो उसे खर्च नहीं कर रहा. अगर ऐसा होता है तो उस राज्य को मिलने वाले फंड में कटौती करनी चाहिए.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को वित्त आयोग से मंथन करने के लिए कहा. अब इस केस की अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी. अब यहां बड़ा Point ये है कि मुफ्तखोरी की ये राजनीति इतनी खतरनाक क्यों है. इसे आप श्रीलंका के उदाहरण से समझ सकते हैं, जो लगभग कंगाल हो चुका है.
मुफ्तखोरी से पड़ोसी श्रीलंका हो गया बर्बाद
श्रीलंका की इस बदहाली की सबसे बड़ी वजह है, मुफ्तखोरी (Freebies) की राजनीति. वर्ष 2019 में जब श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, तब श्रीलंका के राजपक्षे परिवार ने ये ऐलान किया था कि अगर चुनाव में उनकी पार्टी जीत गई तो वो देश में वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले Value Added Tax यानी VAT को आधा कर देगी. जब चुनाव में राजपक्षे परिवार की पार्टी जीती तो वादे के तहत VAT को 15 प्रतिशत से घटा कर 8 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे श्रीलंका को उसकी GDP के 2 प्रतिशत के बराबर नुकसान हुआ. हमारे देश के कई राज्यों में भी आज ऐसा ही हो रहा है. इनमें पंजाब की स्थिति सबसे खराब है.
वित्त वर्ष 2021-22 में पंजाब पर उसकी GDP के 53 प्रतिशत हिस्से के बराबर कर्ज था और ये पूरे देश में सबसे ज्यादा था. इसे ऐसे समझिए कि अगर पंजाब की GDP 100 रुपये है तो 53 रुपये उस पर कर्ज है. मौजूदा समय की बात करें तो इस समय पंजाब पर 2 लाख 82 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. अगर इस कर्ज को पंजाब की 3 करोड़ आबादी में बांटे दें तो इस हिसाब से राज्य के हर व्यक्ति पर लगभग 95 हजार का कर्ज हुआ. इसके बावजूद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान उन तमाम मुफ्त Schemes को पंजाब में लागू कर रहे हैं, जिनका ऐलान चुनाव के दौरान हुआ था.
पंजाब में बांटी जा रही फ्री की रेवड़ियां
जैसे पंजाब में चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया था कि वो सरकार बनने पर 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त (Freebies) कर देगी. हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से इस मुफ्त स्कीम को लागू कर दिया है, जिससे पंजाब पर सालाना 1800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने का अनुमान है. सोचिए, जिस राज्य पर उसकी GDP के 53 प्रतिशत हिस्से के बराबर कर्ज है, उस राज्य की सरकार लोगों को मुफ्त बिजली देकर अपने कर्ज को और बढ़ा रही है. ये तो बस अभी शुरुआत है.
आम आदमी पार्टी ने चुनाव में ऐलान किया था कि वो 18 साल से ऊपर की सभी महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए की आर्थिक मदद देगी. पंजाब में 18 साल से ऊपर की लगभग एक करोड़ महिलाएं हैं. यानी केवल इस वादे को ही पूरा करने के लिए सरकार को हर महीने एक हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. ये राशि कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पंजाब सरकार हर महीने पंजाब पुलिस पर भी इतना पैसा खर्च नहीं करती. 2021-2022 में पंजाब पुलिस का सालाना बजट लगभग 5 हज़ार 700 करोड़ रुपये था.
20 हजार करोड़ रुपये केवल ब्याज में चला गया
इसी तरह आम आदमी पार्टी ने चुनाव में वादा किया था कि वो आम लोगों को 400 यूनिट तक के बिजली बिल पर 50 प्रतिशत की छूट देगी. किसानों को 12 घंटे मुफ्त बिजली दी जाएगी और कारोबारियों- दूसरे बड़े उद्योगों को भी सस्ते दामों पर बिजली उपलब्ध कराई जाएगी. अगर पंजाब सरकार इस वादे को भी पूरा करती है तो इससे उस पर सालाना 5 से 8 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाएगा. पंजाब सरकार केन्द्र से कर्ज लेकर इन चुनावी वादों को पूरा करना चाहती है. जबकि सच ये है कि पंजाब पहले से हर 100 रुपये में से 20 रुपये अपना पुराना कर्ज चुकाने पर खर्च कर रहा है.
पिछले साल पंजाब सरकार ने राज्य पर जो एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे, उनमें से 20 हज़ार करोड़ रुपये उसने सिर्फ़ ब्याज़ के रूप में चुकाए थे. जबकि साढ़े 11 हज़ार करोड़ रुपये पेंशन और रिटायरमेंट Benifits पर, साढ़े 27 हज़ार करोड़ रुपये सरकारी कर्मचारियों की सैलरी देने पर और लगभग 44 हज़ार करोड़ रुपये दूसरी चीज़ों पर सरकार ने खर्च किए थे. हालांकि पंजाब अकेला ऐसा राज्य नहीं हैं, जहां लोगों को मुफ्त बिजली-पानी और दूसरी सुविधाएं दी जा रही हैं. इनमें दूसरे राज्य भी हैं और आज आपको इनका हाल भी देख लेना चाहिए.
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी इस दौड़ में पीछे नहीं
आन्ध्र प्रदेश में मुफ्त सरकारी योजनाओं की सूची बहुत लम्बी है. आन्ध्र प्रदेश में 27 लाख आदिवासी महिलाओं को सालाना 15 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद मिलती है. बुजुर्गों को वृद्ध पेंशन के रूप में हर महीने 2250 रुपये मिलते हैं. इसके अलावा हाल ही में वहां की सरकार ने राज्य के डेढ़ करोड़ लोगों का मुफ्त में Health Insurance करवाया है और कॉलेज में पढ़ने वाले 14 लाख छात्रों की फीस भी माफ की है. आन्ध्र प्रदेश की सरकार अपने लोगों को मुफ्त (Freebies) का ये लाभ तब दे रही है, जब उस पर 3 लाख 98 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है.
इसी तरह तेलंगाना पर 3 लाख 12 हज़ार करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल पर 5 लाख 62 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है. लेकिन इतना भारी भरकम कर्ज होने के बावजूद ये राज्य वही गलती कर रहे हैं, जो श्रीलंका ने की. यानी ये मुफ्त की राजनीति से अपने राज्यों को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं.
सबसे ज्यादा कर्ज में डूबे हैं तमिलनाडु और यूपी
इस वक्त पूरे देश में सबसे ज्यादा 6 लाख 59 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज तमिल नाडु पर है. ये तमिल नाडु की GDP के लगभग 27 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. इसी तरह उत्तर प्रदेश इस सूची में दूसरे स्थान पर है. उत्तर प्रदेश पर 6 लाख 53 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है, जो उसकी GDP के लगभग 35 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. महाराष्ट्र पर 6 लाख 8 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है, जो उसकी GDP के लगभग 18 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. इसके अलावा इस सूची में राजस्थान भी है, जिस पर 4 लाख 77 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है और ये उसकी GDP के लगभग 40 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. गुजरात पर 4 लाख 2 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज है, जो उसकी GDP के 19 प्रतिशत हिस्से के बराबर है.
इस समय दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त (Freebies) है, पानी मुफ्त है, मोहल्ला क्लिनिक में इलाज मुफ्त है, सार्वजनिक जगहों पर इंटरनेट मुफ्त है. बुज़ुर्गों के लिए तीर्थ यात्रा मुफ्त है. पानी और सीवर के नए कनेक्शन मुफ्त है. इसके अलावा मुफ्त की और योजनाएं भी दिल्ली में चल रही हैं. ये स्थिति तब है, जब दिल्ली पर 20 हजार 886 करोड़ रुपये का कर्ज है.
वर्ष 1991 में भारत को गम्भीर संकट का सामना करना पड़ा था और विदेशी मुद्रा के लिए अपना Gold Reserve यानी भंडार में जमा सोना गिरवी रखना पड़ा था. अगर भारत में मुफ्तखोरी की ये राजनीति बन्द न हुई और राज्यों के कमज़ोर नेतृत्व में सुधार नहीं हुआ तो भारत में भी ये स्थितियां फिर से बन सकती हैं.
वेनेजुएला भी मुफ्तखोरी में हो चुका है बर्बाद
मुफ्त की ये राजनीति कैसे एक अमीर देश को कंगाल कर सकती है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है Venezuela. आज आपको Venezuela के बारे में बताते हैं.
- एक ज़माने में Venezuela की गिनती दुनिया के सबसे अमीर देशों में होती थी. कहा जाता था कि Venezuela के पास जब तक तेल के बड़े बड़े भंडार हैं, तब तक उसका बुरा समय आ ही नहीं सकता.
- प्राकृतिक रूप से Venezuela आज भी इतना सम्पन्न देश है कि वहां दुनिया का सबसे बड़ा कच्चे तेल का भंडार मौजूद है.
- इसके अलावा Venezuela की 88 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है, इसलिए इसे Urban Country भी कहा जाता है.
- हालांकि आज इस Urban Country की हालत ये है कि यहां की 83 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. वहां एक करोड़ लोग, दिन में एक समय का खाना भी खरीद कर नहीं खा सकते.
- Venezuela की ये हालत इसलिए हुई क्योंकि वहां भी सरकारों ने एक समय वोटों के लिए लोगों को मुफ्त योजनाओं का लाभ देना शुरू किया था.
- ये बात वर्ष 1999 की है, जब Venezuela के लोगों ने सोशलिस्ट पार्टी के लीडर Hugo Chávez (ह्युगो चावेझ) को अपना राष्ट्रपति चुना.
- ह्युगो चावेझ का मानना था कि Venezuela को दुनिया में तेल बेच कर जितना भी पैसा मिलता है, वो पैसा वहां के लोगों पर खर्च होना चाहिए.
- और इसीलिए जब वो राष्ट्रपति बने, उन्होंने इस अमीर देश में अमीर लोगों के लिए सबकुछ मुफ्त कर दिया. पानी, बिजली, स्कूल की फीस, अस्पताल का इलाज और पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबकुछ मुफ्त हो गया.
- Venezuela के लोग इतने अमीर थे कि उन्हें इस मुफ्त सेवा और सुविधाओं की ज़रूरत नहीं थी. लेकिन वोटों की राजनीति की वजह से उन्हें ये सुविधाएं लेनी पड़ी और सरकार की इन गलत नीतियों का परिणाम ये हुआ कि वहां लोग परिश्रम करने से बचने लगे और वहां से बड़ी बड़ी कम्पनियां अपनी Manufacturing Unit दूसरे देशों में ले गईं. इससे Venezuela पर आर्थिक बोझ बढ़ा और वहां चीजें महंगी होने लगी. इस आर्थिक मॉडल ने Venezuela को बर्बाद कर दिया.
- इन्हीं नीतियों की वजह से ह्युगो चावेझ 2013 तक सत्ता में बने रहे. इससे ये पता चलता है कि मुफ्त की राजनीति, नेताओं का ही विकास करती है. नागरिकों का नहीं.
- एक समय Venezuela का एक Bolívar (बोलिवर), भारत के सात रुपये के बराबर था. लेकिन आज भारत के 25 रुपए लगभग 1 लाख बोलिवर से ज्यादा के बराबर है. आज Venezuela में महंगाई इतनी ज्यादा है कि वहां टीवी खरीदने के लिए भी लोगों को बोरों में भर कर पैसा ले जाना पड़ता है और ऐसा भी मुट्टीभर लोग ही कर पाते हैं.
हमें बेसिक सुविधाए चाहिएं या मुफ्तखोरी, फैसला हमारा
दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां मुफ्त (Freebies) योजनाओं और सुविधा के नाम पर लोगों के वोट तो हासिल कर लेती हैं. लेकिन इसके नाम पर ये पार्टियां आपको उस हक से वंचित कर देती हैं, जिस पर आपका सबसे पहले अधिकार बनता है. असल में लोगों को मुफ्त बिजली और पानी नहीं चाहिए बल्कि लोगों को एक ऐसी व्यवस्था और सिस्टम चाहिए, जो उनके जीवन को आसान बनाए. लोगों को अच्छी सड़कें चाहिए, अच्छा Drainage सिस्टम चाहिए, 24 घंटे बिजली-पानी चाहिए, अच्छे स्कूल और अस्पताल चाहिए और ऐसी कानून व्यवस्था चाहिए, जिसमें उनका हित हो. लेकिन क्या ये सब आपको मिलता है? ऐसे में आप एक बार फिर से सोचिए कि आपको मुफ्त बिजली चाहिए या आपको अपने शहर और इलाक़े में अच्छा Drainage सिस्टम और सड़कें चाहिए?
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