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Supreme Court: 1994 में पुणे में एक परिवार की हत्या के मामले दोषी ने 28 साल जेल में गुजारे. निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने उसे फांसी की सजा सुना दी. लेकिन घटना के करीब 29 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वो अपराध के वक़्त नाबालिग था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है.
मामला क्या था
मूलतः राजस्थान के रहने वाले नारायण चेतनराम चौधरी को 1994 में पुणे के राठी परिवार की हत्या के मामले में फांसी की सज़ा सुनाई गई थी.जिनकी हत्या हुई थी, उनमें गर्भवती महिला और उसके दो बच्चे शामिल थे. ट्रायल के दौरान निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नारायण चौधरी की उम्र 20-22 मानते हुए फांसी की सज़ा तय की.
नारायण चौधरी का नाबालिग का दावा
सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सज़ा मिलने के बाद चौधरी और उसके सहआरोपी जितेंद्र गहलोत ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल की. अक्टूबर 2016 में गहलोत की फांसी की सज़ा को तो उम्रकैद की सज़ा में बदल दिया.लेकिन नारायण चौधरी ने अपनी दया याचिका वापस की. दया याचिका के बजाए चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में ये दावा हुए फिर से अर्जी दाखिल की कि घटना के वक़्त वो नाबालिग था. इसके लिए उसने राजस्थान की स्कूली शिक्षा का रिकॉर्ड पेश किया. चौधरी की ओर से दलील दी गई कि उसकी शुरुआती पढ़ाई राजस्थान में हुई है,वहाँ से स्कूल रिकॉर्ड उसे 2015 में ही मिल पाया. यह रिकॉर्ड तस्दीक करता है कि घटना के वक़्त उसकी उम्र महज 12 साल थी. चौधरी के वकील ने दलील दी कि इससे पहले मुकदमे में ख़ुद को नाबालिग इसलिए नहीं साबित कर पाया क्योंकि जिस राज्य ( महाराष्ट्र) में अपराध में शामिल होने का आरोप उस पर लगा था, वहां उसने सिर्फ़ डेढ़ साल ही पढ़ाई की है.
SC ने निचली अदालत के जज से रिपोर्ट मांगी
जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज को निर्देश दिया कि वो चौधरी की आयु की सत्यता का पता लगाकर कोर्ट में रिपोर्ट सौंपे. जज ने सीलबंद कवर में रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी. आज सुप्रीम कोर्ट ने नारायण चौधरी के घटना के वक़्त नाबालिग होने के दावे को सही मानते हुए उसे रिहा करने का आदेश दे दिया.
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