Mirza Raja Jaisingh and Shivaji : मुगल शासक औरंगजेब के लिए चुनौती बनते जा रहे थे ऐसे में छत्रपति शिवाजी महाराज को हराने वाला एकमात्र राजा अगर कोई था तो वो था राजस्थान में जयपुर यानि आमेर रियासत के राजा मिर्जा राजा जयसिंह. जानिए कैसे जयसिंह ने शिवाजी को हराया, पुरंदर की संधि क्या थी और मिर्जा राजा जयसिंह की मौत कैसे हुई.
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छत्रपति शिवाजी महाराज की गिनती हिंदुस्तान में गौरवशाली नामों में से होती है. जिन्हौने मुगल साम्राज्य से टक्कर ली. कभी मुगलों से हारे नहीं. लेकिन राजस्थान के जयपुर ( आमेर रियासत ) के राजा जिन्हौने शिवाजी को भी हराया. न सिर्फ हराया, बल्कि उनकी वजह से शिवाजी को बंदी भी बनाया गया. वो थे जयपुर ( आमेर रियासत ) के मिर्जा राजा जयसिंह. जिन्हौने औरंगजेब के कहने पर शिवाजी के खिलाफ कमान संभाली. पुरंदर की संधि करने पर मजबूर किया.
मानसिंह की मृत्य हुई तो आमेर की गद्दी पर भाव सिंह को बिठाया गया. लेकिन जब भावसिंह की मौत हो गई तो आमेर की गद्दी मिली मानसिंह के बड़े बेटे जयसिंह को. असल में मानसिंह के निधन के बाद जयसिंह ही आमेर की गद्दी का हकदार था लेकिन उस समय उसकी उम्र सिर्फ 2 साल की थी. जयसिंह की मां दमयंती उसे लेकर दौसा चली गई. दमयंती जयसिंह की मां, मानसिंह की पत्नी और उदयसिंह की पौती थी. दमयंती को इस बात का डर था कि जयसिंह की आमेर का शासक बनेगा. ऐसे में भावसिंह उसे मरवा सकता है. तो भावसिंह से बचाने के लिए वो उसे दौसा ले गई. भावसिंह की मौत के बाद 23 दिसम्बर, 1621 को जयसिंह आमेर की गद्दी पर बैठा.
जयसिंह जब आमेर की गद्दी पर बैठा तो उसकी उम्र सिर्फ 11 साल की थी. उसके जीवनकाल में मुगल सल्तनत तीन लोगों जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के पास रही. शाहजहां ने ही कंधार अभियान पर जाते समय जयसिंह को मिर्जा राजा की उपाधि दी थी. शाहजहां की मौत के बाद उनके चार बेटों में छिड़े उत्तराधिकारी संघर्ष में जयसिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया लेकिन जब ओरंगजेब इस लड़ाई को जीत गया तो जयसिंह ने खुद आगरा जाकर औरंगजेब से मुलाकात की और हर तरीके से सहयोग का भरोसा दिया.
जबकि उससे पहले जब दक्षिण से औरंगजेब ने आगरा के लिए कूच किया था तो दाराशिकोह की तरफ से जयसिंह ओरंगजेब के खिलाफ भी लड़ चुके थे. लेकिन औरंगजेब भी जयसिंह के युद्ध कौशल को जानता था इसलिए उसने भी जयसिंह को अपने साथ रखने में ही भलाई समझी.
औरंगजेब ने शिवाजी को हराने के लिए बीजापुर के सेनापति अफज़ल खान से लेकर अपने मामा शाहिस्ता खान को भेजा लेकिन सब विफल रहे तो मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी के खिलाफ दकन अभियान पर भेजा गया. जयसिंह अपनी विशाल सेना के साथ पुरंदर के किले को घेर देते है. और शिवाजी को संदेश भेजा जाता है. शिवाजी के सामने दो विकल्प रखे जाते है, या तो सरेंडर कर दें या फिर युद्ध लड़ते हुए जान गंवा दें. शिवाजी ने जयसिंह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. और दोनों के बीच 11 जून, 1665 को संधि हुई. जिसे पुरंदर की संधि कहा गया.
शिवाजी ने 35 में से 23 किले मुगलों को दे दिए. ( कमाई 4 लाख हूण सालाना )
1 लाख हूण की सालाना कमाई वाले 12 किले शिवाजी के हिस्से आए
शिवाजी के पुत्र शंभाजी को औरंगजेब की सेवा में भेजना तय हुआ. जिसके बदले में शंभाजी को 5 हजार की मनसबदारी के साथ साथ जागीर दी जाएगी
मुगल सेना अगर बीजापुर पर हमला करती तो उसे बालाघाट की जागीर भी मिलती. अब उसे अपने पास रखने के लिए शिवाजी को इसके बदल 40 लाख हूण देने थे.
दरअसल संधि के बाद जयसिंह ने शिवाजी को एक बार ओरगंजेब से मिलने की सलाह दी. साथ ही ये भरोसा दिया कि औरंगजेब उसे बंदी नहीं बनाएगा. जयसिंह ने इसके लिए औरंगजेब और अपने बेटे रामसिंह जो मुगल दरबार में सेवाएं दे रहे थे दोनों को खत लिखकर इसकी जानकारी दी. लेकिन जैसे ही शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा पहुंचे तो उनको बंदी बना दिया गया. शिवाजी के साथ उनके 9 साल के बेटे शंभाजी को बंदी बना दिया गया था. हालांकि बाद में जयसिंह ने अपने बेटे की मदद से शिवाजी को कैद से भगाने में कामयाबी हासिल की थी.
जयसिंह के युद्ध कौशल से लेकर तेज दिमाग से औरंगजेब हमेशा आशंकित रहता था. यही वजह थी कि अपने पाले में होने के बावजूद 8 सितम्बर, 1667 को आगरा से बुरहानपुर जाते हुए जयसिंह को औरंगजेब ने ही जहर देकर मरवा दिया था.