राजस्थान की राजधानी को जयपुर में एक ऐसा इलाका है, जहां आज भी 'नथ उतराई' की रस्म निभाई जाती है. वहीं, शाम 7 बजे के बाद यहां महफिलें जमती हैं. हालांकि अब यहां इतिहास जैसी रौनक नहीं है.
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Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी को जयपुर की नगरी कहा जाता है. जयपुर अपनी स्थापत्य और वास्तुकला के लिए पूरी दुनिया में फेमस है. साथ ही यहां के इतिहास की कई अनोखी कहानियां हैं, जिनमें से एक कहानी चांदपोल इलाके की है. चांदपोल दरअसल ओल्ड जयपुर (परकोटा क्षेत्र) में है, जहां आजादी के पहले तवायफों को बसाया गया था. चांदपोल में आज भी तवायफों के डेरे (कोठे) हैं लेकिन अब यहां इतिहास जैसी रौनक नहीं है.
जानकारी के अनुसार, आजादी से पहले राजपरिवारों ने चांदपोल इलाके में तवायफों को बसाया था. कहते हैं कि उस समय में यहां 150 से ज्यादा कोठे थे, जो अब 20 से 30 रह गए हैं. आजादी से पहले बसाए गए तवायफों के इस इलाके में उस समय संगीत-डांस की महफिल लगती थी. वहीं, अब समय के साथ आए बदलाव और तवायफों के पेशे में आई तब्दीली से यहां कई जगह वेश्यावृत्ति में बदल गए हैं.
माना जाता है कि उस समय तवायफों को राजपरिवार उनकी कला का सम्मान देते थे लेकिन धीरे- धीरे तवायफों की रस्में और इतिहास बदल गए. बीते दिनों मशहूर फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली की वेबसीरीज 'हीरामंडी' आई थीं. इस सीरीज में तवायफों की जिंदगी और 'नथ उतराई' की रस्म दिखाई गई. नथ उतराई की रस्म में लड़की दुल्हन की तरह सजती है. साथ ही नाक के बाईं तरफ एक बड़ी नथ पहनती है, जो उसके कौमार्य का प्रतीक होती थी.
फिर कई अमीर लोगों को न्योता दिया जाता था और वर्जिन लड़की के लिए बोली लगाई जाती थी, जो सबसे ज्यादा बड़ी बोली लगाता था, वह उस लड़की से पहली बार संबंध बनाता था. इसके बाद वह कभी भी नथ नहीं पहनती थी. वहीं, अब नथ उतराई की रस्म को वेश्वावृति से जोड़कर देखा जाता है.
इस समय चांदपोल शहर बदनाम हो चुका है क्योंकि आर्थिक तंगी के चलते यहां कुछ तवायफें वेश्वावृत्ति का धंधा करने लगी है. अब यहां 20 से 30 कोठे ही रह चुके हैं, जहां शाम को 7:00 से रात 11:00 बजे तक महफ़िलें जमती हैं.
डिस्क्लेमर- ये लेख सामान्य जानकारी और लोगों द्वारा बताई गई कहानियों पर आधारित है, इसकी ज़ी मीडिया पुष्टि नहीं करता है.