कहानी रंगा-बिल्ला की, जिनके कांड से नाराज लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी पर बरसाए पत्थर
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कहानी रंगा-बिल्ला की, जिनके कांड से नाराज लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी पर बरसाए पत्थर

70's Ranga-Billa case: कहानी रंगा-बिल्ला (ranga billa) की, जिनके कांड से नाराज लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) पर बरसाए पत्थरों से हमला कर उन्हें लहूलुहान कर दिया था.

कहानी रंगा-बिल्ला की, जिनके कांड से नाराज लोगों ने अटल बिहारी वाजपेयी पर बरसाए पत्थर

70's Ranga-Billa case Story: बात किसी बड़े आपराधिक मामले की हो, या फिर किन्हीं दो खुराफातियों के जिक्र की. कई बार आपको ये सुनने में आएगा कि वो तो रंगा-बिल्ला हैं. आखिर रंगा-बिल्ला थे कौन, जिनकी संज्ञा लोग आम से लेकर खास क्रिमिनलों को दे देते हैं. वो रंगा-बिल्ला जिनकी वजह से मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को लोगों ने मारा पत्थर मारकर लहूलुहान कर दिया था.

कुलजीत सिंह उर्फ रंगा 1975 में एक ट्रक ड्राइवर था, ट्रक से ऊब गया तो मुंबई में टैक्सी चलाने लगा. रंगा का मन यहां उकता रहा था. उसने शाम सिंह नाम के आदमी से कुछ अलग करने बात कही. शाम ने उसे जसबीर सिंह के नाम के आदमी के बारे में बताना शुरू किया. उसे बताया गया कि दो विदेशी नागरिकों की हत्या कर चुका है. बहुत पैसा कमाता है. रंगा ने कहा, मिलवाओ. जिसके बाद शाम सिंह ने उसकी जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला से मुलाकात करवा दी. यहां से शुरू होती है रंगा-बिल्ला की जोड़ी की कहानी.

ऐसे बनाया रंगा-बिल्ला ने अपना नाम

शुरुआत में रंगा और बिल्ला मुंबई में कार चुराया करते और उसे बेच देते थे. इसके बाद बच्चों की किडनैपिंग करते और फिरौती लेकर उन्हें छोड़ देते. इस सब में बिल्ला एक बार पकड़ा गया.  पुलिस ने उसे पकड़ा और ठाणे की जेल में डाल दिया, लेकिन कुछ दिन बाद ही बिल्ला जेल से भाग निकला.  इसके बाद वह मुंबई छोड़कर दिल्ली और उसके आसपास के हिस्सों में अपराध करने लगे. 1978 के जून में रंगा-बिल्ला ने अशोक शर्मा की कार अशोका होटल के सामने से चोरी कर ली. इसी गाड़ी के जरिये उन दोनों ने सबसे बड़े अपराध अंजाम दिया. 

जब गीता और संजय के पास पहुंचे रंगा-बिल्ला 

मदन मोहन चोपड़ा जो एक नौसेना अधिकारी थे, धौलाकुआं की अफसर कॉलोनी में रहते थे. उनके दो बच्चे थे. सोलह वर्ष की गीता और 14 वर्ष का संजय चोपड़ा. गीता चोपड़ा जीसस एंड मैरी कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई करती थी, जबकि संजय मॉडर्न स्कूल में 10वीं में पढ़ता था और बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करता था. गीता को एक बार ऑल इंडिया रेडियो से एक ऑफर आया. उन्हें 26 अगस्त 1978 को वेस्टर्न सॉन्गस के एक इन-द-ग्रूव प्रोग्राम में हिस्सा लेना था. जिसे उसी रात 8 बजे ऑन एयर होना था. 

रेडियो प्रोग्राम में गीता नहीं आई तो डरे माता-पिता

प्रोग्राम में गीता के साथ उसका भाई संजय भी जाने के लिए तैयार हो गया. दोनों घर से निकले, कॉलोनी के ही एक व्यक्ति ने उन्हें लिफ्ट दी और गोल डाकखाना छोड़ दिया. इस जगह से आकाशवाणी केंद्र थोड़ी ही दूरी पर था.  गीता और संजय टैक्सी के इंतजार में सड़क किनारे खड़े थे, तभी रंगा-बिल्ला पीले रंग की फिएट कार लेकर पहुंचे और लिफ्ट देने के बहाने दोनों को बिठा लिया. घर में बैठी मां रोमा चोपड़ा ने 8 बजे रेडियो खोला तो वहां गीता को छोड़कर सभी की आवाज आ रही थी, उन्हें लगा कि शायद प्रोग्राम कैंसिल हो गया. उधर, रंगा-बिल्ला की नजर आपस में मिली और आंखों-आंखों में ही इशारा हो गया, जिसके बाद गाड़ी आकाशवाणी के बजाय दूसरे रास्ते पर मोड़ दी गई. जिसके बाद गीता ने कहा कि आप हमें कहां ले जा रहे हैं. आकाशवाणी तो दूसरे रास्ते पर है. जिस पर दोनों ने उसे कोई जवाब नहीं दिया. गीता और संजय समझ गए कि फंस चुके हैं. उन्होंने गाड़ी को रुकवाने की कोशिश की. बिल्ला ने धारदार हथियार से संजय के कंधे और हाथ पर हमला कर दिया. 

भीड़ वाले इलाके में रुकी गाड़ी, तो संजय चिल्लाने लगा

संजय चोपड़ा की शर्ट खून से सन चुकी थी. गीता गाड़ी चला रहे रंगा के बाल पकड़कर खींचने लगी. रंगा हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रहा था. वह एक साथ से गाड़ी चला रहा था और दूसरे से गीता के हाथों पर जोर-जोर से वार कर रहा था. गाड़ी शंकर रोड के भीड़ वाले इलाके में रुकी. संजय ने शीशे से मुंह सटाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. संजय की आवाज भगवान दास ने सुनी. वह बंगला साहब गुरुद्वारे से नॉर्थ एवेन्यू की ओर स्कूटर से जा रहे थे. लड़के को चिल्लाता देख उसे रोकने की कोशिश की. एक अन्य व्यक्ति गाड़ी से लटक गया, लेकिन रंगा ने गाड़ी नहीं रोकी. भगवान दास ने पुलिस को सूचना दी. पुलिस को बताया गया कि गाड़ी में दो बच्चे हैं, गाड़ी का नंबर MRK-8930 है. DDA के जूनियर इंजीनियर इंदरजीत ने भी उस गाड़ी को देखा.  उन्होंने बताया कि लोहिया अस्पताल के पास गाड़ी तेज रफ्तार से गुजरी और आगे जाकर धीमी हुई तो मैंने देखा कि गाड़ी में दो बच्चे चीख रहे हैं.  मैंने गाड़ी रोकने की कोशिश की, लेकिन ड्राइवर सिग्नल तोड़ते हुए भाग गया.  उन्होंने गाड़ी का नंबर HRK-8930 बताया. 

पहले संजय की जान ली, फिर गीता का किया रेप 

रंगा-बिल्ला गाड़ी भगाते हुए रिज इलाके में पहुंचे. यहां गाड़ी रोकर पहले उन्होंने संजय की हत्या की, इसके बाद दोनों ने गीता के साथ रेप किया. बलात्कार के बाद रंगा गीता को उसके भाई की लाश की तरफ ले जा रहा था, तभी पीछे से बिल्ला ने तलवार निकाली और गीता की गर्दन पर वार कर दिया.  जिससे गीता की मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद उसकी लाश को उठाया और सड़क किनारे फेंककर भाग निकले. 

30 गाड़ियों से 140 पुलिसवालों ने की तलाश

9 बजे पिता आकशवाणी के कार्यालय पहुंचे. अंदर गए तो पता चला गीता और संजय यहां पहुंचे ही नहीं. मदन चोपड़ा भागकर धौलाकुंआ थाने पहुंचे. पुलिस से शिकायत की, लेकिन पुलिस के पास पहले ही दो बच्चों के अगवा होने की शिकायत पहुंच चुकी थी. उस वक्त के SHO गंगा स्वरूप ने कोई कार्रवाई नहीं की. चोपड़ा से थाने के ही हरभजन सिंह ने कह दिया कि ये मामला हमारे थाना क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन में आता है, इसलिए वहां शिकायत करें. चोपड़ा के ही समर्थन में नौसेना के कई और अधिकारी थाने पहुंचे. पुलिस ने अगवा करने का मामला दर्ज किया और तलाश शुरू की.  करीब 140 पुलिस वाले 30 अलग-अलग गाड़ियों से दिल्ली के हिस्सों में बच्चों की खोज कर रहे थे. कहीं सुराग नहीं लगा तो पुलिस ने जंगलों में जांच शुरू की. पूरा दिन पानी बरसा, इसलिए पुलिस का अंधेरे में चलना मुश्किल हो रहा था. पुलिस नहीं खोज पाई. 

हरियाणा पुलिस ने उस गाड़ी को खोज लिया

27 अगस्त को हरियाणा और UP पुलिस ने भी जांच शुरू कर दी.  उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान की पुलिस भी गीता और संजय को खोजने में लग गई. हरियाणा पुलिस ने उस गाड़ी को खोजा, जिसे सबसे पहले भगवान दास ने देखा था. ट्रांसपोर्ट विभाग ने बताया कि HRK-8930 नंबर की गाड़ी के मालिक रविंदर गुप्ता हैं, लेकिन वह गाड़ी फिएट नहीं थी. जो गाड़ी थी, उसकी हालत इतनी खराब थी कि दिल्ली तक जा ही नहीं सकती थी. 

चरवाहे ने देखी गीता की लाश

29 अगस्त को एक चरवाहे को लाश दिखी. उसने पुलिस को सूचना दी. दिल्ली पुलिस तुरंत पहुंच गई. सड़क से महज 5 मीटर दूर पड़ी लाश को बाहर निकाला. आसपास सर्च शुरू किया तो 50 मीटर की दूरी पर एक और लाश मिली. पुलिस अधिकारी मदन चोपड़ा को लेकर वहां पहुंचे. मदन ने देखते ही पहचान लिया. उनके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. पुलिस वालों ने उन्हें संभाला. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गीता के शरीर में 5 और संजय के शरीर में 21 गहरे घाव थे. 

दिल्ली छोड़कर मुंबई भागे रंगा-बिल्ला, फिर आगरा आए

रंगा-बिल्ला 8 सितंबर 1978 को कालका मेल के उस डिब्बे में चढ़ गए, जिसमें सारे फौजी भरे थे. उनसे सवाल जवाब किया तो धौंस दिखाने लगे. आर्मी के ही एक अफसर लांस नायक एवी शेट्टी ने पिछले दिनों इनकी फोटो अखबार में देखी थी, उन्होंने इन्हें पहचान लिया. तुरंत पुलिस को सूचना दी और इन्हें गिरफ्तार करवा दिया. रंगा-बिल्ला को गिरफ्तार करने के लिए स्टेशन पर करीब 100 पुलिसकर्मी सादी वर्दी में पहले से मौजूद थे. 

लोगों ने विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर फेंका पत्थर

लाश मिलने के बाद दिल्ली में हंगामा हो गया. लोकसभा के अंदर कांग्रेस के नेताओं ने जनता दल के खिलाफ नारे लगाए. तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई से इस्तीफे की मांग होने लगी. मोरारजी देसाई खुद पीड़ित के घर गए. उस वक्त के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे लोगों से मिलने पहुंचे तो किसी ने पत्थर उछाल दिया. पत्थर अटल जी को लगा और उनका कुर्ता खून से लाल हो गया. सरकार की किरकिरी हुई तो पुलिस को अलर्ट किया गया. 

गुस्साया बिल्ला बोला, मुझे रंगा ने फंसावा दिया

गिरफ्तारी के बाद केस बहुत तेज चला. पुलिस ने दोनों से अलग-अलग पूछताछ की. DNA जांच हुई. सारे सबूत और DNA रंगा-बिल्ला से मैच कर गए. सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई. रंगा-बिल्ला ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की. 26 नवंबर 1979 को हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी. रंगा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा, फांसी से कम कोई सजा नहीं. रंगा-बिल्ला के पास अब राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का विकल्प था. जिसके बाद उन्होंने उस वक्त के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को याचिका भेज दी. राष्ट्रपति ने भी कोर्ट की इसे खारिज कर दिया. अब फांसी की तारीख तय होना बाकी था. इस पूरी कार्रवाई के दौरान बिल्ला हमेशा उदास रहता और रोता रहता था. वह कहता कि वह निर्दोष है, उसे रंगा ने फंसा दिया, और रंगा कहता कि रब सब जानता है, मैंने कुछ किया ही नहीं.

कालू और फकीरा को फांसी के लिए चुना जल्लाद 

फांसी की तारीख 31 जनवरी 1982 तय कर दी गई. फांसी देने को मेरठ से कालू जल्लाद और फरीदकोट से फकीरा को बुलाया गया. फांसी के लिए रस्सी बिहार के बक्सर से आई. जेल प्रशासन ने दोनों जल्लादों को उस वक्त 150 रुपए में ओल्ड मॉन्क शराब मंगाकर पिलाई. जेल प्रशासन की मानें तो पूरे होश में रहने वाला व्यक्ति किसी की जान नहीं ले सकता. तिहाड़ जेल प्रशासन ने दोनों को सुबह 5 बजे जगाया. रंगा नहाया, लेकिन बिल्ला ने नहाने से इनकार कर दिया. उन दोनों को फांसी के तख्त पर लाया गया. हाथ पीछे बांधे और चेहरों को काले कपड़े से बने थैले से ढक दिया गया. फांसी के तख्त पर पहुंचने पर रंगा ने जोर-जोर से नारा लगाया, जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल. तभी जेल के सुपरिंटेंडेंट आर्य भूषण शुक्ल ने लाल रुमाल हिलाया और दोनों जल्लादों ने लीवर खींच दिया. 

फांसी के दो घंटे बाद भी चलती रही रंगा की सांस
दो घंटे बाद जब डॉक्टरों ने चेक किया तो बिल्ला मर चुका था, लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही थी, क्योंकि उसने फांसी के वक्त सांस रोक ली थी. एक कर्मचारी फांसी के तख्त से नीचे उतरा और उसने रंगा के पैर खींचे. बिल्ला और रंगा के घरवालों ने अंतिम संस्कार के लिए लाश लेने से मना कर दिया. जेल प्रशासन ने अपनी तरफ से उनका अंतिम संस्कार किया. 

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