Chittorgarh News: 6 साल से पोते की खोपड़ी को हासिल करने के लिए भटक रहे दादा, वजह जान उड़ जाएंगे होश
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Chittorgarh News: 6 साल से पोते की खोपड़ी को हासिल करने के लिए भटक रहे दादा, वजह जान उड़ जाएंगे होश

Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ ज़िले के निम्बाहेड़ा उपखण्ड क्षेत्र के कनेरा गांव से 8 साल पहले लापता हुए 18 साल के युवक की मौत की अनसुलझी गुत्थी बड़ी हैरान और परेशान करने वाली है. 

 

Chittorgarh News: 6 साल से पोते की खोपड़ी को हासिल करने के लिए भटक रहे दादा, वजह जान उड़ जाएंगे होश

Chittorgarh News: चित्तौड़गढ़ ज़िले के निम्बाहेड़ा उपखण्ड क्षेत्र के कनेरा गांव से 8 साल पहले लापता हुए 18 साल के युवक की मौत की अनसुलझी गुत्थी बड़ी हैरान और परेशान करने वाली है. योगेंद्र नाम के युवक के लापता होने के दो साल बाद उसकी खोपड़ी का एक हिस्सा उसके गांव से 5 किलोमीटर दूर एक खेत में मिला. खोपड़ी का ये हिस्सा जो कपाल कहलाता है, वो भी पिछले 6 साल से कनेरा थाने के मालखाने में पड़ा है.

मृतक के 72 साल के बुजुर्ग दादा अपने पोते की खोपड़ी हासिल करने के लिए सरकारी नुमाइंदगी के लाचार सिस्टम से लड़ रहे है. वे पिछले छह साल से अपने पौते की कपाल हासिल करने की जद्दोजहद में चप्पलें घिस घिस कर दिन रात एक कर दिए. इन बूढ़ी आंखों की मंशा यही है कि उनके पोते के देह के नाम पर बची इस कपाल का अंतिम संस्कार कर उसकी आत्मा को मोक्ष दिला सके. सुनने में अजीब लगता है। हैरान और विचलित करने वाला वाक्या चित्तौड़गढ़ के कनेरा थाना क्षेत्र का है.

बुजुर्ग दादा ओंकार चारण पिछले 6 सालों से पोते की खोपड़ी का अंतिम संस्कार करने के लिए थाने, एसपी ऑफिस, कलेक्टर, आईजी ऑफिस और जनप्रतिनिधियों के सैंकडों चक्कर काट रहे है. अगर कही से मृतक योगेंद्र की आत्मा भी उसके शरीर के हिस्से की बची थाने के मालखाने में पड़ी कपाल लेने की उसके दादा की सरकारी सिस्टम से चल रही लड़ाई देखती होगी तो, उसके भी आंसू निकल आते होंगे. जैसे मानो कि जीते जी और मरने के बाद जुल्म की इंतहा हो गई.

चित्तौड़गढ़ ज़िले के कनेरा गांव में 21 सितंबर 2016 को 18 साल का योगेंद्र उर्फ लोकेश नाम का युवक अपने गांव से अचानक लापता हो गया. परिजन गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए रोजाना पुलिस थाने के चक्कर काटते रहे. मालदार और रसूखदार लोगों के लिए काम करने वाली पुलिस के पास गरीब परिवार की पीड़ा सुनने का समय कहा था. पुलिस परिवार के लोगों को टालती रही, बच्चा नाराज होकर कही चला गया होगा, लौट आएगा, रिश्तेदारों में पता करो। इसी भागम भाग में 8 दिन गुजर गए, वहीं एक बुढियाई आंखे इन पिछले 8 दिनों में न दिन और न रात में एक झपकी ले सकी.

 ये आंखे थी लापता युवक के 72 साल के दादा ओंकारलाल चरण की, जो दहलीज पर टकटकी लगाए कर योगेंद्र के लौटने का इंतजार कर रहे थे. परिवार के लोगों की सुनवाई नहीं हुई तो ओंकार ने अपने पोते को तलाशने का बीड़ा उठाया और जन प्रतिनिधियों की चौखट पर जाकर काफी जद्दोजहद के बाद 8 दिन बाद कनेरा थाने में योगेंद्र की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. पुलिस ने भी गुमशुदगी दर्ज कर ली लेकिन मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. परिणाम स्वरूप दो साल गुजर गए लेकिन योगेंद्र का कही पता नहीं चल सका.

इसी बीच 24 फरवरी 2018 को अचानक योगेंद्र के गांव से 5 किलोमीटर दूर एक दूसरे गांव गुर्जर खेड़ी में खुदाई के काम के दौरान एक खोपड़ी का कपाल मिलने की सूचना आती है. बुजुर्ग ओंकार को आशंका हुई कि ये खोपड़ी उनके पोते योगेंद्र की हो सकती है, तो उन्होंने पुलिस को मामलें से अवगत करवाया और खोपड़ी की डीएनए जांच करवाने की गुहार लगाई. बस यहीं से एक दादा का पोते को न्याय दिलवाने की संघर्ष की कहानी शुरू हुई. अब 6 साल बीतने को है सैंकड़ों अर्जियां लगा दी.

पुलिस, प्रशासन, नेताओं की दरों की चौखट पर दिन रात चप्पलें घिसी. डेढ़ साल गुजर गया. तब कहीं जाकर ओंकार ने जैसे तैसे खुदाई में मिली खोपड़ी का डीएनए टेस्ट करवा सके. डीएनए टेस्ट के लिए खोपड़ी के साथ योगेंद्र के माता-पिता के बाल और ब्लड सैम्पल फोरेंसिक लेब भिजवाए गए. रिपोर्ट में खोपड़ी की कपाल और कुछ अंश योगेंद्र की ही होने का पता चला. इसी के साथ योगेंद्र को तलाश करने की एक कड़ी समाप्त हुई, लेकिन एक नई कड़ी कई सवाल पैदा हो गए कि आखिर योगेंद्र के साथ क्या हुआ होगा. किसी हादसे में उसकी जान गई तो शरीर का बाकी हिस्सा कहा गया. वहीं मृतक के दादा ओंकार को पूरी आशंका थी कि उनके पुराने पारिवारिक जमीनी विवाद के चलते उन्ही के परिवार के लोगों ने उनके पोते की हत्या की है.

बुजुर्ग ओंकार बताते है कि उन्हें परिवार के बाकी सदस्यों की तुलना में अपने पोते योगेंद्र से विशेष लगाव था. पोता योगेंद्र भी दादा से उतना ही स्नेह रखता था, और हमेशा उनके साथ ही रहा करता था. भराए गले से कांपती आवाज, बुढियाई नम आंखों के साथ ओंकार अपना दर्द बयां करते बताते है कि वे हर रोज सुबह 4 बजे नहा धोकर माता जी के मंदिर जाते है. पीछे से पोता योगेंद्र भी मोटरसाइकिल लेकर मंदिर आ जाया करता था. फिर दादा पौते दोनों एक साथ मोटर साइकिल पर बैठकर साथ में घर आते थे.

8 साल पहले इसी तरह सुबह जब वो मंदिर चले गए और मंदिर पर ही पोते के आने का इंतजार किया. लेकिन वो नहीं आया. उस दिन से लेकर आजतक उन्हें पोते की याद सताती है. लगता है अब भी योगेंद्र उन्हें मंदिर लेने आएगा, अपने साथ मोटरसाइकिल पर बैठा कर घुमाएगा. पोते की खोपड़ी मिली तो आगे जीने की मंशा समाप्त हो गई. अब सबसे बड़ी तकलीफ यह है कि अपने जीते जी वे कम से कम पोते की मौत की गुत्थी सुलझे, अवशेष के रूप में बची खोपड़ी के कपाल का वो अंतिम संस्कार करवा सके और योगेंद्र के हत्यारो को जेल की सलाखों के पीछे जाते देख सके. ये सब हो जाए तो बचे हुए दिन काट कर अंतिम समय में सुकून से मर सकेंगें.

बुजुर्ग ओंकार ने आरोप लगाया है कि जमीनी विवाद के चलते उन्ही के सगे सम्बन्धियों ने परिवार को खत्म करने की धमकी दी थी. योगेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज होने के बाद ओंकार ने परिवार के कुछ लोगों पर हत्या का आरोप लगाते हुए उनकी गिरफ्तारी की मांग की थी. लोकल पुलिस थाने से लेकर, एसएपी और तात्कालीन आईजी बिनीता ठाकुर के सामने परिवाद पेश किया. आईजी बिनीता ठाकुर ने मामलें में घटना स्थल पर मौजूद जेसीबी, ट्रैक्टर चालकों के नार्को टेस्ट के आदेश दिए. बावजूद इसके निचले अधिकारियों ने ढाई साल निकाल दिए और आईजी के आदेशों की पालना नहीं की. इस पर बुजुर्ग ओंकार ने तात्कालीन कनेरा एसएचओ संग्राम सिंह को आरोपियों के नार्को टेस्ट नही करवाने पर जिलाधीश के सामने आमरण धरने की चेतावनी दी.

नार्को टेस्ट असुरक्षित बताते हुए लाई डिटेक्टर टेस्ट की बात कही गई, जो भी नहीं करवाया गया. ओंकार बताते है इन सब से थक हार कर उन्होंने न्यायालय का सहारा लिया, जिसके बाद निम्बाहेड़ा मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने 1 नवंबर 2023 को आरोपियों के लाई डिटेक्टर टेस्ट के आदेश दिए. न्यायालय के उस आदेश की भी अब तक पालना नहीं की गई।. ओंकार का आरोप है कि उनके पोते की हत्या के आरोपी रिश्तेदार खुले आम उन्हें धमकी देकर कहते है कि पैसों के दम पर उन्होंने सबको खरीद लिया है.

कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. वहीं उनके परिवार को अभी भी इन लोगों से जान का खतरा है. खासकर खुद ओंकार जो योगेंद्र की मौत के राज को बेपर्दा करने में जुटे है. उन्हें भी जान से मारने की धमकियां मिली. लेकिन उन्हें अब किसी बात की परवाह नहीं. उम्र के सातवां दशक पूरा कर चुके ओंकार पोते को न्याय दिलवाने के लिए जिद ठान कर बैठे है. उनका कहना है कि 8 साल बीत गए अब भी रोज की तरह सुबह 4 बजे मंदिर जाता हूँ, सच जानते हुए भी लगता है कि लाडला पोता मोटरसाइकिल लेकर आएग। और मुझे साथ ले जाएगा. इतने साल बीत गए वो नहीं आया. अब भी पल पल योगेंद्र की याद सताती है. 

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