Chittorgarh news: बिचौलियों और दलालों से आमजन को निजात दिलवाने के लिए सरकार की ओर से परिवहन विभाग की कई सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है. इसके बावजूद कहीं न कहीं विभाग के जिम्मेदार अधिकारी ही अंडर टेबल मोटी कमाई के लालच इन बिचौलियों और दलालों को शह देकर तीसरी कड़ी के रूप में बीच में जोड़ देते है, और इसका खामियाजा आमजनता को उठाना पड़ता है.
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Chittorgarh: बिचौलियों और दलालों से आमजन को निजात दिलवाने के लिए सरकार की ओर से परिवहन विभाग की कई सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया गया है. इसके बावजूद कहीं न कहीं विभाग के जिम्मेदार अधिकारी ही अंडर टेबल मोटी कमाई के लालच इन बिचौलियों और दलालों को शह देकर तीसरी कड़ी के रूप में बीच में जोड़ देते है, और इसका खामियाजा आमजनता को उठाना पड़ता है.
चित्तौड़गढ़ में आरटीओ डिपार्टमेंट में यही हाल देखने को मिल रहा है, जहां एजेंट और विभागीय अधिकारियों की साठगांठ के चलते ड्रॉइविंग लाइसेंस बनवाने के नाम पर आमजन की जेब से मोटी रकम वसूली जा रही है, और विभाग के अधिकारी कार्रवाई के बजाय मामले को दबाने में लगे नजर आ रहे है.
सरकारी सुविधाओं का सीधा लाभ आमजन को मिल सके. इसके लिए प्रदेश की सरकार लगातार प्रयास कर रही है. वहीं चित्तौड़गढ़ में परिवहन विभाग सरकार के मंसूबो पर पानी फिरता नज़र आ रहा है.
यहां एक निजी कंपनी और परिवहन विभाग की गठजोड़ के चलते ड्रॉइविंग लाइसेंस बनवाने के नाम आमजन से लूट खसोट मची हुई है.
दरअसल परिवहन विभाग ने दुपहिया और चौपहिया वाहन का लर्निंग से लेकर परमानेंट ड्रॉइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए 1350 रूपए फीस तय कर रखी है. वहीं यहां ड्रॉइविंग टेस्ट में पास करने के नाम पर एक ड्रॉइविंग लाइसेंस बनवाने के 35 सौ से 4 हजार रुपए वसूले जा रहे है.
इस लूट खसोट के पूरे खेल का पर्दा फाश करने के लिए ज़ी मीडिया के रिपोर्टर चित्तौड़गढ़ के परिवहन विभाग के सामने कतारबद्ध एजेंटों की दुकानों, ड्रॉइविंग टेस्ट देने वाले ट्रैक पर ग्राउंग रिपोर्टिंग करते रहे. जिसमें ड्रॉइविंग लाइसेंस बनाने के लिए की जाने वाली लूट खसोट को लेकर कई चौकाने वाली बातें निकल कर सामने आई.
सबसे पहले जी मीडिया के रिपोर्टर ने शहर से दूर एक तरफ एक निजी कंपनी की ओर से संचालित ऑटोमेटिक ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक पर जाकर मामलें में पड़ताल की. जिसमें भारी अनियमिताएं सामने आई. दरअसल ये ऑटोमैटिक ड्रॉइविंग टेस्ट ट्रैक पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड होता है. यहां प्रतिदिन 35 से 40 एप्लिकेंट ड्रॉइविंग लाइसेंस बनवाने आते है, जिन्हें दुपहिया और चौपहिया वाहन चला कर टेस्ट देना होता है.
लेकिन प्रारंभिक जांच में ही ट्रेक सिस्टम में टेस्ट देने आए एप्लीकेंट्स से गड़बड़ियों के बारे में जानकारी मिली. जिसमें टेस्ट से पहले एप्लिकेंट को टेस्ट का एक वीडियों दिखाया जाता है, जिसमें ड्रॉइविंग करते समय सिंगनल लाइट्स के अनूरूप वाहन को रोकना और आगे बढ़ना होता. टाइमिंग में कुछ सेकंड्स की भी गड़बड़ हुई तो एप्लिकेंट का टेस्ट में फैल होना तय है. वहीं ट्रैक की पड़ताल में चला कि ड्रॉइविंग टेस्ट ट्रैक की कुछ सिग्नल लॉइट पहले से बंद थी.
वहीं दूसरी पड़ताल में पता चला कि एप्लिकेंट को ड्रॉइविंग लाइसेंस का आवेदन करते समय ड्राइविंग टेस्ट देने के लिए टाइमिंग स्लॉट बुक किया जाता है. वहीं ट्रैक संचालक एप्लिकेंट की सुविधा का हवाला देकर मनमाने समय पर एप्लीकेंट्स के टेस्ट लेते नजर आए. ऐसे में जिस एप्लिकेंट से मोटी रकम ली गई हो उसे पास करवाने के लिए उसका टेस्ट होल्ड कर दिया जाता, और खुद से ऑनलाइन आवेदन कर आए एप्लीकेंट्स को टेस्ट दिलवा कर फैल करवा दिया जाता.
कंप्यूटराइज्ड ड्रॉइविंग टेस्ट ट्रैक और चारों तरफ लगे सीसीटीवी कैमरों के बावजूद
ये सारा खेल परिवहन विभाग की नाक के नीचे चल रहा है. लेकिन आपसी गठजोड़ से हो रही मोटी कमाई के खेल ने जिमेदार अधिकारियों की बोलती बंद कर रखी है, और इसका खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है.
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