EXPLAINER: क्या है मेवाड़ का हाल, जहां से होकर गुजरता है राजस्थान की सत्ता का रास्ता
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EXPLAINER: क्या है मेवाड़ का हाल, जहां से होकर गुजरता है राजस्थान की सत्ता का रास्ता

प्रदेश के सत्ता की कुर्सी पर पहुंचने के लिए एक बार फिर रणभरे बज चूकी है. मतदान का समय नजदीक आने के साथ ही प्रचार अभियान में राजनैतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. कहा जाता है कि सूबे की सत्ता पर पहुंचना हो तो इसका रास्ता मेवाड संभाग से हो कर निकलता है.

EXPLAINER: क्या है मेवाड़ का हाल, जहां से होकर गुजरता है राजस्थान की सत्ता का रास्ता

प्रदेश के सत्ता की कुर्सी पर पहुंचने के लिए एक बार फिर रणभरे बज चूकी है. मतदान का समय नजदीक आने के साथ ही प्रचार अभियान में राजनैतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. कहा जाता है कि सूबे की सत्ता पर पहुंचना हो तो इसका रास्ता मेवाड संभाग से हो कर निकलता है. ऐसे में अगर संभाग मुख्याल और उदयपुर जिले की बात करें तो यहां कभी कांग्रेस पार्टी की राज हुआ करता था. यही से चुनाव जीत कर मोहनलाल सुखाडिया तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री बने. जिन्हें आज भी आधुनिक राजस्थान का निर्माता कहा जाता है. तो वहीं चुनावी जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचने वाले भाजपा के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया दो बार गृहमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाब सिंह शक्ताव एक बार गृहमंत्री बने. तो वहीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ गिरिजा व्यास जैसे दिग्गज नेता का नाम भी इस जिले से जुडा हुआ है.

हालांकि वर्ष 2023 का विधानसभा चुनाव बीते चुनावों की अपेक्षा काफी अलग नजर आ रहा है. दो दशकों से उदयपुर जिले भारतीय जनता पार्टी का गढ़ माना जाता है. लेकिन गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद यहां की राजनिती बदलती दिखाई दे रही है. टिकट वितरण के बार पार्टी में आपस कलह सामने आया है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं में एक बार फिर भाजपा के मजबूत गढ़ में अपने आप को स्थापित करने में जुटी हुए है. लेकिन उनके लिए भाजपा की मजबूत जडों को हिलाना इतना आसान नहीं होगा.

वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज कर भाजपा को सूबे की सत्ता से बदलख कर दिया. लेकिन उदयपुर संभाग सहीत उदयपुर जिले में कांग्रेस भाजपा की मजबूत जडो को नहीं हिला पाई. गुलाबचंद कटारिया के नेतृत्व में हुए इस चुनाव में भाजपा ने संभाग की 28 में से 15 सीटों पर कब्जा किया तो वही उदयपुर जिले की 8 में से 6 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. लेकिन बिते पांच सालों में उदयपुर जिले के साथ संभाग में राजनैतीक स्थियों में बदलाव आया है.

दरअसल पार्टी ने दिग्गज नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यापाल बना दिया और करीब ढाई साल पूर्व कोरोना संक्रमण से ग्रसित होने के बाद राजसमंद विधायक किरण माहेश्वरी का निधन हो गया. दो दिग्गज नेताओं के सक्रिय राजनिती से हटने का व्यापाक असर इस बार के चुनावों में साफ नजर आ रहा है. बदले हालात के चलते कई राजनैतिक पंडितों के लिए विधानसभा चुनाव को लेकर उदयपुर जिले की स्थिति का आंकलन काफी मुश्किल साबित हो रहा है. भाजपा के मजबूत गढ उदयपुर जिले को कांग्रेस पार्टी टक्कर देती दिखाई दे रही है. लेकिन कुछ सिटे ऐसे ही जहा बडे नेता चुनावी मैदान में है और उनकी जीत का अनुमान लगापाना मुश्किल है. आईये आप के भी बताते है उदयपुर जिले के 8 विधानसभा सीटों की स्थिति क्या है.

उदयपुर शहर विधानासभा

उदयपुर विधानसभा सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच है सिधा मुकाबला
भाजपा ने अनुभवी ताराचंद जैन को उतारा चुनावी मैदान में

कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और युवा नेता प्रो गौरव वल्लभ पर लगाया है दांव
इनके अलावा नो और प्रत्याशी है चुनावी मैदान में

अर्जुन उपाध्याय— निर्दलीय प्रत्याशी
प्रमोद कुमार वार्मा— निर्दलीय प्रत्याशी

भूरी सिंह— आईपीजीपी
डॉ राजकुमार यादव— बीएसपी

नर्बदा भाटी— बीएमयूपी
मनोज लबाना— आम आमदी पार्टी

तुलसीराम गमेती— भारतीय आदिवासी पार्टी
डॉ दीपक रावल— निर्दलीय

आशु अग्रवाल— निर्दलीय

उदयपुर शहर विधानसभा सीट भाजपा को मजबूत किला है. जिसें बीत दो दशाकों से कांग्रेस पार्टी नहीं ढहा पाई है. भाजपा ने यहा लगातार चार विधानसभा, दो लोकसभा और नगर निगम के छ चुनावों में लगातार जीत दर्ज की है. गुलाबचंद कटारिया के राज्यापाल बनने के बाद वे इस बार चुनावी मैदान मे नहीं है. ऐसे में भाजपा ने कई बडे नामों को दरकिनार करते हुए गुलाबचंद कटारिया की पसंद माने जाने वाले 72 वर्षिय ताराचंद जैन को चुनावी मैदान में उतारा. उनके नाम की घोषणा के बाद उपमहापौर पारस सिंघवी खुल कर विराध में उतर गए और बगावती तैवर दिखाने लगें. हालाकि बाद में पार्टी उन्हे मानाने में सफल हो गई. लेकिन चुनाव नजदीक आने के बाद भी पार्टी के कई नेता प्रचार अभियान में पूरे जोश के साथ नहीं जुटे है.

ताराचंद जैन के नाम की घोषणा होने के बाद कांग्रेसी नेताओं ने स्थानिय कार्यकर्ता को चुनावी मैदान में उतारने की मांग को तेज कर दिया. लेकिन पार्टी नेतृत्व ने बाहरी होने के बावजूद राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो गौरव वल्लभ को चुनावी मैदान में उतारा. हालाकि उनके नाम को भी विरोध हुआ लेकिन वे नाराज नेताओं को मनाने में सफल हुए. बिते कुछ दिनो में गौरव वल्लभ अब तक कई गुटो में बटी के नेताओं को एक जुट करने में कुछ हद तक को सफल हुए है. वही नाराज हो कर पार्टी से बाहर गए नेताओं को भी जोडने में सफल हुए है. हालाकि वे अपने इस प्रायस से कितना सफल हो पाते है यह कहा पाना मुश्किल है. गौरव वल्लभ अपने नए विजन के साथ जनता के बीच जा रहे है. तो वही भाजपा कटारिया और नगर निगम की ओर से शहर में किए गए विकास को लेकिर जनता के बीच जा रही है. अनुभवी नेता और युवा जोश के बीच हो रहे इस मुकाबले में जीत किसकी होगी यह कहा पाना थोडा मुश्किल है. लेकिन एक बार तो तय है कि वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने कटारिया के सामने पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ गिरिजा व्यास को चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन वो जीत दर्ज नहीं कर पाई. ऐसे में साफ है कि गौरव वल्लभ के लिए भाजपा के इस गढ को ढहा पाना इतना आसान नहीं होगा.

उदयपुर ग्रामीण विधानसभा

उदयपुर ग्रामीण विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा के बीच है सिधा मुकाबला,लेकिन अन्य छ प्रत्याशी भी है चुनावी मैदान में
भाजपा ने लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके फुलसिंह मीणा को उतारा चुनावी मैदान में.

कांग्रेस ने एक बार फिर कटारा परिवार पर भरोसा, पिछाल चुनाव हारे डॉ विवेक कटारा है मैदान में.
अन्य में

खेमराज— बीएसपी

हीरालाल पारगी— आप
अमित कुमार खराडी— बाप

गेबीलाल डामोर— सीपीआई
फूला— निर्दलीय

शोभालाल गमेती— निर्दलीय

एसटी रिर्जव सीट उदयपुर ग्रामीण विधानसभा कभी कांग्रेस का गढ रहा है. लेकिन समय समय पर भाजपा ने यहा सेंध मारी करते हुए अपने आप को मजबूत किया. 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी फुलसिंह मीणा ने लगातार दूसरी जीत दर्ज कर नया रिकॉर्ड अपने नाम किया. इससे पहले इस सीट पर काई भी विधायक लगातार दो बाार चुनाव नहीं जीत पाया था. वही मीणा इस बार यहां हैट्रीक लगाने के मुड में है लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी उन्हे कडी टक्कर दे रही है. विधानसभा चुनाव के बाद हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा की गढ रही गिर्वा विधानसभा पर अपना कब्जा जमाया और दिवंगत मंत्री और पूर्व विधायक सज्जन कटारा प्रधान बन गई. जिससे यहा पर फिस से कांग्रेस पार्टी ने अपने आप को मजबूत कर लिया. कांग्रेस पार्टी प्रदेश सरकार के काम और भाजपा विधायक की निष्क्रीयता को मुद्धा बना कर चुनावी मैदान में उतरी है. तो वही विधायक मीणा महिला अत्याचार, बेरोजगारी और अपनी सहज छवी को लेकर चुनावी रण में डटे हुए है. पिछले चुनाव में बिखरी कांग्रेस इस बार एक जुट नजर आ रही है. तो वही भाजपा ने चल रहे अंत कलह को भी कांग्रेस भूनाने में लगी हुई है. लेकिन फुलसिंह मीणा की सहज छवी का कांग्रेस के पास कोई तोड नहीं है. वही बीटीपी से अलग हो कर बनी नई पार्टी बाप पार्टी ने भी कांग्रेस की मुश्किलें बढा रखी है. भले ही उदयपुर ग्रामीण विधानसभा में भाजपा को मजबूत माना जा रहा है लेकिन पंचातय चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को कमजोर मनाने की भूल कर दी तो फुलसिंह मीणा हैट्रीक लगाने से चूक सकते है.

गोगुन्दा विधानसभा क्षेत्र

गोगुन्दा विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस और भाजपा के बीच सिधा मुकाबला है.

भाजपा ने लगातार दो बार जीत दर्ज करने वाले प्रताप गमेती पर फिर जताया भरोसा
कांग्रेस ने भी दो हार के बाद भी मांगीलाल गरासिया को ही उतारा चुनावी मैदान में

अन्य में
दलपतराम— बीएसपी
हेमाराम— आम आदमी पार्टी

उदयलाल— बाप पार्टी
लहरा— सीपीआई

प्रेमचंद गमेती— निर्दलीय
बत्तीलाल मीणा— निर्दलीय

वीर शिरोमीण महाराणा प्रताप की महान होने का मुद्धा प्रदेश के हर विधानसभा चुनाव में उठता है. लेकिन उनकी राजतिलक स्थलिय गांगुन्दा में आज भी विकास के दरकार नजर आती है. पूरे विधानसभा क्षेत्र का हाल प्रताप के राजतिलक स्थल की तरह ही नजर आता है. जिसे विकसीत करने के लिए दावें तो बहूत हुए लेकिन विकास नजर नहीं आता. आदिवासी बाहुल्य सीट पर कभी कांग्रेस मजबूत थी. लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में भाजपा के प्रताप गमेती ने पूर्व मंत्री मांगीलाल गरासिया को हराने में सफलत प्राप्त की. हालाकि हार और जीत का अंतर 5 हजार वोट से भी कम कर रहा. अपने दूसरे कार्यकाल में विधायक गमेती अक्सर विवादों में रहे है. उन पर दो बार महिलाओं ने दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया. यही नहीं उन पर गिरफ्तारी का खतरा भी मंडराया. हालाकि दोनों बार आपसी समजोता होने से वे गिरफ्तार होने से बच गए. लेकिन यह विवाद उस सयम फिर बढ गया जब समजोते के बाद भी एक पीडिता ने दूबारा उनके खिलाफ पुलिस को शिकायत कर दी.

भले ही भाजपा पूरे प्रदेश में बढते महिला अपराधों को चुनावी मुद्धा बना रही है लेकिन गोगुन्दा में खुद भाजपा इस मुद्धे पर गिरी हुई नजर आ रही है. दो बार हार का सामना कर चूके कांग्रेस प्रत्याशी गरासिया अपनी हर सभा में दुष्कर्म के आरोपो का जिक्र कर रहे है. वही विधानसभा में बदले समिकरण भी भाजपा की मुश्किले बढा रहे है. बाप प्रत्याशी के लिए में चुनावी मैदान में उतरे उदयलाल ने दोनों ही पार्टियों की मुश्किले बढाई है. कांग्रसे और भाजपा के नेता यह तय नहीं कर पा रहे है कि उदयलाल किसे अधिक नुकसान पहूंचाएगा. लगातार दो चुनावों में हार का सामना करने के बाद भी मांगीलाल पर पार्टी ने भरासा जताया. इसको लेकर अन्य दावेदारों में नाराजगी है जो पार्टी को नुकसान पहूंचा सकता है. कांग्रेस की हार से ना केवल मांगीलाल गरासिया के राजनैतिक जीवन पर विराम लग सकता है. साथ ही क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व देहात जिलाध्यक्ष की साख भी इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है. भाजपा भी अंत कलह के दौर के गुजर रही है. ऐसे में यहा पर बीते दो चुनावों की तरह इस बार भी कडा मुकाबला देखने को मिल रहा है. जिससे जती का अंतर इस बार भी पांच हजार वोट के अंदर ही रह सकता है.

झाडोल विधानसभा क्षेत्र

झाडोल विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सिधा मुकाबला होता है लेकिन भारतीय आदिवासी पार्टी ने इसे त्रिकोणिय मुकाबला बना दिया है.

भाजपा ने वर्तमान विधायक बाबूलाल खराडी को उतारा चुनावी मैदान में
कांग्रेस ने मोदी लहर में जीते हीरालाल दरांगी पर जताया भरोसा

बाप प्रत्याशी दिनेश पांडोर बिगाड सकते है चुनावी परिणाम की गणित
झाडोल विधानसभा का है अजीब इतिहास, जो पार्टी यहा से चुनाव जीती उसकी नहीं बनी सरकार

अन्य प्रत्याशी

नीमालाल— बीएसपी
प्रेमचंद पारगी— सीपीआईएम

प्राची मीणा— निर्दलीय
देवविजय मीणा— बीटीपी

शांतिलाल— निर्दलीय
दिनेश पांडोर— बाप

लादूराम वडेरा— निर्दलीय

उदयपुर जिले के सर्वाधिक पिछडे इलाको वाली झाडोल विधानसभा सीट का इतिहास भी अजीब है. प्रदेश की जनता की तरह यहा के मददाता का मुड भी हर चुनाव में बदलता है. यहा एक बार भाजपा तो एक बार कांग्रेस का प्रत्याशी जीत दर्ज करता है. बीते दो दशकों की बात करें तो जिस पार्टी ने झाडोल विधानसभा सीट पर कब्जा किया उस पार्टी कि प्रदेश में सरकार नहीं बनी. यही कारण है कि विधायक अपने यहा विकास कार्य नहीं करवा पाते और उन्हे अगले चुनाव में मतदाताओं की नाराजगी जेलनी पडती है. हालाकि बीचे चुनाव से इस बार का चुनाव झाडोल विधानसभा क्षेत्र के लिए काफी अलग है. भले ही आदिवासीयों के हितों की बात करने वाले बीटीपी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव नहीं दिखा पाई हो. लेकिन कुछ समय पूर्व बनी भारतीय आदिवासी पार्टी ने यहा अपने आप को मजबूत किया है. बाप को स्थापित करने में मुख्य भूमिका अदा करने वाले जगदीश पांडोर की सकड हादसे में मौत होने के बाद उनके भाई दिनेश पांडोर चुनावी मैदान में उतरे हुए है. जगदीश में मौत के बाद उनके भाई दिनेश को आदिवासी समाज के लोगों की सिम्पेथी मिल रही है. जो उन्हे इस चुनाव में मजबूती दे रही है. तो वही बडी संख्या में युवा भी बाप से जुड रहे है. बाप प्रत्याशी दिनेश और कांग्रेस प्रत्याशी हिरालाल दरांगी एक ही पंचायत समिति क्षेत्र से आते है. ऐसे में वे कांग्रेस के लिए अधिक परेशानी खडी कर रहे है. वही कोटडा इलाके में संघ के मजबूती भाजपा को फायदा दे रही है. हालाकि बावजूद इसके इस सीट पर किसी एक पार्टी को मजबूत नहीं माना जा सकता है.

खेरवाडा विधानसभा क्षेत्र

खेरवाडा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सिधा मुकाबला

कांग्रेस ने एक बार फिर डॉ दयाराम परमार पर जताया भरोसा,
भाजपा ने भी नानालाल आहरी पर विश्वास रखा कायम,

लेकिन बीटीपी और बाप बगाड सकती है कांग्रेस और भाजपा का खेल
अन्य प्रत्याशीयों में

गौतमलाल— आप

नीमालाल— बीएसपी
दुर्गेश कुमार मीणा— यूपीआई

प्रवीण कुमार परमार— बीटीपी
राजेन्द्र कुमार मीणा— आईपीजी

विनोद कुमार मीणा— बाप
डॉ सवीता— निर्दलीय

आदिवाीस बाहुल्य खेरवाडा विधानसभा को कांग्रेस का मजबूत किला माना जाता है लेकिन समय समय पर भाजपा ने यहा कांग्रेस पार्टी का पटखनी दी है. अब तक खेरवाडा में कांग्रेस और भाजपा के बीच सिधा मुकाबला होता रहा है. लेकिन इस बार के बदले राजनैतिक समिकरण ने दोनों ही पार्टियों की मुश्किलों को बढा दिया है. आदिवासी समाज के मुद्धों को लेकर बीटीपी और बाप दो बडी पार्टियां चुनावी मैदान में उतरी हुई है. जो दोनों ही पार्टियों के मतदाताओं को प्रभावित कर रही है. लेकिन इसका ज्यादा असर कांग्रेस पर पडता दिखाई दे रहा है. कांग्रेस ने यहा अपने मुजबूत सिपाई और पूर्व मंत्री डॉ दयाराम परमार की उम्र को दरकिनार करते हुए उन्हे फिर से मैदान में उतारा है. परमार अपने विकास कार्यो के दम पर चुनावी मैदान मे उतरे है. लेकिन भाजपा सहीत अन्य विरोधी पार्टियां उन्हे बेरोगारी, महिला अत्याचार, कानुन व्यवस्था सहीत अन्य मुद्धों पर घेर रही है. लेनिक बिखराव के चलते वे ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रहे. ऐसे में इस बार भी खेरवाडा कांग्रेस पार्टी के लिए मजबूत किला साबूत होता नजर आ रहा है.

सलूम्बर विधानसभा क्षेत्र

सलूम्बर में भाजपा—कांग्रेस के बीच सिधा मुकाबला,लेकिन भारतीय आदिवासी पार्टी की एंट्री ने चुनाव को बनाया रौचक
कांग्रेस ने दिग्गज नेता रघुवीर सिंह मीणा पर जताया भरासा,

भाजपा का अमृतलाल मीणा पर विश्वास कायम,
लेनिक बाप पार्टी बीगाड सकती है दोनों की पार्टियों की चुनावी गणीत,भाजपा का एक बागी दुर्गाप्रसाद मीणा भी है चुनावी मैदान में

अन्य उम्मीदवारों में

कन्हैयालाल मीणा— बीएसपी

कालूराम मीणा— सीपीआई
जितेश कुमार मीणा— बाप

प्रकाश मीणा— बीटीपी
गोविंद कलासुआ— निर्दलीय

जवाहर— निर्दलीय
दुर्गाप्रसाद मीणा, निर्दलीय, भाजपा का बागी

सेवाराम— निर्दलीय

सलूम्बर विधानसभा चुनाव में मेवाड से कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता रघुवीर सिंह मीणा की साख पुरी तहर से दांव पर लगी हुई है. दो विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने मीणा पर अपना भरोसा कायम रखा और उन्हे चुनावी मैदान में उतारा है. बीते पांच सालों में सलूम्बर को जिला बनाने के साथ वहा पर विकास के कई काम हुए है. बावजूद इसके भाजपा यहां पर कांग्रेस को कडी टक्कर देती नजर आ रही है. तो वही पहली बार चुनाव लड रही भारतीय आदिवासी पार्टी सहीत अन्य पार्टियां दोनों ही राष्ट्रीय दलों के चुनावी समीकरण बिगाड रही है. हालाकि इस बीच सेमारी पंचायत समिति से भाजपा के प्रधान दुर्गाप्रदास मीणा बागी के रूप में चुनावी मैदान में डटे हुए है. जो भाजपा के लिए परेशानी खडी कर सकते है. कांग्रेस नेता रघुवीर सिंह मीणा क्षेत्र में हुए विकास कार्यो के साथ कांग्रेस पार्टी के सात गारंटी वादों के साथ चुनावी मैदान में उतरे हुए है. लेकिन परिवार वाद और पार्टी को अंत कलह उन पर भारी पडता दिखाई दे रहे रहा है. जो भाजपा प्रत्याशी अमृत लाल मीणा को मजबूती प्रदान कर रहा है लेकिन सरपंच का चुनाव लडवाने के कारण पत्नी की फर्जी अंकतालिका बनवाना अमृतलाल पर भारी पडता दिखाई दे रहा है. कांग्रेस सहीत अन्य विपक्षी पार्टियां भी इस मुद्धें को भूनाने जुटी हुई है. बाप पार्टी को आदिवासी युवाओं को साथ मिल रहा है.

मावली विधानसभा सीट

कांग्रेस और भाजपा के बीच सिधा मुकाबला,लेकिन आएनपी की एंट्री ने चुनाव को बनाया त्रिकाणी,भाजपा युवा नेता कुलदीप सिंह ने बगावत कर थामा आरएलपी का दामन लगातार. दो बार चुनाव हारे पुष्कर डांगी पर कांग्रेस ने भरोसा रखा कायम, संभाग में सबसे बडी जती दर्ज करने वाले विधायक धर्मनारायण जोशी का भाजपा को काटना पडा टिकट, जातीय समिकरण साधने में उल्जी भाजपा ने केजी पालीवाल को उतारा मैदान में

अन्य प्रत्याशियों में
कुलदीप सिंह चुण्डावत— आरएलपी
राजकुमार— बीएसपी

अंगूरलाल भील— बाप
जीवराज शर्मा— सीपीआई

दिनेश पुरोहित— निर्दलीय
प्रवीण सिंह आसोलिया— निर्दलीय

राजूपरी गोस्वामी— निर्दलीय
रामलाल गुर्जर— एसएस

मावली विधानसभा सीट पर 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी धर्मनारायण जोशी ने 26 हजार से भी अधिक वोटों से जी दर्ज कर संभाग में रिकॉर्ड बनाया. लेनिक बीते पांच साल में क्षेत्र में उनकी निष्क्रियता ने पार्टी को काफी नुकसान पहूंचाया. यही कारण रहा कि भाजपा ने जोशी को दूबारा चुनावी मैदान में नहीं उतारा. वही जातीय समिकरण को साधने के पेच में फंसी भाजपा को यहा अपना प्रत्याशी चुनने में भी समय लगा. ब्राह्मण समाज को साधने के लिए पार्टी ने यहा से केजी पालीवाल को चुनावी मैदान में उतारा. इससे नाराज हो कर युवा नेता कुलदीप सिंह ने आरएलपी को दामन थाम चुनावी रण में ताल ठौक दी. वही एक अन्य युवा नेता प्रवीण सिंह आसोलिया भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतर गए. वही कांग्रेस ने लगातार दो चुनाव हारने वाले पुष्कर डांगी पर अपन भरासो कायम रखा. उन्हे विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी के करीबी होने का भी फायदा मिला. भाजपा का मजबूत जनाधार रही मावली विधानसभा सिट पर इस बार खुद भाजपा ही फंसी हुई नजर आ रही है. जिसका लाभ कांग्रेस को मिलता नजर आ रहा है.

वल्लभनगर विधानसभा

त्रिकोणिय मुकाबले वाली इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा को जनता सेना दे रही टक्कर
कांग्रेस ने विधायक प्रिति शक्तावत पर जताया भरोसा

उप चुनाव में दूसरे नम्बर पर रही आरएलपी मुख्य चुनाव में हुई बाहर
भाजपा से आरएलपी में गए उदयलाल डांगी को घर वापसी को मिला इनाम,भाजपा ने दिया टिकीट,

जनता सेना सुप्रिमों और पूर्व विधायक रणधीर सिंह भीण्डर हटे चुनावी मैदान से, पत्नी दीपेन्द्र कुंवर को उतारा चुनावी रण में
अन्य प्रत्याशी
मोहनसिंह— निर्दलीय
पूजा उर्फ पूरण सिंह— निर्दलीय

रूपलाल मेनारिया— निर्दलीय
सुख संपत बागडी— बीएपी—बाप

सुरेश कुमार— बीएसपी

उदयपुर ही नहीं संभाग के हॉट सीट में शामिल वल्लभनगर विधानसभा सीट पर इस बार भी त्रिकोणिय मुकाबला देखने को मिल रहा है. उप चुनाव के बाद इस विधानसभा क्षेत्र में कई उतार चढाव देखने को मिले. विधायक प्रीति शक्ताव ने विकास के काम करवाए. लेकिन वे अपने कुनबे को पुरी तरह से संभालने में सफल नहीं हो पाई. उप चुनाव में उनके साथ खडे प्रमुख कार्यकर्ता इस चुनाव में उनसे दूर है. उप चुनाव में अपनी जमानत जब्त करवाने वाले भाजपा के प्रत्याशी रहे हिम्मतसिंह झाला लगातार क्षेत्र मे सक्रिय नजर आए. उन्होने भाजपा को मजबूत किया. अपने खर्च पर क्षेत्र की 25000 से अधिक महिलाओं को महाकाल की निशुल्क यात्रा करवाई. लेकिन बदले राजनैतिक समिकरणों से उन्हे टिकिट नहीं मिल पाया और क्षेत्र में एक बडा राजनैतिक बदलाव देखने को मिला.

उप चुनाव में भाजपा से बागी हो कर आरएलपी को दामन थाने वाले उदयलाला डांगी फिर से भाजपा से शामिल हो गए. पार्टी ने उन्हे टिकट भी दे दिया. ऐसे में उप चुनाव में दूसरे नम्बर पर रही आरएलपी को यहा झटका लग गया और वल्लभनगर के चुनावी मैदान से ही आउट हो गई. वही एक ओर बडा बदलाव तीसरे मोर्चे के रूप में काबीज जनता सेना में भी देखने को मिला. दो चुनाव हारने वाले जनता सेना सुप्रिमो और पूर्व विधायक रणधीर सिंह भीण्डर इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरे. उन्होने अपनी पत्नी दीपेन्द्र कुंवर को चुनावी मैदान में उतार कर महिला बनान महिला का मुकाबला बनाने की कोशिष की है. त्रिकोणिय मुकाबले में फंसी इस सीट पर उपचुनाव के बाद हुए विकास कार्यो के दम पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रीति शक्तावत लोग के बीच जा रही है लेकिन अपनों की नाराजगी उन पर भारी पडती दिखाई दे रही है. वही बीजेपी और जनता सेना ने भ्रष्ट्रचार सही अन्य मुद्धों को भूनाने की कोशिश में लगे हुए है.

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