One Nation One Election को लेकर मोदी सरकार की आसान नहीं डगर; सामने खड़ी हैं ये चुनौतियां
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One Nation One Election को लेकर मोदी सरकार की आसान नहीं डगर; सामने खड़ी हैं ये चुनौतियां

Process of One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर पूरे देश में माहौल गरम है. बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों के इसे लेकर अलग-अलग तर्क हैं. लेकिन सरकार अगर ये बिल लाती है तो सरकार के सामने क्या चुनौतियां हैं, चलिए जानते हैं.

 

 

One Nation One Election को लेकर मोदी सरकार की आसान नहीं डगर; सामने खड़ी हैं ये चुनौतियां

BJP Vs I.N.D.I.A: विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर माहौल गरमा चुका है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई में एक हाई लेवल कमेटी का भी गठन किया है. लेकिन इस मुद्दे पर विपक्षी नेता के तेवर तल्ख हैं. हाई लेवल कमेटी में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी का भी नाम है. लेकिन उन्होंने इसका हिस्सा बनने से मना कर दिया है.

एक देश, एक चुनाव को लेकर सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी I.N.D.I.A अलायंस के अपने-अपने तर्क हैं.  केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है जो 18 से 22 सितंबर तक चलेगा. माना जा रहा है कि इसी में सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल लेकर आएगी.

एक देश, एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी. लोकसभा और विधानसभा का चुनाव साथ में तभी कराया जा सकेगा, जब संविधान के आर्टिकल 83, 172 और 356 के प्रावधानों में संशोधन किया जाएगा.

संसद को संविधान के आर्टिकल 83 और 172 में संशोधन करना पड़ेगा, जिसके प्रावधानों में लिखा है कि सदन का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा. साथ ही ये भी कहा गया है कि इसको तय अवधि से पहले ही भंग करना पड़ेगा.

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2018 में आई थी लॉ कमीशन की रिपोर्ट

साल 2018 में लॉ कमीशन ने वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा था कि अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना है तो इसके लिए न सिर्फ संविधान संशोधन बल्कि जनप्रतिनिधि कानून 1952 और लोकसभा व विधानसभा के संचालन वाले नियमों में भी बदलाव करना पड़ेगा. 

लॉ कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 50 फीसदी विधानसभाओं को ऐसे संविधान संशोधन को अप्रूव करना पडे़गा. इतना ही नहीं संसद में भी सरकार को विशेष बहुमत की जरूरत पड़ेगी. संसद के दोनों सदनों में यह बिल पारित कराने के लिए केंद्र को तीन-चौथाई बहुमत चाहिए. भले ही लोकसभा में बीजेपी सरकार के पास बहुमत है मगर फिर भी उसकी डगर आसान रहने नहीं वाली.

लोकसभा-राज्यसभा का गणित क्या है.

तीन-चौथाई बहुमत में बात पहले लोकसभा की, जहां इस वक्त 539 सदस्य हैं. लेकिन संविधान में जरूरी संशोधन के लिए 404 सदस्यों के समर्थन की दरकार होगी. जबकि राज्यसभा में 238 सदस्य हैं. उच्च सदन में तीन-चौथाई सदस्यों का आंकड़ा 178 बैठेगा. एनडीए के लोकसभा में 333 और राज्यसभा में 111 सदस्य हैं. वहीं विपक्षी दलों के पास लोकसभा में 140 और राज्यसभा में 100 सीटें हैं. जब दिल्ली सर्विस बिल पर वोटिंग हुई थी, तब राज्यसभा में विरोध में 102 और पक्ष में 132 वोट पड़े थे. 

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कौन सी पार्टियां कर सकती हैं समर्थन

वन नेशन वन इलेक्शन बिल लाने के लिए केंद्र सरकार को कुछ पार्टियों से समर्थन की जरूरत पड़ेगी. कुछ ऐसी पार्टियां हैं जो किसी दल का हिस्सा नहीं हैं लेकिन समय-समय पर ये पार्टियां केंद्र सरकार को सहयोग देती रही हैं. इनमें बीएसपी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति जैसी पार्टियां हैं.

 इसके अलावा ओवैसी की AIMIM, TDP, SAD, AIUDF, JDS, समेत अन्य पार्टियों (जो किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं) के लोकसभा में 62 सांसद हैं. अगर ये पार्टियां केंद्र सरकार को समर्थन देती हैं या फिर वॉकआउट कर जाती हैं तो सरकार को राहत मिल सकती है. 
 

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