One Nation One Election यानी एक देश एक चुनाव एक बार फिर चर्चा में आ गया है, क्योंकि सूत्रों के हवाले खबरें आ रही हैं कि भाजपा सरकार इसी सेशन में यह बिल पेश कर सकती है. लेकिन बिल पास करवाने की राह इतनी आसान नहीं है. जानिए क्यों?
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One Nation One Election: एक देश, एक चुनाव यानी One Nation One Election एक बार फिर चर्चा में आ गया है. कहा जा रहा है कि सरकार इससे संबंधित बिल इसी सेशन में पेश कर सकती है. कैबिनेट ने पहले ही रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है. ऐसे में अब सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि सरकार अब विधेयक पर आम सहमति बनाना चाहती है और इसे विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति या जेपीसी के पास भेज सकती है. जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा करेगी.
सरकार कुछ समय से एक साथ चुनाव कराने पर जोर दे रही है, उसका तर्क है कि मौजूदा सिस्टम से समय और पैसा की बर्बादी होती है. सरकार का कहना है कि बार-बार आचार संहिता की वजह से विकास कार्यों पर ब्रेक लगाते हैं. ऐसे में एक देश-एक चुनाव लाना जरूरी है, ताकि बार-बार चुनावों की तरफ ना देखा जाए. इसीलिए कहा जा रहा है कि भाजपा सरकार इसी सेशन में यह बिल ला सकती है और सूत्रों ने बताया कि इस प्रक्रिया में अन्य हितधारकों को भी शामिल किया जाएगा. एक जानकारी के मुताबिक देश भर के बुद्धिजीवियों के साथ सभी राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों को भी बुलाया जा सकता है. इसके अलावा आम लोगों की राय भी ली जाएगी.
आम सहमति के अभाव में मौजूदा व्यवस्था को बदलना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. 'एक देश एक चुनाव' योजना को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करने के लिए कम से कम छह विधेयक लाने होंगे और सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. जबकि एनडीए के पास संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत है, लेकिन किसी भी सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल करना एक मुश्किल काम हो सकता है. राज्यसभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 और विपक्षी पार्टियों के पास 85 सीटें हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोटों की आवश्यकता है. लोकसभा में भी एनडीए के पास 545 में से 292 सीटें हैं. दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है, ऐसे में यहां भाजपा को विपक्षी पार्टियों की सहमति की जरूरत भी होगी लेकिन विपक्षी पार्टियां इस कदम को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बता रही हैं.
'एक देश, एक चुनाव' के विचार को लागू करने की संभावनाओं का अध्ययन करने के लिए केंद्र सरकार ने 2023 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनई थी. इस कमेटी का मकसद था कि भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने पर किन-किन चुनौतियों का सामना करना होगा. रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी यह रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को मार्च 2024 में सौंपी. यह रिपोर्ट समिति के गठन के बाद 191 दिनों की अवधि में तैयार की गई, जिसमें विभिन्न हितधारकों, विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों से व्यापक परामर्श शामिल था.
'एक देश, एक चुनाव' का विचार भारत में लोकसभा (संसद) और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के सिस्टम का प्रस्ताव है. इसका मकसद देश में बार-बार चुनाव कराए जाने से बचने और संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करना है.वर्तमान में भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं. इस विचार के तहत इन सभी चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव है. इसका मतलब होगा कि देश में हर पांच साल में एक बार एक ही समय पर चुनाव कराए जाएं. 1952 से लेकर 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते थे. 1968-69 में कुछ राज्यों में विधानसभाओं के भंग होने के बाद यह सिस्टम टूट गया.