मुगल बादशाह जब सिर्फ पांच सौ लड़ाकों से डर गया, तीन दिन तक लालकिले में खुद को किया कैद
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मुगल बादशाह जब सिर्फ पांच सौ लड़ाकों से डर गया, तीन दिन तक लालकिले में खुद को किया कैद

Mughal Ruler Muhammad Shah Rangeela: 1737 को वो वर्ष था जब दिल्ली की गद्दी पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले का शासन था. उसके बारे में कहा जाता है कि अपने पूर्व शासकों के नक्शेकदम पर चलते हुए उसने भी अपने आपको हरम तक सीमित कर रखा था और उसका असर भी दिखाई दे रहा था. पेशवा बाजीराव भल्लाल जब दिल्ली में दाखिल हुआ तो उसने खुद को लालकिले में सुरक्षित जगह पर कैद कर लिया. 

मुगल बादशाह जब सिर्फ पांच सौ लड़ाकों से डर गया, तीन दिन तक लालकिले में खुद को किया कैद

Mughal Emperor Muhammad Shah Rangeela:  मुगल इतिहास में वैसे तो उसका नाम मोहम्मद शाह था लेकिन उसे रंगीला भी कहा जाता था, पूरा नाम पड़ा मोहम्मद शाह रंगीले. अब आप रंगीले नाम से खुद ब खुद उसके चरित्र के बारे में अंदाजा लगा सकते हैं. जिस मुगलिया बादशाहत के सामने राजा महाराजा खुद सरेंडर कर दिया करते थे. वही राजा महाराजा दिल्ली के लालकिले में मुगलिया तख्त को खुली चुनौती देते थे. यहां हम एक ऐसी ही घटना का जिक्र करेंगे जब मोहम्मद शाह रंगीला इस कदर डरा कि उसने खुद को लालकिले में सुरक्षित जगह पर कैद कर लिया.

पेशवा बाजीराव के सामने टिक न सका

इतिहासकारों के मुताबिक 18वीं सदी के पहले हिस्से में मुगलों की ताकत छीड़ हो चली थी. कहने को लालकिले से वो पूरे देश पर शासन का दावा किया करते थे लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही थी. दिल्ली से हजारों किमी दूर महाराष्ट्र में मराठा शक्ति उभार पर थी और उसने दिल्ली के बादशाह को सबक सिखाने के बारे में इरादा किया. महाराष्ट्र में शिवाजी के वंशज शासन कर रहे थे लेकिन ताकत पेशवाओं के हाथ में थी.दिल्ली में जब मोहम्मद शाह रंगीले शासन कर रहा था उस वक्त पेशवा बाजीराव भल्लाल के चर्चे पूरे हिंदुस्तान में था. बाजीराव चीते की चाल और बाज वाली निगाह के साथ दिल्ली की तरफ बढ़ा और महज पांच सौ घोड़ों के साथ अबके तालकटोरा स्टेडियम में डेरा डाल दिया. यह सुनकर मोहम्मद शाह इस कदर घबराया कि उसने तीन दिन तक खुद लालकिले में सुरक्षित जगह पर कैद कर लिया.

अवध भागने का था इरादा

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि मोहम्मद शाह रंगीले ने एक बार तो मन बना लिया कि वो लालकिले में गुप्त रास्ते के जरिए अवध की तरफ भाग जाए. हालांकि जब बाजीराव ने मन बदला तो रंगीले के जान में जान आ गई. इस तरह से महान पादशाही का दंभ भरने वाला मुगल बादशाह बिना लड़े घुटनों के बल आ गया और वो भी तब संभव हुआ जब बाजीराव भल्लाल ने खुद वापस पुणे जाने का फैसला किया. इतिहासकारों के मुताबिक रंगीला के पास भागने के लिए और कोई विकल्प भी नहीं था. अगर बाजीराव ने दिल्ली में रुकने का मन बना लिया होता तो वो खुद ब खुद गद्दी छोड़ देता लेकिन वो संदेशा देना चाहते थे कि हिंदुस्तान की राजनीति में अब मुगल उतने ताककवर नहीं रहे. मराठा उनकी जगह ले सकते हैं.

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