महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का आज अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा. ब्रिटेन का एक तबका देश में राजशाही का विरोध भी कर रहा है. विरोध की प्रमुख वजह शाही परिवार पर हर साल खर्च होने वाले हजारों करोड़ रुपए हैं.
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नई दिल्लीः ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के अंतिम संस्कार की तैयारियां अंतिम चरण में चल रही हैं. लोग लंबी लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी महारानी के अंतिम दर्शन कर रहे हैं. हालांकि ब्रिटेन का एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो देश में राजशाही का विरोध करता है और राजशाही खत्म करने की मांग कर रहा है. दरअसल राजशाही के विरोध की सबसे बड़ी वजह ब्रिटिश शाही परिवार पर हर साल होने वाला खर्च है, जो ब्रिटेन के टैक्सपेयर की जेब से निकलता है.
हर साल होते हैं हजार करोड़ रुपए खर्च
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, जून 2022 में ब्रिटेन के शाही परिवार पर 10.24 करोड़ पाउंड यानि कि करीब 928 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. वहीं साल 2020 में ब्रिटिश शाही परिवार पर सालभर में करीब 793 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. गौरतलब है कि यह सारा पैसा ब्रिटिश टैक्सपेयर्स का होता है. ब्रिटेन के लोग सोवेरिन ग्रांट (संप्रभु अनुदान) का भुगतान करते हैं. इस सोवेरिन ग्रांट का सारा पैसा ब्रिटिश शाही परिवार के खर्चों में शाही महलों के रखरखाव में खर्च होता है. ब्रिटेन के हर व्यक्ति को इस ग्रांट में करीब 129 रुपए का भुगतान करना होता है.
महारानी एलिजाबेथ का अंतिम संस्कार पूरे शाही अंदाज में किया जा रहा है और इसका पूरा पैसा ब्रिटेन के टैक्सपेयर्स द्वारा वहन किया जाएगा. इससे पहले महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मां के अंतिम संस्कार में भी ब्रिटिश टैक्सपेयर्स के 40 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. अब नए राजा चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी का खर्च भी टैक्सपेयर्स द्वारा ही उठाया जाएगा.
ब्रिटेन दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में शुमार किया जाता है. ऐसे में जो लोग देश में राजशाही का विरोध कर रहे हैं, उनका तर्क है कि जब उनका देश सालों से लोकतांत्रिक व्यवस्था से चल रहा है तो उन्हें राजशाही की जरूरत नहीं है. ब्रिटेन का राजा या रानी हेड ऑफ स्टेट होता है लेकिन वह देश की संसद की सलाह पर कोई काम करता है. इस तरह वहां राजशाही के बिना भी काम चल सकता है.