छत्तीसगढ़ में दिखा विश्व का सबसे छोटा हिरण, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के कैमरे में हुआ कैद
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छत्तीसगढ़ में दिखा विश्व का सबसे छोटा हिरण, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के कैमरे में हुआ कैद

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में माउस डियर की तस्वीर ट्रेप कैमरे में कैद हुई है. ये विश्व की सबसे छोटी हिरण की प्रजाति मानी जाती हैं. इसकी लंबाई 57.5 cm होती हैं और वज़न 3 किलोग्राम के आस पास होता हैं.

छत्तीसगढ़ में दिखा विश्व का सबसे छोटा हिरण, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के कैमरे में हुआ कैद

अनूप अवस्थी/जगदलपुर: कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में माउस डियर की तस्वीर ट्रेप कैमरे में कैद हुई है. भारत में पाए जाने वाले हिरणों की 12 प्रजातियों में से माउस डियर विश्व में सबसे छोटे हिरण समूह में से एक है. भारतीय माउस डियर (Mosechiola indica) रहवास विषेश रूप से घने झाड़ियों व नमी वाले जंगलों में पाए जाते है. माउस डियर में चूहे- सुअर और हिरण के रूप और आकार का मिश्रण दिखाई देता है और बिना सींग वाले हिरण का एकमात्र समूह है.

बता दें कि माउस डियर के शर्मीले व्यवहार और रात्रिकालीन गतिविधि के कारण इनमें विशेष रिसर्च नहीं हो पाई है. मुख्य रूप से दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वनों में माउस डियर की उपस्थिति दर्ज़ हुई है. वनों में लगने वाली आग, बढ़ते हुए अतिक्रमण और शिकार के दबाव से भारतीय माउस डियर की आबादी को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है. 

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कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान सबसे उचित
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के संचालक धम्मशील गणवीर ने बताया कि कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में ऐसे वन्यजीव के लिए उपयुक्त रहवास होने से और राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु लगातार चलाए जा रहे जागरूकता अभियान के प्रयास एवं स्थानीय लोगो के सहभागिता से माउस डियर जैसे दुर्लभ प्रजातियों की वापसी देखी जाने जा रही है.

विश्व का सबसे छोटा हिरण
यह अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का हिरण इंडियन माउस डियर (इंडियन स्पॉटेड शेवरोटेन) जिसका वैज्ञानिक नाम मोसियोला इंडिका हैं. ये विश्व की सबसे छोटी हिरण की प्रजाति मानी जाती हैं. इसकी लंबाई 57.5 cm होती हैं और वज़न 3 किलोग्राम के आस पास होता हैं.

ये रात में निकलने वाला जीव हैं और बहुत मुश्किल से ही देखने को मिलता हैं. यहां तक की कैमरा ट्रैप में भी इसकी कम ही तस्वीरे हैं. ये छुपने में बहुत माहिर होता हैं. और जंगल में इसे देख पाना भी आसान नहीं होता. यहीं कारण हैं कि इसके बैलाडीला में होने की जानकारी अब तक नहीं थी. इन वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए बैलाडीला की जंगलों को बचाना आवश्यक है. जो कि धीरे-धीरे खत्म होते जा रहा है.

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