Hind Muslim Unity: आज हम आपको ग्लालियर के एक ऐसे प्राचीन मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां पर हिंदू धर्म के लोग जल तो मुस्लिम समाज के लोग चादर चढ़ाते हैं. खास बात यह है कि यहां कभी एक दूसरे में विवाद नहीं होता है.
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Raja Bakshar ki Dargah Gwalior: अभी तक आपने कई ऐसे मंदिर (Temple) और मस्जिद (Masjid) के बारे में देखा या सुना होगा, जहां आए दिन हिंदू-मुस्लिम (Hindu-Muslim) के बीच विवाद (Controversy) होता रहता है. लेकिन आज हम आपको मध्य प्रदेश में स्थित एक ऐसे जगह के बारे में बता रहे हैं, जहां पर मजहब के नाम पर कोई झगड़ा नहीं होता है. यहां एक ही स्थान पर जहां मुस्लिम समाज के लोग सजदे में सिर झुकाते हैं तो वहीं हिंदू धर्म के लोग पूरे रीति रिवाज से पूजा पाठ करते हैं. आइए जानते हैं इस जगह के बारे में...
जानिए कहा हैं ये जगह
दरअसल हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित राजा बाक्षर के दरगाह के बार में जिसे हिंदू राजा बाक्षर का मंदिर कहते हैं. बताया जाता है कि इस दरगाह में 300 साल पुरानी दरगाह है. इसे मुस्लिम समाज के लोग पीर मानकर उन्हें चादर चढ़ाकर सजदे में सिर झुकाते हैं. जबकि हिंदू समाज के लोग राजा बाक्षर को शिवभक्त मानते हैं और उनका जलाभिषेक पूजन करते हैं. यहां दोनों ही तरीकों से बाबा की पूजा और इबादत की जाती है.
जानिए कौन थे संत बाक्षर महाराज
ऐसा बताया जाता है कि करीब 300 साल पहले सिंधिया राजवंश की विशेष आग्रह पर बाबा को महाराष्ट्र से ग्वालियर लाया गया था. महाराष्ट्र के सतारा नामक स्थान पर बाबा का प्रमुख स्थान है. जहां आज भी हिंदू-मुस्लिम दोनों ही बाबा के दर पर अपने सर झुकाते हैं. बताया जाता है कि संत बाक्षर महाराज जी हिंदू थे. जो माराष्ट्र के सतारा के गांव खाते के रहने वाले थे. बताया जाता है कि किसी मुस्लिम राजा ने बाबा के दर पर किसी विशेष प्रयोजन के लिए सिर झुकाया और बाबा के आशीर्वाद से पूरा हो गया. तभी से मुस्लिम समाज के लोग बाबा को चादर चढ़ाते हैं और हिंदू समाज के लोग अभिषेक करते हैं.
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