Election in JK: अलगाववाद मुख्यधारा में तब्दील हो रहा है. दर्जनों अलगाववादी और अलगाववादी नेताओं के परिवार के सदस्यों ने चुनावी राजनीति में शामिल होने का फैसला किया है.
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Jammu Kashmir Chunav: जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव हर गुजरते दिन के साथ और भी दिलचस्प होते जा रहे हैं. इस चुनाव में कश्मीर घाटी में विचारधाराओं में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अलगाववाद मुख्यधारा में तब्दील हो रहा है. दर्जनों अलगाववादी और अलगाववादी नेताओं के परिवार के सदस्यों ने चुनावी राजनीति में शामिल होने का फैसला किया है.
असल में संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु ने सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल करके आधिकारिक रूप से राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया है. यह घटनाक्रम अफजल गुरु को तिहाड़ जेल में फांसी दिए जाने के 11 साल बाद हुआ है. 2014 में पशुपालन विभाग में अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले एजाज वर्तमान में एक ठेकेदार के रूप में काम कर रहे हैं.
उन्होंने रोजगार के अवसर, बुनियादी ढांचे के विकास और युवाओं के पुनर्वास सहित सोपोर में लंबे समय से लंबित मुद्दों को संबोधित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस क्षेत्र को "पिछले नेताओं द्वारा अनदेखा किया गया है और अब वो सोपोर को पुनर्जीवित करना चाहते है.
एजाज अहमद गुरु ने कहा “राजनीति में प्रवेश करने का कारण यह है कि हमने पिछले 35 वर्षों में बहुत कुछ देखा है. मैं आपको दो मिनट में कुछ नहीं बता सकता, यह तीन दशकों की कहानी है. केवल गुरु ही नहीं हैं जो मुख्यधारा में आ गए हैं, दूसरे व्यक्ति मुनीर अहमद खान हैं जो जेकेएनपीएफ (जम्मू कश्मीर नेशनलिस्ट पीपल फ्रंट) के प्रमुख हैं, मुनीर ख़ान जो अलगवादी संगठन जम्मू कश्मीर नेशनल के अध्यक्ष नयीम ख़ान जो अभी तिहाड़ जेल में है के छोटे भाई हैं
"जब मैं राजनीति में आया तो यह बदलाव बहुत जरूरी था, मैंने सोचा कि हमारे पास बहुत सारे युवा हैं जिनका अभी तक शोषण किया गया है और किसी को चिंता नहीं है" कश्मीर हमेशा बदलाव चाहता था लेकिन यहां हमेशा लोकतंत्र का मजाक उड़ाया गया. दुनिया बदल रही है भारत बदल रहा है जम्मू कश्मीर भी बदल रहा है हमने बहुत खूनखराबा देखा है, हम कब तक देखेंगे. हमारे पास बहिष्कार से बड़ी चुनौतियां हैं, बहिष्कार ने हमेशा उन लोगों की मदद की है जिन्होंने हमारे लोगों का शोषण किया"
एक अन्य उम्मीदवार जेल में बंद मौलवी सरजन अहमद वागे हैं, जिन्हें सरजन बरकती के नाम से जाना जाता है और हिज्ब कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद घाटी में विरोध रैलियों का एक प्रमुख चेहरा थे. सरजन और उनकी पत्नी दोनों हिरासत में हैं सर्जन दो जगहों ने चुनाव लड़ रहे हैं गन्दरबल और बीरवाह से लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सरजन गंदेरबल सीट पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे.
आदिल नजीर, बरकती के प्रतिनिधि.”मैं भारत के लोकतंत्र में विश्वास करता हूं और मुझे इस पर पूरा भरोसा है और इसीलिए मैं यहां हूं. हम बीरवाह भी जा रहे हैं. लोकतंत्र का मतलब है जहां लोग शक्तिशाली हों, सरजन साहब को जेल से बाहर के लोगों की तरह चुनाव लड़ने का समान अधिकार है. अगर वह जेल के इस तरफ आना चाहते हैं तो उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. मुझे उम्मीद है कि लोग उनका समर्थन करेंगे. वह एक राजनीतिक कैदी हैं. उनकी बेटी और बेटा अनाथों की तरह रह रहे हैं और कोई भी उनकी मदद करने नहीं गया है,''
अन्य राजनीतिक नेताओं में पीडीपी के पूर्व प्रमुख सैयद सलीम गिलानी, जेकेएनपीपी के पूर्व प्रमुख और हुर्रियत के पूर्व नेता गुलाम मोहम्मद हुब्बी के बेटे जाविद हुब्बी भी शामिल हैं. आगा मुंतजिर मेहदी, एक प्रमुख शिया मौलवी और हुर्रियत के कार्यकारी सदस्य आगा सैयद हसन के बेटे, मेहदी बडगाम से चुनाव लड़ रहे हैं.
अल्ताफ अहमद भट, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा के एक सामाजिक कार्यकर्ता और जेल में बंद नेता बशीर अहमद भट के भाई, जिन्हें पीर सैफुल्लाह के नाम से जाना जाता है, राजपोरा से एआईपी के उम्मीदवार हैं. कलीमुल्लाह, जमात के पूर्व महासचिव गुलाम कादिर लोन के बेटे हैं. कलीमुल्लाह उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा में लंगेट से चुनाव लड़ रहे हैं.कुल मिला कर देखे तो लोकसभा चुनावों में लोगों ने को बारी मतदान किया उसने इन अलगवादियों के सोच में भी परिवर्तन लाया है क्योंकि यह समाज गये के लोग अब क्या चाहते है.