'मकर विल्लुकु' को देखने के लिए रिकॉर्ड तोड़ लाखों की भीड़, 41 दिन की तपस्या के बाद मिला ये मौका
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'मकर विल्लुकु' को देखने के लिए रिकॉर्ड तोड़ लाखों की भीड़, 41 दिन की तपस्या के बाद मिला ये मौका

Makaravilakku celebrated at Sabarimala: भारी भीड़ और घंटों लंबी कतारों का सामना करते हुए तीर्थयात्रियों का समूह प्रसिद्ध भगवान अयप्पा मंदिर में ‘मकरविलक्कु’ के दिन पूजा करने के लिए पहुंचा. परंपरा के अनुसार, पवित्र मंदिर में जाने से पहले, तीर्थयात्री आमतौर पर 41 दिनों की कठोर तपस्या करते हैं, जिसमें वे जूते नहीं पहनते, काली धोती पहनते हैं और सिर्फ शाकाहार करते हैं. मंगलवार शाम करीब 6:44 बजे 'मकर विल्लुकु' की पहली रोशनी दिखाई दी.

'मकर विल्लुकु' को देखने के लिए रिकॉर्ड तोड़ लाखों की भीड़,  41 दिन की तपस्या के बाद मिला ये मौका

Devotees Reach Sabarimala For Makaravilakku Festival: सबरीमाला मंदिर में मंगलवार शाम रिकॉर्ड दो लाख तीर्थयात्रियों ने आकाशीय रोशनी देखी. यह आकाशीय रोशनी, जिसे "मकर विल्लुकु" कहा जाता है, तीर्थ यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है. यह रोशनी नवंबर में शुरू हुए दो महीने लंबे त्योहार के मौसम में तीन बार दिखाई देती है और यह तीर्थयात्रियों के लिए एक दिव्य संकेत होता है.  सबरीमाला मंदिर प्रसिद्ध है और पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में समुद्र तल से 914 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह मंदिर पथानामथिट्टा जिले में पंबा से चार किलोमीटर ऊपर है, जो राज्य की राजधानी से लगभग 100 किलोमीटर दूर है.

'मकर विल्लुकु' को देखने के लिए सुबह से इंतजार
तीर्थयात्री सुबह से ही इस आकाशीय रोशनी को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं. शाम करीब 6:44 बजे आकाशीय रोशनी पहली बार दिखाई दी और इसके बाद दो बार और यह रोशनी देखी गई. इसके साथ ही मंदिर शहर में "स्वामी सरनयप्पा" के जयकारे गूंज उठे.  मंदिर शहर और उसके आसपास सुरक्षा का नेतृत्व करने वाले एडीजीपी एस. श्रीजीत ने कहा कि करीब दो लाख तीर्थयात्री हैं और पूरी स्थिति नियंत्रण में है. उन्होंने यह भी कहा कि अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों से आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या राज्य के तीर्थयात्रियों से अधिक थी.  बता दें कि रजस्वला महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले इस मंदिर तक पंबा नदी से केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है.

41 दिनों की कठोर तपस्या
परंपरा के अनुसार, पवित्र मंदिर में जाने से पहले, तीर्थयात्री आमतौर पर 41 दिनों की कठोर तपस्या करते हैं, जिसमें वे जूते नहीं पहनते, काली धोती पहनते हैं और सिर्फ शाकाहार करते हैं. तीर्थ यात्रा के दौरान प्रत्येक तीर्थयात्री अपने सिर पर 'ल्रुमुडी' रखते हैं, जो एक प्रार्थना किट है जिसमें नारियल होते हैं जिन्हें 18 सीढ़ियां चढ़ने से ठीक पहले तोड़ा जाता है और इसके बिना किसी को भी 'सन्निधानम' में पवित्र 18 सीढ़ियों पर चढ़ने की अनुमति नहीं होती है.

कड़ाके की ठंड में लंबी कतारें
भारी भीड़ और घंटों लंबी कतारों का सामना करते हुए तीर्थयात्रियों का एक समूह मंगलवार को प्रसिद्ध भगवान अयप्पा मंदिर में ‘मकरविलक्कु’ के दिन पूजा करने के लिए पहुंचा. पारंपरिक काले परिधान और मोतियों की माला पहने, सभी आयु वर्ग के तीर्थयात्री, इस दिन मुख्य देवता भगवान अयप्पा के दर्शन करने के लिए सुबह से ही मंदिर के ऊंचे रास्तों पर इंतजार करते रहे. कड़ाके की ठंड और लंबी कतारों के बावजूद अयप्पा भक्तों का उत्साह कम नहीं हुआ, जो अपने सिर पर 'इरुमुदी केट्टू' (एक पारंपरिक गठरी जिसे श्रद्धालु मंदिर में लाते हैं) रखकर "स्वामीये शरणम् अयप्पा" मंत्र का जाप कर रहे थे. इस दौरान मकर ज्योति देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आसपास के विभिन्न स्थानों पर एकत्रित हुए.

केरल सरकार द्वारा त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) और वन विभाग के सहयोग से पोन्नम्बलमेडु में ज्योति प्रज्वलित करना, पहाड़ी के पास रहने वाले आदिवासी परिवारों की परंपरा का ही एक हिस्सा है. राज्य सरकार और मंदिर का प्रबंधन करने वाली सर्वोच्च संस्था टीडीबी ने भीड़ प्रबंधन के लिए व्यापक प्रबंध किए और मंदिर व उसके परिसर में श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की.

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