Exclusive: गुजरात चुनाव को लेकर क्या सोचता है पारसियों का 'काशी' उदवाड़ा, बीजेपी-अरविंद केजरीवाल के लिए लोगों ने कही ये बात
Advertisement
trendingNow11398194

Exclusive: गुजरात चुनाव को लेकर क्या सोचता है पारसियों का 'काशी' उदवाड़ा, बीजेपी-अरविंद केजरीवाल के लिए लोगों ने कही ये बात

Gujarat Elections 2022: जो अहमियत हिंदुओं के लिए अयोध्या रखती है, मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का मदीना है. ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी है, ठीक वही पारसियों के लिए पूरी दुनिया में उदवाड़ा रखता है. यहां आतेश बहराम मौजूद है, जिसमें 1300 साल से पवित्र अग्नि जल रही है.

Exclusive: गुजरात चुनाव को लेकर क्या सोचता है पारसियों का 'काशी' उदवाड़ा, बीजेपी-अरविंद केजरीवाल के लिए लोगों ने कही ये बात

Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान तो अभी चुनाव आयोग ने नहीं किया है. लेकिन राज्य में सियासी हलचल तेज हो गई है. समीकरणों पर चर्चा तेज होने लगी है और रणनीतियां भी रफ्तार पकड़ चुकी हैं. Zee News भी लगातार गुजरात की गलियों में घूम रहा है ताकि जमीनी हकीकत मालूम चल सके. आज हम आपको ले चल रहे हैं, गुजरात के वलसाड से 30 किमी दूर उदवाड़ा में. कुछ वक्त पहले मशहूर बिजनेसमैन साइरस मिस्त्री की अहमदाबाद मुंबई हाईवे पर कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. वो इसी उदवाड़ा गांव में पारसियों के सबसे बड़े तीर्थ स्थल आतेश बहराम में पूजा करके लौट रहे थे.

आप रत्न टाटा से लेकर आदि गोदरेज, दिवंगत साइरस मिस्त्री, साइरस पूनावाला, बोमन ईरानी से लेकर फील्ड मार्शल सर मानेक शॉ को जानते ही होंगे. ये सब इसी पारसी समुदाय से आते हैं.

ये उदवाड़ा गांव पूरी दुनिया में पारसी समुदाय का इकलौता गांव है. भारत में आज पारसी समुदाय की जनसंख्या महज 50,000 ही रह गई है. लेकिन गुजरात के उदवाड़ा में आज भी इस समुदाय के सबसे ज्यादा लोग बसे हुए हैं. इस गांव में हम सबसे पहले इसके इन्फॉर्मेशन सेन्टर पर पहुंचे. इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस इन्फॉर्मेशन सेंटर से हमें पारसियों के ईरान से भागकर भारत आने की पूरी कहानी समझ में आती है.

...जब ईरान से भागकर भारत आए थे पारसी

सबसे पहले हमें सजान गांव के राजा जाड़ी राणा की कहानी पता चली. जब पारसी ईरान से भागकर भारत आए थे तो वो सजान गांव पहुंचे थे. जब ये सजान गांव के राजा जाड़ी राणा से मिले और इनके इलाके में ही रुकने की जगह मांगी तो राजा ने उन्हें दूध से भरा एक बर्तन दिखाया और कहा कि जैसे इस बर्तन में जगह नहीं दिखाई दे रही है, वैसे ही उनके इलाके में भी कोई जगह मौजूद नहीं है. इस पर पारसी धर्म के गुरु जिन्हें दस्तूर कहा जाता है, ने उस दूध में शक्कर मिलाई और कहा कि जैसे इस दूध में शक्कर मिल गई है, वैसे ही पारसी समाज भी आपके इलाके में आपके रीति-रिवाज के साथ घुलमिल जाएगा. इसके बाद राजा ने पारसी समुदाय के सामने 5 शर्तें रखीं.

ये थीं शर्तें

  • पहली शर्त के मुताबिक पारसी समुदाय को अपने पूजा के रीति-रिवाजों के बारे में राजा को बताना होगा.

  • दूसरी शर्त- पारसी समुदाय राजा के सामने कभी भी हथियार नहीं उठाएगा.

  • तीसरी शर्त- पारसी समुदाय को ईरानी या पर्शिया की भाषा को छोड़ लोकल भाषा अपनानी होगी.

  • चौथी शर्त- पारसी महिलाओं को लोकल महिलाओं के तरह कपड़े पहनने होंगे.

  • पांचवीं शर्त- पारसी समुदाय को लोकल लोगों के मुताबिक ही सूर्य के छिपने के बाद अपने शादी समारोह करने होंगे.

इसके बाद हम उस जगह पर गए जहां पारसी समुदाय के उन तमाम लोगों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने भारत देश के आर्थिक, सामाजिक, सुरक्षा से जुड़े क्षेत्रों में अपना योगदान दिया है. इसमे कई बड़े उद्योगपतियों से लेकर फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और भीकाजी कामा का जिक्र किया गया है, जिन्होंने देश के लिए पहला झंडा बनाया और उस पर वंदे मातरम लिखा था.

पारसी समुदाय में आग का होता है सम्मान
 

इसके बाद हम उस जगह पर गए, जहां पारसी समुदाय का पूजा स्थल है. इसे आतेश बहराम कहा जाता है. इनकी पूजा में पवित्र आग का बहुत सम्मान किया जाता है. जिस कुंड में पवित्र आग को जलाया जाता है, उसे अफरगान कहा जाता है. इस कुंड में सिर्फ चंदन और बबूल की लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

इनके मुख्य पंडित जिसे दस्तूर कहा जाता है, जो कपड़े पहनते हैं उसे जामा कहते हैं. पूजा स्थल आतेश बहराम में आज भी बिजली का इस्तेमाल नहीं किया जाता है बल्कि रोशनी के लिये आज भी बरसों पुराना तरीका दीये जलाए जाते हैं.

शव को जलाया या दफनाया नहीं जाता 

जीवन के साथ मृत्यु का भी कॉन्सेप्ट पारसी समुदाय में बहुत खास होता है. इसलिए इस समुदाय में कुआं बनाया जाता है, जहां शव को रख दिया जाता है. इस समुदाय में शव को जलाया या दफनाया नहीं जाता. इनकी पूजा में खास बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है जो जर्मन सिल्वर से बने होते हैं. जैसे हिंदुओं में जनेऊ संस्कार होता है, वैसे ही पारसियों में नवजोत संस्कार होता है, जिसे 6 साल के हर बच्चे को करना अनिवार्य होता है. इस दौरान हमें वो विज़िटर बुक भी मिली, जिस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सिग्नेचर के साथ पारसी समुदाय की तारीफ करते हुए एक पूरा नोट भी लिखा था. ये बात 24 अप्रैल 2011 की है. 

क्या बोले समुदाय के मुख्य पुजारी

इसके बाद हमने बाद की पारसी समुदाय के मुख्य पूजाकर्ता, दस्तूर खुर्शीद जी से. दस्तूर खुर्शीद के मुताबिक पारसी समुदाय 1300 साल पहले भारत आया था. सबसे पहले ये समुदाय दमन दीव में आया लेकिन फिर वहां से निकलकर ये सजान गांव पहुंचे. इसके बाद ये समुदाय सूरत, नवसारी जैसे कई इलाकों से होते हुए उदवाड़ा गांव में पहुंचा और फिर यहीं का होकर रह गया.

जो अहमियत हिंदुओं के लिए अयोध्या रखती है, मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का मदीना है. ईसाइयों के लिए वेटिकन सिटी है, ठीक वही पारसियों के लिए पूरी दुनिया में उदवाड़ा रखता है. यहां आतेश बहराम मौजूद है, जिसमें 1300 साल से पवित्र अग्नि जल रही है. आज इस समुदाय के लिए सबसे बड़ी समस्या इसकी जनसंख्या में हो रही लगातार गिरावट है. आज पूरे भारत में महज 50,000 पारसी ही बचे हुए हैं.

चूंकि जल्द ही चुनावी मौसम भी आगे बढ़ रहा है. इस पर बात करते हुए दस्तूर खुर्शीद ने कहा, 'जब मोदी मुख्यमंत्री थे तब से इस गांव में बहुत ज़्यादा विकास हुआ है. जो लोग फ्री में देने की चुनावी घोषणा करते है, वो सब झूठ बोल रहे हैं, वो किसी का भला नहीं कर रहे हैं. दस्तूर खुर्शीद के मुताबिक BJP आने वाले चुनावों में सरकार बनाने जा रही है. भले ही पिछले 30 सालों से BJP सत्ता में है, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. गुजरात में बहुत विकास किया गया है.

यहां मिलता है सिर्फ पारसी खाना

उदवाड़ा गांव में हम उस जगह भी गए, जहां सिर्फ पारसी खाना ही मिलता है. यहां हमारी मुलाकात हुई शहजाद और उनकी मम्मी से, जो पिछले 7 सालों से दुनिया भर से आने वाले पारसियों को पारसी खाना परोस रहे हैं. पारसी खाने में गुजराती खाने और ईरानी खाने का समावेश है. गुजराती खाने में मीठा होता है जबकि पारसी खाने में खट्टा, मीठा और तीखा स्वाद मिला है. 

बोई फिश, राशियन पेटीज़, पुलाव, केले के पत्ते में बनाई गई फिश को खाने दुनिया भर से पारसी लोग आते हैं. इसके अलावा नवरोज़, पारसी न्यू ईयर पर भी ये ट्रडिशनल खाने खाए जाते हैं. शहजाद और उनकी मम्मी से भी जब हमने आने वाले चुनावों को लेकर बात की तो उन्होंने बताया कि BJP ही आने वाले चुनावों में सरकार बनाने जा रही है. जहां तक सवाल अरविंद केजरीवाल का है और उनकी चुनावी घोषणाओं का, तो उस पर किसी को यकीन नहीं था. खास तौर पर नाराजगी  नेताओ की ओर से किए जाने वाले फ्री की घोषणाओं को लेकर थी.

ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Trending news