Catholic Bishops body slams Bhagwat remarks: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान ने पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है, जिसपर अब भारत के कैथोलिक बिशपों का स्थायी संघ ने विरोध जताया है. तो आइए जानते हैं आखिर मोहन भागवत ने ऐसा क्या ही कहा? और क्यों बिशप लोग जता रहे विरोध.
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Catholic bishops denounce RSS chief alleged claims: भारत में कैथोलिकों के शीर्ष संस्था ने गुरुवार को धर्मांतरण और आदिवासी समुदायों से संबंधित एक बयान की सत्यता पर सवाल उठाया है, ये बयान किसी और ने नहीं बल्कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का है. भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नाम को लेते हुए एक बयान दिया है, जिसको लेकर ईसाईयों के बिशपों ने इसे 'झूठा' और 'मनगढ़ंत' बताया है. ‘कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ (सीबीसीआई) ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की इस कथित टिप्पणी की आलोचना की है.
'घर वापसी' के बयान पर बिशपों का विरोध
कैथोलिक बिशपों की संस्था सीबीसीआई ने जारी एक बयान में उन खबरों का हवाला दिया, जिनमें कथित तौर पर कहा गया है कि भागवत ने सोमवार को एक कार्यक्रम में दावा किया था कि मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए 'घर वापसी' की सराहना की थी और उनसे कहा था कि यदि संघ ने धर्मांतरण पर काम नहीं किया होता तो आदिवासियों का एक वर्ग ‘‘राष्ट्र-विरोधी’’ हो गया होता. सीबीसीआई ने इन खबरों को ‘‘चौंकाने वाला’’ बताया. संस्था ने सवाल किया कि मुखर्जी के जीवित रहते भागवत ने इस बारे में कुछ क्यों नहीं बोला. सीबीसीआई कहा, ‘‘हम 2.3 प्रतिशत ईसाई भारतीय नागरिक इस तरह के छलपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण प्रचार से बहुत आहत महसूस कर रहे हैं.’’ ‘घर वापसी’ शब्द का इस्तेमाल आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों मुसलमानों और ईसाइयों के हिंदू धर्म में लौटने के लिए करते हैं.
मोहन भागवत ने क्या कहा था?
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भागवत ने सोमवार को इंदौर में एक भाषण में कथित तौर पर कहा कि उन्होंने देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उस समय मुलाकात की थी जब संसद में 'घर वापसी' को लेकर हंगामा हो रहा था. उस समय अन्य धर्मों से हिंदू धर्म में लौटने वाले लोगों को लेकर देश में खूब बहस छिड़ी थी. भागवत ने मुखर्जी का नाम लेते हुए बताया कि उन्होंने हमसे कहा "आप लोग क्या कर रहे हैं? इससे विवाद पैदा होता है. क्योंकि यह राजनीति है. अगर मैं कांग्रेस में होता, राष्ट्रपति पद पर नहीं होता, तो मैं भी संसद में विरोध कर रहा होता.
भागवत की क्या हुई प्रणब मुखर्जी से बात?
आरएसएस प्रमुख ने आगे कहा कि फिर प्रणब मुखर्जी ने कहा 'लेकिन आपने जो काम किया है, उसके कारण 30 प्रतिशत आदिवासी...' मैं समझ गया कि वह क्या कहना चाह रहा था और मैं खुश था... मैंने कहा, '...(अन्यथा) मैं ईसाई बन जाता?' उन्होंने कहा, 'ईसाई नहीं, बल्कि राष्ट्र-विरोधी'. जिसके बाद इस बयान का कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने कहा: "भारत के पूर्व राष्ट्रपति के नाम से गढ़ी गई व्यक्तिगत बातचीत और संदिग्ध विश्वसनीयता वाले संगठन के निहित स्वार्थ के साथ इसका मरणोपरांत बात करना, छपना राष्ट्रीय महत्व का एक गंभीर मुद्दा उठाता है. "इससे यह भी मुद्दा उठता है कि क्या यह कथित बयान उस समय की योजना में था जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को उनके किसी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था.
डॉ. प्रणब मुखर्जी जीवित थे, तब क्यों नहीं ये बोला?
जब डॉ. प्रणब मुखर्जी जीवित थे, तब मोहन भागवत ने क्यों नहीं बोला? ऐसा लगता है कि उनका इरादा शैतानी, भयावह और वास्तविक नहीं है. "हम नहीं मानते कि यह बयान सच है और पूर्व राष्ट्रपति द्वारा कहा गया है, क्योंकि हम राष्ट्र के प्रति उनके योगदान और हमारी मातृभूमि के बहुलवादी धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के प्रति उनके सम्मान के लिए उनका बहुत सम्मान करते हैं."यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तीन बार प्रतिबंधित संगठन, जो पिछले कई दशकों में जिस तरह के हिंसक भारतीय इतिहास से जुड़ा हुआ है, उसे अहिंसक, शांतिप्रिय और सेवा-उन्मुख ईसाई समुदाय को राष्ट्र-विरोधी कहने की छूट है." इनपुट भाषा से भी