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Bihar Politics 2022: बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने इस साल की शुरुआत में सात दलों का एक नया गठबंधन बनाकर अपनी पार्टी जदयू के लंबे समय से सहयोगी रही भाजपा को बड़ी चतुराई के साथ किनारे कर दिया तो लोग दंग रह गए. 71 वर्षीय बिहार के कद्दावर राजनेता नीतीश ने अपने इस कदम से उन लोगों को गलत साबित कर दिया जो सोचते थे कि वह सेवानिवृत्ति की ओर अग्रसर हैं. अब वह अगले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के रथ को रोकने के लिए विपक्ष को एकजुट करने की अपनी एक संभावित राष्ट्रीय भूमिका के लिए प्रयासरत हैं .
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में राजग का समर्थन करने के तुरंत बाद भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ लेने वाले नीतीश ने एक तरह से उस कहावत की याद दिला दी कि बदला एक ऐसा व्यंजन है जो ठंडा परोसा जाने पर सबसे अच्छा लगता है. ऐसा प्रतीत होता है कि वह केंद्र में सत्तारूढ़ व्यवस्था द्वारा की गयी किसी उपेक्षा को न तो भूले हैं और न ही किसी को माफ किया है.
गठबंधन तोड़ने से पहले नीतीश ने आरसीपी सिंह से छुटकारा पाने में तेजी दिखाई. सिंह उनके एक पूर्व शागिर्द थे और उनके बारे में उन्हें संदेह था कि उन्होंने भाजपा के साथ हाथ मिला लिया है और उन्हें उनकी पार्टी को तोड़ने के लिए भेजा गया था. नौकरशाह से राजनेता बने और जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे सिंह को राज्यसभा में एक और कार्यकाल से वंचित कर दिया गया था जिसके कारण उन्हें अपनी प्रतिष्ठित केंद्रीय कैबिनेट सीट छोड़नी पड़ी थी.
नीतीश के कट्टर प्रतिद्वंद्वी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद एक गुर्दा प्रत्यारोपण से उबरने के बाद अपने पसंदीदा बेटे तेजस्वी यादव के लिए एक सुनिश्चित भविष्य को ध्यान में रखते हुए अतीत की दुश्मनी (नीतीश का पिछली महागठबंधन सरकार जिसमें तेजस्वी उपमुख्यमंत्री रहे थे, गठबंधन से नाता तोड़कर भाजपा के साथ नई सरकार बना लेना) को भुलाते हुए उन्हें गले लगा लिया था .
एक प्रशासक के रूप में मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा पर हालांकि उस समय सवाल उठाया गया जब बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद कई शराब त्रासदियां नजर आईं. इनमें हाल ही में सारण जिले में हुई अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी भी शामिल है. वर्ष 2022 के दौरान युवाओं की एक बडी आबादी वाला बिहार भी रेलवे भर्ती परीक्षा नियमों में बदलाव के खिलाफ आंदोलन से हिल गया था जिसके कारण केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार को संशोधन करना पड़ा था और साथ ही अग्निपथ योजना ने जदयू और भाजपा के बीच दोनों दलों के बीच संबंध विच्छेद होने के पूर्व दरारों को भी उजागर कर दिया.
वर्ष 2022 के दौरान बिहार में सत्तापक्ष और विपक्ष की एकता के तौर पर जाति आधारित गणना का मुद्दा भी चर्चा में बना रहा जब भगवा दल के परोक्ष रूप से विरोध किए जाने के बावजूद राजद और जदयू का इसका समर्थन किया. बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में वर्ष 2022 के दौरान बड़ी मछलियों द्वारा छोटी मछली को निगला जाना भी लोगों को देखने को मिला. एक तरफ जहां भाजपा ने अपने पूर्व सहयोगी मुकेश सहनी को सत्ता में साथ रहने के दौरान ही अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया और उनकी विकासशील इंसान पार्टी के सभी तीन विधायकों को अपने दल में शामिल करा लिया.
वहीं दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बेबसी से अपने एक विधायक को छोड़कर सभी को राजद में शामिल होते देखा. एआईएमआईएम जिसने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीट पर जीत हासिल कर धूम मचा दी थी. राजनीतिक बवंडर ने कांग्रेस को (जो कि अपने पुराने सहयोगी राजद के साथ झगड़ रही था) महागठबंधन सरकार में एक विनम्र छोटे सहयोगी के रूप में सत्ता में अपनी हिस्सेदारी का आनंद लेता दिखा.
नीतीश के साथ होने के कारण बिहार में राजग से बाहर कर दिए गए चिराग पासवान भी पिता द्वारा स्थापित दल लोकजनशक्ति पार्टी को तोड़ने वाले अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को वैधता देने वाली और केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें स्थान देने वाली भाजपा को फिर से गले लगाते दिखे. राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर जिन्होंने राज्य के अंदर और बाहर कई कद्दावर नेताओं को चुनाव जिताने में मदद किया है और अब लगता है कि उनकी खुद की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जोर मार रही हैं. प्रशांत अब राजनीतिक परामर्श देना छोड़ इनदिनों बिहार में नया विकल्प खडा करने के लिए अपने जन सुराज अभियान के तहत प्रदेश की लंबी यात्रा पर हैं.
बिहार में खेल सुविधाओं के बावजूद क्रिकेटर इशान किशन ने एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में सबसे तेज दोहरा शतक बनाया, जबकि सकीबुल गनी ने रणजी ट्रॉफी में तिहरा शतक लगाकर अपना पदार्पण किया. वर्ष 2022 के दौरान बिहार में रेलवे इंजन के पुर्जों और यहां तक कि एक लोहे के पुल में तोड़-फोड़ और चोरी की वारदात ने इस राज्य को सुर्खियों में रखा.
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(इनपुट- भाषा)