राजद ने नीतीश को पीएम बनाने का ऐसा सपना दिखाया है जिसमें वह इतना खो चुके हैं कि अपने शुभचिंतकों को दरकिनार करने में लगे हैं.
Trending Photos
Bihar Politics: 'सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।' बिहार के मौजूदा शिक्षा मंत्री के लिए भले ही 'रामचरित मानस' का कोई महत्व ना हो लेकिन हिंदुओं के लिए यह पवित्र ग्रंथ आज भी प्रेरणास्त्रोत है. 'रामचरित मानस' में तुलसीदास का लिखा हुआ ये दोहा इन दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सटीक बैठ रहा है. नीतीश कुमार इन दिनों ऐसे लोगों से घिर चुके हैं जो उन्हें हकीकत से कोसो दूर रखे हुए हैं. साफ शब्दों में कहें तो राजद ने नीतीश को पीएम बनाने का ऐसा सपना दिखाया है जिसमें वह इतना खो चुके हैं कि अपने शुभचिंतकों को दरकिनार करने में लगे हैं. तेजस्वी के मायाजाल में उलझे नीतीश के अपने शुभचिंतक साथ छोड़कर जा रहे हैं और ये नीतीश को दिखाई ही नहीं दे रहा है. इसे देखते हुए लग रहा है कि कहीं ऐसा ना हो कि 2024 में नीतीश के साथ सिर्फ तेजस्वी यादव ही खड़े दिखाई दें.
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह, पूर्व सांसद मीना सिंह, शंभुनाथ सिन्हा, माधव आनंद और मोनाजिर हसन जैसे बड़े नेताओं ने जेडीयू छोड़ दी. ये वो नेता हैं जो कभी नीतीश के विश्वासपात्र कहे जाते थे. इन नेताओं ने सिर्फ इसलिए पार्टी छोड़ दी क्योंकि नीतीश ने लालू की पार्टी से समझौता कर लिया. अब जदयू के राज्यसभा सांसद और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह भी इसी लिस्ट में शामिल हो सकते हैं.
जेपी की नीति से प्रभावित हरिवंश बाबू पेशे से पत्रकार थे. वो तमाम बड़े अखबारों और पत्रिकाओं के संपादक रह चुके हैं. पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने उन्हें अपना अतिरिक्त सूचना सलाहकार बनाया था. हालांकि, उन्हें पूरी तरह से राजनीत में लाने वाले भी नीतीश कुमार ही हैं. 2014 में नीतीश कुमार ने ही उन्हें राज्यसभा भेजा था और राज्यसभा का उपसभापति बनवाया था. अब जदयू के लोग ही उनकी बेइज्जती करते दिखाई दे रहे हैं. ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है कि क्योंकि हरिवंश बाबू ने देश को पार्टी से ऊपर रखते हुए नई संसद के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लिया.
ये भी पढ़ें- नए संसद के उद्घाटन कार्यक्रम में हिस्सा लेने को लेकर JDU ने साधा हरिवंश पर निशाना, कहा-पद के लिए...
इससे पहले जदयू में मुसलमानों के बड़े चेहरों में शामिल मोनाजिर हसन भी पार्टी छोड़ चुके हैं. मोनाजिर ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए कहा था कि पार्टी अपनी दिशा से भटक गई है. उन्होंने कहा था कि पार्टी को अब उनके जैसे लोगों की जरूरत नहीं है. मोनाजिर का पार्टी छोड़ना जदयू के मुस्लिम वोट बैंक पर पकड़ को प्रभावित कर सकता है.