मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कारण जदयू का कोई भी सांसद नई संसद का दर्शन तक नहीं कर पाया, वहीं हरिवंश बाबू पूरा माहौल बनाकर चले आए. बस यही बात जदयू के नेताओं को अच्छी नहीं लगी.
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Bihar Politics: राज्यसभा के उपसभापति और जदयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह को लेकर इन दिनों बिहार का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है. हरिवंश नारायण को इन दिनों जदयू के नेता ही शब्दभेदी तीरों से घायल करने में लगे हैं. वहीं बीजेपी के नेता उन जख्मों पर मरहम लगाने में जुटे हैं. ये सारा विवाद नई संसद के उद्घाटन समारोह को लेकर हो रहा है. दरअसल, जदयू के बहिष्कार के बाद भी हरिवंश बाबू ने नई संसद के उद्घाटन कार्यक्रम में शिरकत की थी और बतौर राज्यसभा के उपसभापति इस काम के लिए पीएम मोदी की जमकर तारीफ भी की थी.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कारण जदयू का कोई भी सांसद नई संसद का दर्शन तक नहीं कर पाया, वहीं हरिवंश बाबू पूरा माहौल बनाकर चले आए. बस यही बात जदयू के नेताओं को अच्छी नहीं लगी. हरिवंश को लेकर नीतीश ने अभी तक कोई फैसला भले ना किया हो लेकिन उनको बेइज्जत करवाना शुरू कर दिया है. जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो यहां तक कह दिया कि कुर्सी के लिए उन्होंने अपना जमीर बेच दिया है. वहीं बीजेपी ने हरिवंश बाबू का समर्थन किया है.
बीजेपी का कहना है कि हरिवंश नारायण सिंह ने कुछ गलत नहीं किया. वो राज्यसभा के उपसभापति की हैसियत से कार्यक्रम में शामिल हुए थे. उन्होंने वही काम किया जो कभी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने किया था. जदयू नेताओं की इस तरह की बयानबाजी से साफ है कि हरिवंश बाबू का जनता दल यूनाइटेड के साथ सफर खत्म होने वाला है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या हरिवंश बाबू का नया आशियाना बीजेपी बनेगी या फिर वो 'सोमनाथ दा' की राह अपनाएंगे?
सोमनाथ चटर्जी ने क्या किया था?
बता दें कि लेफ्ट के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी साल 2004 से 2009 तक लोकसभा में स्पीकर थे. साल 2008 में अमेरिका से परमाणु डील के विरोध में वामपंथी दलों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. राष्ट्रपति को जो पत्र दिया गया उसमें सोमनाथ चटर्जी का भी नाम दर्ज था लेकिन सोमनाथ चटर्जी ने स्पष्ट कहा कि उनके लिए लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी भी दल से ऊपर है. लिहाजा अगले दिन सीपीआई ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया लेकिन वे लोकसभा अध्यक्ष बने रहे. कार्यकाल खत्म होने के बाद साल 2009 में उन्होंने राजनीति से सन्यास की घोषणा कर दी.
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क्या सोमनाथ के रास्ते जाएंगे हरिवंश?
सोमनाथ दा ने जब राजनीति से सन्यास लिया था तब उनकी उम्र 79 वर्ष थी. वो 10 बार सांसद रह चुके थे. वहीं हरिवंश अभी 66 साल के हैं और पूर्ण रूप से स्वस्थ्य भी हैं. नीतीश कुमार ने जब बीजेपी से रिश्ता तोड़ा था उसी समय हरिवंश नारायण सिंह के भविष्य को लेकर सवाल उठे थे. उस समय कहा गया कि हरिवंश इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मोदी सरकार की ओर से भी उन्हें पद से हटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया. जिसके बाद जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा था कि किसी में दम नहीं है कि हरिवंश नारायण सिंह को पद से हटा सके. अब यदि जदयू इस वक्त हरिवंश बाबू पर कोई कार्रवाई करती है तो भी उनका पद पर बने रहना निश्चित है.
बीजेपी ज्वाइन करेंगे हरिवंश बाबू?
इस सवाल का जवाब फिलहाल तो भविष्य की गर्त में छिपा है लेकिन पीएम मोदी के साथ उनके रिश्ते काफी अच्छे बताए जाते हैं. यही वजह है कि नीतीश कुमार के अलग होने के बाद भी हरिवंश बाबू को उनके पद से हटाने की कोशिश नहीं की गई. हरिवंश बाबू भी अक्सर मोदी सरकार की तारीफ करते हुए दिखाई दे जाते हैं. नई संसद को लेकर ही हरिवंश बाबू के विचार नीतीश कुमार और अपनी पार्टी से बिल्कुल अलग दिखाई दिए. सीएम नीतीश को जहां नया संसद भवन बिल्कुल भी पसंद नहीं आया. वहीं हरिवंश बाबू ने इसे लोकतंत्र के लिए गर्व का क्षण बताया.