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पटना: Sakat Chauth 2023: माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है. उनकी ये पूजा महिलाएं अपनी संतान की रक्षा, आयु, अरोग्य के लिए करती हैं. ग्रामीण क्षेत्र में ये पूजा सकटुआ- बकटूआ नाम के दो भाइयों की होती है.
ऐसी होती है पूजा
महिलाएं इनका चित्र एक पीढ़े पर घी से बनाती हैं और इसी की पूजा वह करती हैं. सकट चौथ को भिन्न भिन्न नामों से भी जाना जाता है, ये नाम स्थान विशेष की पूजा पद्धतियों के आधार पर लोक द्वारा दिए गए हैं. असल में श्री गणेश प्राचीन लोक देवता हैं. इनकी मान्यता अलग अलग रूप में हर समुदाय में आदिम युग से रही है, इसलिए उनकी पूजा का खास दिन का नाम उनकी पूजा की विशेष पद्धतियों के आधार पर रखा गया है.
दोबारा मिला था जीवन
सकट चौथ को ही संकटा चौथ के नाम से जाना जाता है. इस दिन विघ्न दूर करने वाले गणेश जी की पूजा की जाती है, जो सभी संकटों को हर लेते हैं, इसलिए इस आधार पर इसे संकटा चौथ के नाम से भी जानते हैं. असल में यही वह दिन है, जब गणेश जी को दोबारा जीवन दान मिला था. महादेव शिव ने उनका शीश काट दिया था, जिसकी जगह हाथी का सिर लगाकर उन्होंने गणेश स्वरूप को स्थापित किया था.
हर माह दो चतुर्थी
जिस तरह हर हिंदी महीने में दो एकादशियों की मान्यता है, उसी तरह हर माह दो चतुर्थी भी आती हैं. हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ठी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी या वैनायकी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन श्रीगणेश जी को गज का मुख प्राप्त हुई था, इसलिए आज की चतुर्थी गजानन चतुर्थी भी कहलाती है. लम्बा उदर होने के कारण ये तिथि लंबोदर संकष्ठि भी कहलाती है.
आज है शीत चतुर्थी
माघ मास की चतुर्थी तिथि को में गणेश जी की पूजा होने से आज के दिन को माघ मासी चतुर्थी कहते हैं.यही चतुर्थी संतान की रक्षा और आरोग्य की कामना के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है. सर्दी के मौसम में आने के कारण इसे शीत चतुर्थी भी कहते हैं.
तिलकुट का लगता है भोग
यह व्रत अक्सर मकर संक्रांति के आस पास ही पड़ता है. ऐसे में इस दौरान गणेश जी को काले सफेद तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. इसलिए इसे तिलकुट चौथ भी कहते हैं. इसे तिलकुटा चौथ, तिलकुट चतुर्थी और तिल चौथ आदि के नाम से भी जानते हैं.
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