Medical Students Suicide: 5 साल में 122 मेडिकल स्टूडेंस ने की खुदकुशी, आखिर भविष्य के डॉक्टर क्यों कर रहे हैं सुसाइड
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Medical Students Suicide: 5 साल में 122 मेडिकल स्टूडेंस ने की खुदकुशी, आखिर भविष्य के डॉक्टर क्यों कर रहे हैं सुसाइड

Suicide Rates Among Medical Students: जो छात्र मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेते हैं उनके मां-बाप और समाज को काफी उम्मीदें रहती हैं, लेकिन कई बार कॉलेज का माहौल और एजुकेशन पॉलिसी के आगे वो हार जाते हैं.

Medical Students Suicide: 5 साल में 122 मेडिकल स्टूडेंस ने की खुदकुशी, आखिर भविष्य के डॉक्टर क्यों कर रहे हैं सुसाइड

Why Medical Students Suicide Rate is Increasing: हमारे समाज में डॉक्टर को काफी ज्यादा सम्मान दिया जाता है क्योंकि वो अपने ट्रीटमेंट और समझारी से मरीजों की जान बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं, लेकिन जब वो अपनी ही जिंदगी खत्म करने लगें तो हैरान और दुख होना लाजमी है. जी हां मेडिकल स्टूडेंट्स का सुसाइड रेट चिंता का विष्य बनता जा रहा है. जिन लोगों पर जान बचाने की जिम्मेदारी है वो ही क्यों अपनी जान ले रहे हैं.

5 साल में 122 खुदकुशी

आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. विवेक पांडेय ने नेशनल मेडिकल कमीशन में आरटीआई दाखिल की थी जिसके जवाब में ये डाटा सामने आया है कि पिछले 5 सालों में कम से कम 122 मेडिकल छात्रों ने खुदकुशी से अपनी जान गंवाई है. जिनमें से 64 एमबीबीएस कर रहे हैं और 58 पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट्स थे, इन सभी में से 5 दिल्ली से थे. इसके अलावा 1,270 छात्रों ने पूरे भारत में मेडिकल कॉलेज छोड़ दिए जिनमें 153 एमबीबीएस और 1,117 मेडिकल पीजी पढ़ रहे थे .

स्टूडेंट्स पर बढ़ता प्रेशर

डॉ. अविरल माथुर (Dr. Aviral Mathur) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि मेडिकल स्टूडेंट पर पढ़ाई का प्रेशर काफी ज्यादा होता है, इसके अलावा कई बार उनके ड्यूटी ऑवर्स हद से ज्यादा लंबे होते हैं (कभी-कभी 36 घंटे), उन्हें आराम कम मिलता है, काम का खराब माहौल, टॉक्सिक सीनियर्स, वक्त और सपोर्ट सिस्टम की कमी के कारण उन्हें मेंटल हेल्थ को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

कॉलेज छोड़ने पर फाइन 

डॉ. रोहन कृष्ण (Dr. Rohan Krishnan) ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, “कुछ मेडिकल कॉलेजों में, अगर कोई स्टूडेंट एडमिशन के बाद कॉलेज छोड़ना चाहता है, तो उन्हें 50 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा और अगले 3 साल  तक परीक्षा नहीं दे पाएगा. बॉन्ड की राशि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है,'' उन्होंने कहा कि ऐसे छात्रों के लिए कोई रास्ता नहीं बचता है. ये सरकार और आयोग की नीतिगत विफलता के कारण हो रहा है. अगर छात्र कोर्स जारी नहीं रखना चाहते हैं तो उन्हें फ्री एग्जिट मिलना चाहिए.'' 

कैसे होगा सुधार?

डॉ. शंकुल द्विवेदी ने कहा, “मेडिकल एजुकेशन पॉलिसी में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है. जब एनएमसी परमिशन या रिन्युअल या सीट बढ़ाने के लिए मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण करता है तो ये एक अहम डेटा होना चाहिए.” उन्होंने कहा कि ये डेटा चिंताजनक है क्योंकि ये सीखने के तनावपूर्ण माहौल और बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य को दर्शाता है.यह देश के लिए पोटेंशियल स्किल्ड मैनपॉवर का नुकसान है, जो कम से कम 40 सालों तक देश की सेवा कर सकते थे.
 

डॉक्टर्स के मुताबित इस समस्या से निपटने के लिए सभी शैक्षणिक संस्थानों, हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स, पॉलिसी मेकर्स और छात्र संगठन को मिलकर आगे आना होगा और छात्रों को लेकर ऐसा माहौल तैयार करना होगा जिसमें उनके मेंटल हेल्थ और सपोर्ट सिस्टम को बेहतर करने की कोशिश हो.
 

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