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Siberia Permafrost Craters: 2014 में साइबेरिया की बर्फीली जमीन में अचानक एक रहस्यमय क्रेटर नजर आया. हजारों फीट चौड़े उस क्रेटर के चारों तरफ मिट्टी और बर्फ का ढेर लगा था. तब से लेकर अब तक साइबेरिया के पर्माफ्रॉस्ट में 20 से ज्यादा बड़े क्रेटर देखे जा चुके हैं. आखिर जमी हुई जमीन में 500 फीट से बड़े 20 से अधिक क्रेटर कैसे बने? यह सवाल वैज्ञानिकों को 2014 से ही परेशान कर रहा था. अब उन्होंने शायद इन क्रेटर्स के पीछे की वजह का पता लगा लिया है. पिछले महीने छपी स्टडी में उन्होंने इन रहस्यमय गड्ढों के लिए जलवायु परिवर्तन और इलाके के अजीब भूविज्ञान को वजह बताया है.
पूरे साल जमा रहता है साइबेरिया
साइबेरिया एक बेहद ठंडा भौगोलिक क्षेत्र है. इसके दायरे में रूस का अधिकांश हिस्सा और उत्तरी कजाकिस्तान आते हैं. साइबेरिया कोई राजनीतिक इकाई नहीं है, इसलिए इसकी सीमाएं निश्चित नहीं हैं. सामान्य तौर पर, यूराल पर्वत से लेकर प्रशांत महासागर तक के इलाके को साइबेरिया समझा जाता है.
साइबेरिया की सर्दियां लंबी होती हैं. यहां भले ही हमेशा एक ठंडा जंगल नहीं होता, लेकिन इस इलाके में महीनों तक शून्य से नीचे का तापमान रहता है. साइबेरिया की मिट्टी और चट्टानें जमी रहती हैं, जिसे पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है.
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आठ साल पहले, साइबेरिया के यमल प्रायद्वीप से गुज़रते हुए हेलीकॉप्टर पायलटों ने एक भयानक नजारा देखा: एक बड़ा गड्ढा जो सैकड़ों वर्ग फीट जमीन को निगल गया था और 170 फीट से ज्यादा गहरा था. ऐसे ही दर्जन भर से ज्यादा गड्ढे और दिखे तो मीडिया का हुजूम लग गया.
अब, Geophysical Research Letters के लिए लिखे गए एक पेपर में इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूविर्सिटी और स्पेन की यूनिवर्सिडाड डी ग्रेनेडा के रिसर्चर्स ने बताया है कि ये क्रेटर कैसे और क्यों बने.
साइबेरिया में ये क्रेटर कहां से आए?
वैज्ञानिकों के बीच पहले से ही इस बात पर आम सहमति थी कि ये क्रेटर तब बनते हैं जब टुंड्रा के नीचे फंसी गैसें - जिसमें धरती को गर्म करने वाली मीथेन भी शामिल है - भूमिगत रूप से जमा हो जाती हैं. इससे सतह पर एक टीला बन जाता है. जब नीचे का दबाव ऊपर की जमीन की ताकत से अधिक हो जाता है, तो टीला फट जाता है और गैसें बाहर निकलती हैं. लेकिन यह दबाव कैसे बनता है और गैसे कहां से आती हैं, इस बारे में साफतौर पर कुछ पता नहीं था.
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रिसर्चर्स के मुताबिक, पर्माफ्रॉस्ट में सिर्फ मिट्टी और चट्टान ही नहीं होती, यह सब बर्फ़ से चिपका होता है. उस बर्फ के नीचे ठोस मीथेन की एक परत होती है जिसे 'मीथेन हाइड्रेट्' कहते हैं. कभी-कभी, तलछट और मीथेन के बीच एक तीसरी परत छिपी होती है: 'क्रायोपेग' या नमकीन तरल पानी के क्षेत्र.
वैज्ञानिकों के अनुसार, वैज्ञानिकों के अनुसार, क्रायोपेग तब बनते हैं जब सतह का तापमान बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट का बर्फीला 'गोंद' पिघल जाता है. यह पानी जमीन से होकर मीथेन हाइड्रेट्स से टकराता है, जिससे तरल के पूल बनते हैं. जैसे-जैसे पूल बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पर्माफ्रॉस्ट के नीचे दबाव भी बढ़ता है और आखिरकार सतह पर दरारें बन जाती हैं. बड़े पैमाने पर, ये दरारें दबाव में इतनी तेजी से गिरावट पैदा करती हैं कि मीथेन हाइड्रेट्स टूट जाते हैं, जिसकी वजह से मीथेन गैस का विस्फोट होता है.
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इन्हीं धमाकों को साइबेरिया के क्रेटर्स की वजह बताया गया है. अगर रिसर्चर्स सही हैं तो साइबेरिया में ऐसे और भी क्रेटर्स देखने को मिलते रहेंगे.