Bhediya Review: वीएफएक्स से बने भेड़िये हैं यहां असली हीरो, कमजोर कहानी ने ढीली की हॉरर और थ्रिल की डोर
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Bhediya Review: वीएफएक्स से बने भेड़िये हैं यहां असली हीरो, कमजोर कहानी ने ढीली की हॉरर और थ्रिल की डोर

Jungle Horror Comedy Film: वरुण धवन और कृति सैनन की इस फिल्म में अभिषेक बनर्जी ध्यान खींचते हैं. कहानी से ज्यादा यहां वीएफएक्स चमकता है. लेखक-निर्देशक को भेड़ियों से अधिक चिंता इस बात की दिखती है कि कैसे फिल्म का सीक्वल बनेगा और कैसे स्त्री से इसका कनेक्शन जुड़ेगा. कमजोर राइटिंग मजबूत आइडिये को अंत तक पैरों पर खड़ा नहीं रहने देती.

 

Bhediya Review: वीएफएक्स से बने भेड़िये हैं यहां असली हीरो, कमजोर कहानी ने ढीली की हॉरर और थ्रिल की डोर

Varun Dhawan New Film: लगातार पिटती फिल्मों के बीच हिंदी मेकर्स ने कुछ नया सोचना शुरू किया है, लेकिन उन्हें लग रहा है कि कहानी से ज्यादा हीरो और वीएफएक्स बचाएंगे क्योंकि दर्शक कहानी देखने नहीं आता. वह हीरो को पूजता है और वीएफएक्स से चमत्कृत होता है. स्त्री (2018) जैसी फिल्म बना चुके निर्देशक अमर कौशिक की नई फिल्म भेड़िया इसी बात का सबूत है. मगर उम्मीद करें कि मेकर्स की बची हुई गलतफहमियां भी आने वाले समय में दूर हो जाएगी. रेबीज नया आइडिया नहीं है और न यह कहानी कि किसी भेड़िया के काटने पर व्यक्ति भेड़िया में बदल जाता है. हिंदी पर्दे पर यह जरूर नया मालूम पड़ता है, परंतु निर्देशक ने यहां कहानी और स्क्रिप्ट से ज्यादा एक्टरों और वीएफएक्स पर भरोसा किया है. अतः भेड़िया की कहानी एक समय के बाद लचर हो जाती है और एक्टरों को वीएफएक्स बचाता है.

कहानी और कॉमेडी
फिल्म की कहानी भास्कर (वरुण धवन) की है. वह रोड कंस्ट्रक्टर है और उसे अरुणाचल प्रदेश के जिरो इलाके में एक लंबी सड़क बनाने का ठेका मिला है. वह अपने चचेरे भाई जनार्दन (अभिषेक बनर्जी) के साथ वहां पहुंचता है. जिरो में उसका एक दोस्त है जोबिन (पालिन कबाक). दोस्त मिलते हैं तो सबसे पहले गाना गाते हैं. फिर भास्कर लोकल अधिकारियों को समझाता है कि जंगल के किनारे-किनारे लंबी सड़क बनाने के बजाय जंगल के बीच से सड़क बनाने में सबका फायदा है. पैसा बचेगा, तो सबमें बंटेगा. तभी एक रात भेड़िया भास्कर को काट लेता है. इसके बाद हर पूनम की रात भास्कर भेड़िये में बदल जाता है और जो लोग सड़क बनाने में भ्रष्टाचार की राह खोलते हैं, उन्हें मार कर खाता है. यहां तक तो मोटी-मोटी बातें निर्देशक अमर कौशिक और लेखक निरेन भट्ट ने संभाल ली. लेकिन जब घटनाओं, किरदारों की बारीकी से व्याख्या करने और तर्क की बातें आई तो मात खा गए. उन्होंने बातों को घुमाया-फिराया. कॉमेडी के नाम पर अशिष्ट और अशब्दों का इस्तेमाल किया.

पैसा ही मंजिल है
भेड़िया की कहानी में एक डॉक्टरनी है अनिका (कृति सैनन). वह जानवरों का इलाज करती है और वही भास्कर का भी इलाज करती है. इलाज के साथ कहानी में अचानक एक शब्द आता है, विषाणु. यह विषाणु कोई और नहीं, भेड़िया है. जिन रास्तों से सड़क गुजरनी है, वहां के लोग जंगल की पूजा करते हैं. उनके अपने देवी-देवता-विश्वास-अंधविश्वास हैं. वह मानते हैं कि विषाणु जंगल के रक्षक हैं. जब भी कोई जंगल को नुकसान पहुंचाना चाहता है, तो वह नाराज होकर बाहर निकल आते हैं. दुश्मनों को ठिकाने लगाते हैं. लेकिन लेखक-निर्देशक यह नहीं बता पाते है कि जब सब मानते हैं कि जीवाणु जंगल के रक्षक हैं तो फिर लोकल वन विभाग क्यों इन भेड़ियों की जान लेना चाहता है, जिनमें जीवाणु है. क्यों इलाके के लोग वन रक्षकों के भेड़िया मारो अभियान का तमाशा देखते हैं. कहानी में ऐसा लगता है कि जंगलों से सच्चा प्यार भेड़ियों को है, लोगों को नहीं. जनता कहीं इस कहानी में अपनी ताकत नहीं दिखाती. यहां से कहानी कहीं नहीं जाती. इसके बाद लेखक-निर्देशक जल्दबाजी में होते हैं कि कैसे भेड़िया के सीक्वल का दरवाजा खोला जाए और स्त्री (2018) से इस आइडिये को मिक्स करके आग बढ़ा जाए. सोचिए कि उनसे इसी कहानी से न्याय नहीं हो पाता और आगे की चिंता है. वास्तव में बॉलीवुड की यही समस्या है कि वह सिनेमा या दर्शकों से ज्यादा ध्यान इस बात पर देता है कि पैसा बनाने की अगली राह कैसे खोलेॽ

नया हेयरस्टाइल और सफेद स्वेटर
भेड़िया को अगर किसी ने बचाया है तो वह वीएफएक्स है. निश्चित ही इसने फिल्म को नकली नहीं पड़ने दिया और वीएफएक्स की वजह से ही आप यह विश्वास कर पाते हैं कि जो सामने है, वह असली है. वरुण धवन का भेड़िये में बदलना और पर्दे पर दिखने वाले भेड़िये आकर्षक हैं. विश्वस्तरीय हैं. वरुण धवन वीएफएक्स की मदद से भेड़िये में तो बदल जाते हैं परंतु खुद को अच्छे अभिनेता में बदलने के लिए उन्हें अभी काफी मेहनत करनी होगी. वरुण का ऊपरी रूप भले ही फिल्मों में अलग-अलग नजर आए, लेकिन उनकी संवाद अदायगी में विविधता नहीं है. अभिषेक बनर्जी कई दृश्यों में अपनी जगह बनाते हैं परंतु उनके हिस्से में फूहड़ बाते आई हैं. कई बार वह पालिन कबाक को स्पेस दिए बगैर उन पर हावी होने की कोशिश करते हैं. दीपिक डोबरियाल में भी पुरानी चमक नहीं दिखती. जबकि कृति सैनन निराश करती हैं. उनका डॉ.अनिका का किरदार कहानी के आखिरी मिनटों में ट्विस्ट लाने की कोशिश करता है, परंतु हास्यास्पद हो जाता है. ट्विस्ट बेहद नकली है. अभिनय के स्तर पर भी कृति कुछ नया नहीं करतीं. हां, उनका हेयर स्टाइल नया और एक सीन में पहना लाल-हरी-नीली डिजाइन से सजा सफेद स्वेटर सुंदर है.

कहानी में जंगल की भूमिका
फिल्म का गीत-संगीत और बैकग्राउंड म्यूजिक औसत है. भेड़िया का कैमरावर्क अच्छा है लेकिन इसकी एक बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर हिस्सा रात में शूट हुआ है और पर्दे पर आपको अंधेरा मिलेगा. ऐसे में यह फिल्म जब टीवी या मोबाइल स्क्रीन पर देखी जाएगी तो इसका मजा खत्म हो जाएगा. इस कहानी में जंगल की बड़ी भूमिका है, लेकिन निर्देशक उसे निखार पाने में कामयाब नहीं रहे. न ही इसमें जंगल का हॉरर ही सामने आ सका. अरुणाचल प्रदेश की खूबसूरती यहां जरूर उभरती है और यह फिल्म का सकारात्मक पक्ष है. भेड़िया की कहानी और स्क्रिप्ट पर काम होता तो यह अवश्य देखने योग्य फिल्म बन सकती थी. फिलहाल इसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता.

निर्देशकः अमर कौशिक
सितारेः वरुण धवन, अभिषेक बनर्जी, पालिन कबाक, कृति सैनन, दीपक डोबरियाल
रेटिंग **1/2

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