GK: बैल को सांड या सांड को बैल बोलते हैं तो आज दूर कर लीजिए अपना कन्फ्यूजन, ये है दोनों में फर्क!
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GK: बैल को सांड या सांड को बैल बोलते हैं तो आज दूर कर लीजिए अपना कन्फ्यूजन, ये है दोनों में फर्क!

Ox vs Bull: सांड और बैल दोनों ही गाय के बछड़े होते हैं, लेकिन बहुत से लोग इन दोनों के बीच क्या फर्क है ये नहीं जानते. आज हम जानेंगे कि आखिर सांड और बैल में क्या अंतर है और इनकी कहां क्या भूमिकाएं हैं. 

GK: बैल को सांड या सांड को बैल बोलते हैं तो आज दूर कर लीजिए अपना कन्फ्यूजन, ये है दोनों में फर्क!

Difference Between Ox And Bull: हमारा देश कृषि प्रधान देश रहा है. यहां प्राचीन काल से ही बैल और सांडों को खेती से जुड़े विभिन्न कार्यों में उपयोग में लाया जाता रहा है. हालांकि, आधुनिकता के साथ-साथ इस क्षेत्र में बहुत से बदलाव आए हैं और अब ज्यादातर कामों के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में खेती से जुड़े कामों में पशुओं का इस्तेमाल न के बराबर होता है. हालांकि, उनकी महत्ता में कम नहीं हुई है.

कड़ी मेहनत की जब भी बात आती है तो बैल का उदाहरण दिया जाता है. गांव-देहात में बहुत सारे काम अब भी बैलों के जरिए ही किए जाते हैं, लेकिन बात जब आक्रामकता और ताकत की आती है तो सांड का नाम लिया जाता है. अगर इन दोनों में आपको भी कंफ्यूजन होता है तो इसे दूर कर लीजिए. आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे सांड और बैल क्या हैं और दोनों में क्या अंतर है?

जानिए सांड के बारे में
सांड गोवंश पशुओं में नर जानवर होता है,  जो लंबा, तगड़ा, खूब मांसल और बहुत ताकतवर होता है. सांड सफेद, काला या लाल भूरे रंग का होता है, जो  सींग के साथ या बगैर सींग के भी हो सकता है. यह उनकी नस्ल पर निर्भर करता है. सांड बहुत ही उग्र और गुस्सैल स्वभाव का होता है. विज्ञान की भाषा में इसे बोस टोरस फॅमिली का सदस्य कहा जाता है. इसका वजन करीब 1700-1800 पाउंड तक हो सकता है. सांड पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं, जो अपने भोजन के लिए पत्तियों, घास, भूसे, खली आदि पर निर्भर होते हैं. ये बीस से पच्चीस साल तक जीवित रहते हैं. 

जानिए बैल के बारे में
गोवंश पशुओं में गाय और सांड के अलावा एक और पशु होता है जो बैल कहलाता है. बैल गायों से बड़े लेकिन सांडों की अपेक्षा शांत और उपयोगी पशु होता है. इनका उपयोग गाडी खींचने, खेती के लिए हल चलाने, कोल्हू में तेल पेरने, सिंचाई के लिए और खेत जोतने में किया जाता है.  बैल को वास्तव में मानव की खोज कहा जा सकता है, क्योंकि इन सभी मेहनती कार्यों के लिए किसी तगड़े, मजबूत और उपयोगी जानवर की जरूरत पड़ी,  जिसमें ताकत तो बहुत हो, लेकिन उसे आसानी से काबू में किया जा सके.

बछड़े को ही बनाया जाता है बैल
अपने स्वार्थ के लिए इंसान हमेशा से ही जानवरों का उपयोग करता आया है. अपनी बुद्धि के दम पर उसने बेहद ताकतवर और चालक जीव को भी काबू में कर लिया. गाय के नर बच्चे ही सांड़ और बैल दोनों भूमिका निभाते हैं. सांड को काबू में करना सबके बस की बात नहीं. ऐसे में इन सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए सांड को बधिया बनाया. बैल मजबूती, मेहनती होने के साथ बेहद उपयोगी है और उसे आसानी से नियंत्रित भी किया जा सकता है. 

इस तरह बछड़ा बनता है बैल
जब गाय का बछड़ा बड़ा होता है तो किसान इन बछड़ों को खेत जोतने के लिए हल में इस्तेमाल करते थे, लेकिन इन्हें काबू में करना आसान नहीं होता है. इसके लिए पुराने समय से ही एक तरकीब अपनाई जा रही है, ताकि उसकी आक्रामकता खत्म हो जाती है. इस प्रक्रिया को बधियाकरण कहते हैं.

जानिए क्या है बधियाकरण की प्रकिया 
जब बछड़ा ढाई-तीन साल का होता है तो उसके अंडकोष को दबाकर नष्ट कर दिया जाता है. पहले इसे बाकायदा कुचला जाता था, लेकिन अब ये काम मशीनों के जरिए किया जाता है. इस प्रक्रिया के दौरान बछड़े को बहुत ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता था. कई बार तो बछड़े की मौत हो जाती थी. इस तरह बछड़े को पूरी तरह नपुंसक बनाया जाता है. इसलिए ये शुक्राणु उत्पन्न नहीं कर सकते और प्रजनन के काबिल नहीं होते.

सांड़ों को वंशवृद्धि के लिए पाला जाता है, जबकि बैल कृषि और परिवहन कार्यों के काम लाए जाते हैं. सांडों का उपयोग बुल फाइटिंग और सांडों की रेस में होता है, जबकि बैलों की ऐसी कोई खास प्रतियोगिता नहीं होती. 

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