Lok Sabha Chunav 2024: न भाजपा+, न कांग्रेस+ अकेले चली बसपा चुनाव से पहले बिखरने लगी! वेस्ट यूपी में बढ़ेगी मुश्किल
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Lok Sabha Chunav 2024: न भाजपा+, न कांग्रेस+ अकेले चली बसपा चुनाव से पहले बिखरने लगी! वेस्ट यूपी में बढ़ेगी मुश्किल

Bahujan Samaj Party news: पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के बाद बसपा ने सबसे ज्यादा 10 सीटें जीती थीं. इस बार दो बड़े गठबंधन होने और बसपा के 'एकला चलो' के कारण पार्टी के नेताओं-सांसदों को शायद लग रहा है कि इस बार राह मुश्किल है. अब वे नई संभावनाएं देखने लगे हैं.

Lok Sabha Chunav 2024: न भाजपा+, न कांग्रेस+ अकेले चली बसपा चुनाव से पहले बिखरने लगी! वेस्ट यूपी में बढ़ेगी मुश्किल

BSP Mayawati News: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बसपा का समीकरण गड़बड़ाता दिख रहा है. जी हां, पिछले लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतने वाली बसपा के चार सांसद दूर जा चुके हैं. गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी सपा के साथ हो लिए. अमरोहा के सांसद दानिश अली और जौनपुर के सांसद श्याम सिंह कांग्रेस की न्याय यात्रा में शामिल होकर पाला बदलने के संकेत दे चुके हैं. कुछ घंटे पहले आंबेडकर नगर सीट से बसपा सासंद रितेश पांडेय ने इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया. पार्टी को तगड़ा झटका लगा तो बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि बसपा सांसद निजी स्वार्थ में इधर-उधर भटक रहे हैं. हालांकि विधानसभा चुनाव में महज एक सीट पर सिमटने वाली बसपा के लिए यह खतरे की घंटी है. 

मायावती ने अपनी पार्टी के सांसदों से पूछा है कि क्या स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे लोगों को टिकट देना संभव है? रितेश पांडेय ने मायावती को जो लेटर लिखा है उसमें उन्होंने कहा है कि मुझे लंबे समय से न तो पार्टी बैठकों में बुलाया जा रहा है और न ही नेतृत्व के स्‍तर पर बातचीत की जा रही है. मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पार्टी को मेरी सेवा की कोई आवश्यकता नहीं रही इसलिए त्यागपत्र देने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. 

कमजोर पड़ रही बसपा?

वैसे, चुनाव से पहले नेता पहले भी ऊंची कूद लगाते रहे हैं. हालांकि बसपा के लिए यह बिखराव का संकेत दे रहा है. पार्टी का जनाधार पिछले चुनाव के मुकाबले कमजोर ही पड़ा है, ऐसे में लोकसभा चुनाव में पार्टी किस रणनीति के साथ उतरेगी, यह भी स्पष्ट नहीं है. खबर है कि चार सांसदों के बाद कई और एमपी हाथी से उतर सकते हैं. 

क्यों मची है भगदड़?

मीडिया में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि इसी हफ्ते दो और सांसद पाला बदल सकते हैं. माना जा रहा है कि दो बसपा सांसद कांग्रेस और एक आरएलडी के साथ जा सकता है. भाजपा की तरफ से अंदरखाने कहा जा रहा है कि इस समय सिर्फ टिकट के लिए आने वाले नेताओं को मौका तभी मिलेगा जब वे भाजपा के सामाजिक समीकरण के खांचे में फिट बैठेंगे. 

- घोसी से बसपा सांसद अतुल राय भी दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं. 

- लालगंज की सांसद संगीता आजाद के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही हैं. 

- जौनपुर से बसपा सांसद श्याम सिंह यादव कांग्रेस और भाजपा दोनों के संपर्क में हैं. 

- सहारनपुर के सांसद हाजी फजलुर्रहमान का मन भी डोल रहा है. फिलहाल सहारनपुर से कांग्रेस इमरान मसूद को उतारने की सोच रही है. अगर इमरान पर बात नहीं बनी तो कांग्रेस हाजी को आगे कर सकती है. 

- 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था. ऐसे में जो सांसद जीते थे उन्हें इस बार लग रहा है कि अकेले लड़ने से जीतना मुश्किल है. यही वजह है कि समय रहते वे दूसरी पार्टियों खासतौर से दोनों बड़े गठबंधनों में संभावनाएं देख रहे हैं.  

बसपा सांसदों के टूटने से पश्चिम उत्तर प्रदेश में पार्टी की पोजीशन कमजोर हो सकती है. पार्टी का यह मजबूत क्षेत्र रहा है लेकिन इस बार एक तरफ भाजपा और रालोद ताल ठोक रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस और सपा मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. इससे मायावती के लिए मुश्किल बढ़ गई है. 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माया कितनी मजबूत?

जिस तरह चुनाव से पहले पार्टी की गतिविधियां सीमित हो गई हैं, ऊपर से सांसदों का भागना यह सवाल खड़े करता है कि अब बसपा वेस्ट यूपी में कितनी मजबूत है? इस क्षेत्र की ज्यादातर सीटों पर दलित और मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में रहे हैं. यहां की बिजनौर सीट से मायावती पहली बार 1989 में जीतकर संसद पहुंची थीं. सहारनपुर से जीतकर 1996 में सीएम की कुर्सी संभाली. आज के परिदृश्य में देखिए तो भाजपा, सपा और कांग्रेस की गतिविधियां वेस्ट यूपी में दिखाई दे रही हैं लेकिन मायावती सीन से लगभग बाहर हैं. 

बसपा के लिए पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमटना अचानक नहीं था. 2017 के चुनाव में भी लोगों ने बसपा पर ज्यादा भरोसा नहीं जताया था. बसपा का वोटर भाजपा और सपा में बंटता गया. सख्त प्रशासक वाली मायावती की छवि अब लोग भूल चुके हैं. हालांकि दलित जाटव समुदाय का एक तबका आज भी मायावती के साथ दिखाई देता है. चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा दलित नेता भी पश्चिम यूपी में उभरे हैं जिसका सीधा नुकसान मायावती को हो सकता है. यह सवाल भी खड़े होने लगे हैं कि क्या सियासी माहौल भांपकर मायावती किसी गठबंधन में जा सकती हैं?

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