IAS Story: IAS ऑफिसर जितेंद्र जोरवाल एक ऐसे शख्स हैं, जो पंजाब के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों के लिए उम्मीदों की किरण बने. आइए जानते हैं कौन हैं IAS जितेंद्र जोरवाल और कितने पढ़े-लिखे हैं...
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IAS Jitendra Jorwal: ज्यादातर युवा आईएएस और आईपीएस बनकर समाज की खासतौर पर गरीब तबके के लोगों की सहायता करना चाहते हैं. ऐसे कई अधिकारी हैं, जो बखूबी यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं. ऐसे ही एक IAS ऑफिसर हैं जितेंद्र जोरवाल, जो पंजाब के ग्रामीण इलाके की महिलाओं और बच्चों के लिए आशा की किरण लेकर आए. जितेन्द्र जोरवाल रियल लाइफ में जितना अपने कामों को लेकर फेमस हैं, उतने ही सोशल मीडिया पर भी मशहूर है. चलिए जानते हैं कौन हैं आईएएस ऑफिसर जितेंद्र जोरवार और इन्होंने कहां से पढ़ाई-लिखाई की है...
2014 बैच के IAS अधिकारी
जितेंद्र जोरवाल 2014 बैच के आईएएस ऑफिसर हैं, उन्होंने बीते माह ही लुधियाना के डिप्टी कमिश्नर का पदभार संभाला. इससे पहले जोरवाल संगरूर में डीसी, एडीसी जालंधर, जालंधर स्मार्ट सिटी के सीईओ, जालंधर विकास प्राधिकरण के मुख्य प्रशासक और एसडीएम होशियारपुर के रूप में कार्य कर चुके हैं.
IIT दिल्ली से किया बीटेक
जितेन्द्र जोरवाल राजस्थान के रहने वाले हैं. उन्होंने आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की है. इसके बाद 3 साल तक आईईएस के जरिए एनएचएआई में काम किया है. उन्होंने जालंधर में अपनी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग की है. साल 2013 की यूपीएससी परीक्षा में जितेंद्र जोरवाल ने 345 रैंक के साथ सफलता हासिल की और उन्हें पंजाब कैडर में आईएएस की पोस्ट पर नियुक्ति मिली. आईएएस ऑफिसर की ट्रेंनिग होने के बाद जितेन्द्र की पहली पोस्टिंग होशियारपुर में हुई थी.
महिलाओं-बच्चों के लिए आशा की किरण
आईएएस अधिकारी जितेंद्र जोरवाल ने पंजाब के संगरूर के डिप्टी कमिश्नर के रूप में जिले के बच्चों और महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने में अहम रोल अदा किया. साल 2022 में उन्होंने संगरूर जिले के सरकारी स्कूलों में एक हेल्थ सर्वे शुरू कराया, जिसमें पता चला है कि झुग्गी में रहने वाले कई बच्चों को या तो स्कूल में एडमिशन नहीं मिला या अपनी शिक्षा जारी रखने में असमर्थ थे.
स्कूल-ऑन-व्हील्स कार्यक्रम
इसके बाद जोरवाल ने स्कूल-ऑन-व्हील्स कार्यक्रम शुरू किया, जो स्कूल न जाने वाले 5 से 11 साल तक के बच्चों के लिए है. इसके जरिए बच्चों को शिक्षा से परिचित कराया. स्कूल-ऑन-व्हील्स बस में बच्चे 3-4 घंटे तनाव-मुक्त माहौल में आनंदपूर्वक सीखते हैं. इस बस में शिक्षण सामग्री, किताबें और एक इंटरैक्टिव कलरफुल इंटीरियर है. एक शिक्षक के साथ ही बच्चों की देखभाल दो आंगनवाड़ी वर्कर भी हैं.
आईएएस ऑफिसर के मुताबिक बच्चों को सीधे नियमित स्कूलों में एडमिशन देने से सीखने को बढ़ावा नहीं मिलेगा और स्कूल छोड़ने का क्रम कभी खत्म नहीं होगा. बच्चों को एक ऐसे माहौल की जरूरत थी, जहां उन्हें लगे कि वे एजुकेशन सिस्टम से जुड़े हुए हैं और अपने तरीके से सीख सकते हैं. इसके लिए स्कूल ऑन व्हील्स कार्यक्रम शुरू किया.
महिला सशक्तिकरण
वहीं, रोजगार को बढ़ावा देने के लिए एक और पहल की गई. इसके तहत उद्यमिता और आजीविका (PEHEL) कार्यक्रम के जरिए सरकार प्रत्येक स्कूल यूनिफॉर्म किट के लिए 600 रुपये का भुगतान करती है. स्कूल प्रबंधन समितियों अपने पसंदीदा विक्रेताओं से ऐसी यूनिफॉर्म किट खरीद सकती है. संगरूर जिले में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं ये यूनिफॉर्म किट तैयार करती हैं. इससे ग्रामीण महिलाओं को आजीविका के अवसर मिले. साथ ही महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला.