कभी मार्केट में बोलती थी तूती, फिर कोई नाम लेने वाला नहीं बचा, कहानी Campa Cola की
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कभी मार्केट में बोलती थी तूती, फिर कोई नाम लेने वाला नहीं बचा, कहानी Campa Cola की

History of Campa Cola: कैंपा कोला को 22 करोड़ में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने खरीद लिया है. इससे मार्केट की बादशाह-कोला कोला और पेप्सी को कड़ी टक्कर मिलनी तय मानी जा रही है. अब जान लेते हैं कैंपा कोला का इतिहास.

कभी मार्केट में बोलती थी तूती, फिर कोई नाम लेने वाला नहीं बचा, कहानी Campa Cola की

Campa Cola Story: भारत को आजाद हुए दो साल हुए थे. खाने से लेकर तमाम बुनियादी सुविधाओं की कमी से देश जूझ रहा था. सरकारी खजाना खाली था. बंटवारे का दर्द रह रहकर लोगों को सता रहा था. लेकिन वक्त अपनी रफ्तार से चलता रहता है. साल था 1949. देश में एक विदेशी सॉफ्ट ड्रिंक कंपनी ने एंट्री मारी. नाम था कोका कोला. 

रईस लोगों को ये काफी पसंद आई और 1970 का दशक आते-आते ये आम लोगों की जुबां पर भी चढ़ गई. मगर जब आपातकाल लगा तो उसके बाद जनता सरकार ने इसे भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिया. लोगों को सॉफ्ट ड्रिंक का चस्का लग चुका था. ऐसे में बाजार में सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली एक सरकारी कंपनी डबल सेवन (77)  ने कदम रखा. लेकिन लोगों को इसका टेस्ट पसंद नहीं आया. ये अजब दुविधा का दौर था कि कोका कोला भारत से बोरिया बिस्तर बांध चुकी थी और डबल सेवन लोगों को पसंद नहीं आ रही थी. तभी मार्केट में दस्तक दी कैंपा कोला ने. 

लेकिन कैंपा कोला की बात कहां से निकली, चलिए आपको बताते हैं.

कैंपा कोला को 22 करोड़ में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने खरीद लिया है. इससे मार्केट की बादशाह-कोला कोला और पेप्सी को कड़ी टक्कर मिलनी तय मानी जा रही है. अब जान लेते हैं कैंपा कोला का इतिहास.

कैंपा कोला की कहानी

जब कोका कोला ने ड्रिंक बनाने का अपना सीक्रेट फॉर्मूला शेयर करने से मना कर दिया, जो तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने उसे भारत से बाहर कर दिया. तब PURE DRINKS GROUP भारत में कोका कोला बनाता था. कोला कोला को लेकर सरकार के फैसले से उसके मालिक चरणजीत सिंह नाखुश थे क्योंकि सवाल 2800 कर्मचारियों की रोजी-रोटी का था और बिजनेस को चलाने का भी. ऐसे में 1977 में उन्होंने एक नई सॉफ्ट ड्रिंक को बाजार में उतारा, जिसका नाम था कैंपा कोला. ये Orange flavoured Drink थी, जिसकी बोतल पर कैंपा लिखा रहता था. तब इसका कॉम्पिटिशन Thumps Up से था. धीरे-धीरे डबल सेवन लोगों की जुबां और बाजार दोनों से उतरती गई. इससे कैंपा कोला की धमक और बढ़ गई. 

फिर कैसे हुआ पतन

1989 में पेप्सी भारत के बाजार में पैर जमाने आ गई थी और 1991 में जब पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधार किए तो कोका कोला भी देश में रीएंट्री हुई. इसका असर कैंपा कोला पर पड़ा. कोला कोला और पेप्सी ने आक्रामक विज्ञापन नीति और मार्केट नेटवर्क से कैंपा कोला को पीछे करना शुरू कर दिया. दिल्ली के बॉटलिंग प्लांट और ऑफिसेज 2001 में बंद हो गए और साल 2009 में हरियाणा ही कैंपा कोला का दायरा सिमटकर रह गया. 2012 तक तो कंपनी का नामोनिशान मार्केट में नहीं बचा. अब सबकी नजरें इस चीज पर होंगी कि क्या रिलांयस के पास जाने के बाद यह कंपनी फिर मार्केट में जलवा दिखा पाएगी या नहीं.

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